कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर PM मोदी का हमला, बोले- 10 दिन तक मीडिया की जांच का इंतजार…

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नई दिल्ली।

पीएम नरेंद्र मोदी ने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर जोरदार हमला बोला है. पेश है इंटरव्यू का संपादित अंश.

सवाल. राजस्थान में एक रैली में आप ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर सीधा हमला बोला. आपने यहां तक कहा कि उनके पास एक योजना है, जिसके जरिये वे धन बांटना चाहते हैं. वे पता लगाना चाहते हैं कि किसके पास कितनी बचत है, किसके पास कितना पैसा है, किसके पास कितना सोना, चांदी है और वे इसे मुसलमानों और घुसपैठियों के बीच बांटना चाहते हैं. क्या यह धमकी इतनी वास्तविक है? क्या आप इसे ऐसे देखते हैं?

पीएम नरेंद्र मोदी. जहां तक कांग्रेस के घोषणापत्र की बात है तो कोई मुझे बताए कि क्या चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के घोषणापत्र महज दिखावा होते हैं? हर राजनीतिक दल के घोषणा पत्र को पढ़ना मीडिया का काम है. मैं इस पर मीडिया की टिप्पणी का इंतजार कर रहा था.’ मैंने पहले दिन ही घोषणापत्र पर टिप्पणी कर दी थी. घोषणापत्र देखने के बाद मुझे लगता है कि इस पर मुस्लिम लीग की छाप है. मुझे लगा कि मीडिया चौंक जाएगा. लेकिन वे वही कहते रहे जो कांग्रेस ने पेश किया. फिर मैंने सोचा कि ये इकोसिस्टम का बहुत बड़ा घोटाला लगता है और मुझे सच्चाई सामने लानी होगी. मैंने 10 दिन तक इंतजार किया कि घोषणापत्र की बुराइयों को कोई न कोई सामने लाएगा क्योंकि अगर इसे निष्पक्ष तरीके से सामने लाया जाता है तो यह अच्छा है. आखिरकार, मुझे इन सच्चाइयों को सामने लाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

सवाल. 2006 का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें मनमोहन सिंह जी ने कहा है कि संसाधनों पर पहला हक गरीब मुसलमानों का है. ये बात उन्होंने साफ तौर पर कही है. आपने मेनिफेस्टो में यह भी बताया है कि वह ओबीसी आरक्षण का एक हिस्सा लेकर मुसलमानों को देना चाहेंगे और 2004-2014 के बीच उन्होंने चार-पांच बार ऐसा करने की कोशिश की है.

पीएम नरेंद्र मोदी. आपने बहुत दिलचस्प सवाल पूछा है. जवाब लंबा होगा लेकिन देश की खातिर मुझे आपको बताना ही पड़ेगा. आप कांग्रेस का इतिहास देखिये. यह मांग 1990 के दशक से उठती रही है. देश में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसे लगता था कि उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए, इसके लिए विरोध प्रदर्शन भी हुए. 1990 से पहले कांग्रेस ने इसका पूरा विरोध किया और इसे दबा दिया. फिर उन्होंने जो भी आयोग बनाये, जो भी समितियां बनाईं, उनकी रिपोर्ट भी ओबीसी के पक्ष में आने लगी. वे इन विचारों को नकारते, अस्वीकार करते और दबाते रहे. लेकिन 90 के दशक के बाद वोट बैंक की राजनीति के कारण उन्हें लगा कि कुछ करना चाहिए.

तो, उन्होंने पहला पाप क्या किया था? 90 के दशक में उन्होंने कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने का फैसला लिया. इसलिए वे पहले इस विचार को दबा रहे थे और अपवित्र कर रहे थे, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने मुसलमानों को ओबीसी का लेबल दे दिया. कांग्रेस केंद्र से बेदखल हो गई. यह योजना 2004 तक रुकी रही. 2004 में जब कांग्रेस वापस आई तो उसने तुरंत आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को ओबीसी कोटा देने का फैसला किया. कोर्ट में मामला उलझ गया. भारत की संसद ने संविधान की मूल भावना के अनुरूप ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था. अब, उन्होंने इस 27 प्रतिशत कोटा को हथियाने की कोशिश की.

2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक हुई थी, जहां सिंह के बयान पर भारी हंगामा हुआ था. वे दो साल तक चुप रहे. 2009 के घोषना पत्र में उन्होंने फिर इसका जिक्र किया. 2011 में, इस पर एक कैबिनेट नोट है जहां उन्होंने मुसलमानों को ओबीसी हिस्सा देने का फैसला किया. उन्होंने यूपी चुनाव में भी यह कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. 2012 में आंध्र हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. वे सुप्रीम कोर्ट गए, वहां भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. 2014 के घोषणापत्र में भी धर्म के आधार पर आरक्षण की बात कही गई थी. जब भारत का संविधान बना तो कोई भी आरएसएस या बीजेपी के लोग मौजूद नहीं थे. वहां पंडित नेहरू और बाबा साहब अंबेडकर जैसे महापुरुष मौजूद थे. जिन्होंने लंबे चिंतन के बाद यह फैसला लिया कि भारत जैसे देश में धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

2024 के चुनावों के लिए उनका घोषणापत्र देखें. इस पर मुस्लिम लीग की छाप है. जिस तरह से वे संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं, जिस तरह से वे अंबेडकर का अपमान कर रहे हैं… एससी और एसटी के आरक्षण पर खतरा है. क्या मुझे देश की जनता को इसकी जानकारी नहीं देनी चाहिए? मेरा मानना है कि इस देश को शिक्षित करना, सही बातें बताना उन सभी विद्वान लोगों की जिम्मेदारी है, जो ज्ञान के धनी हैं, जो निष्पक्ष हैं.


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