डेढ़ वर्ष के शिशु को दी गई मुफ्त 17.5 करोड़ रुपये की जीन थेरेपी कोलकाता के एनआरएस अस्पताल के प्रयास से मासूम को मिला जीवनदान

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कोलकाता  ।

दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्राफी (एसएमए) के इलाज के लिए पूर्वी भारत में अपनी तरह के पहले सरकारी अस्पताल ने एक बच्चे में पूरी तरह से मुफ्त 17.5 करोड़ रुपये की जीन थेरेपी का उपयोग किया है। एसएमए टाइप-दो से पीडि़त बच्चे को पिछले दिनों नीलरतन सरकार (एनआरएस) मेडिकल कालेज अस्पताल के प्रयासों से यह थेरेपी दी गई। फिलहाल वह डाक्टरों की निगरानी में है। हावड़ा के श्यामपुर के निवासी रंजीत पाल जो पेशे से सुनार हैं, उनका एक वर्ष और नौ महीने का पुत्र सौम्यजीत पाल इस दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीडि़त है। रंजीत ने कहा कि जब उनका बेटा तीन महीने का था, तो उन्होंने और उनकी पत्नी ने देखा कि वह अपना पैर नहीं उठा पा रहा है। कई डाक्टरों को दिखाने के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं हुआ।

अंत में एनआरएस अस्पताल ले जाने के बाद एक महीने के भीतर पता चला कि उनका बेटा एसएमए टाइप दो से पीडि़त है। अस्पताल में न्यूरो-मेडिसिन की प्रोफेसर व चिकित्सक यशोधरा चौधरी, प्रिंसिपल पितबरन चक्रवर्ती, अस्पताल अधीक्षक इंदिरा दे व अन्य डाक्टरों के प्रयासों से इस जटिल बीमारी की चिकित्सा शुरू हुई। सौम्यजीत को विदेशी दवा कंपनी द्वारा शुरू किए गए अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के तहत 17.5 करोड़ की मुफ्त जीन थेरेपी दी गई। डाक्टरों का कहना है कि बौद्धिक विकास होने के बावजूद एसएमए पीडि़तों के चलने और बैठने की क्षमता कम हो जाती है। इसके लिए सर्वाइवल मोटर न्यूरान (एसएमएन) जीन में जन्मजात दोष जिम्मेदार है। हालांकि इस बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन यह थेरेपी सौम्यजीत की बीमारी को बढऩे से रोकेगी। रंजीत ने कहा कि एनआरएस के माध्यम से उनका परिचय एसएमए रोगियों के संगठन क्योर एसएमए से हुआ। संस्था ने बच्चे के इलाज में कई तरह से सहयोग किया है।

क्योर एसएमए फाउंडेशन आफ इंडिया की सह-संस्थापक मौमिता घोष ने कहा कि अगर सरकार और सरकारी अस्पताल इसी तरह दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त रोगियों के साथ खड़े होते हैं, तो खासकर गरीब परिवार काफी लाभान्वित होंगे।स्पाइनल मस्कुलर एट्राफी आनुवंशिक विकार हैं जिनमें स्पाइनल कार्ड और मस्तिष्क स्टेम में उत्पन्न होने वाली तंत्रिका कोशिकाएं विकृत हो जाती हैं, जिससे मांसपेशियों की कमजोरी और क्षय बढ़ती जाती है। कुल पांच प्रकारों में पहले चार प्रकार के स्पाइनल मस्कुलर एट्राफी के लक्षण पहली बार शैशवावस्था और बचपन के दौरान दिखाई देते हैं।


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