आतंकवादियों का गढ़ है ये देश, लेकिन भारत से ज्यादा मजबूत है करेंसी, 1000 रुपये ले जाते ही बन जाते हैं…

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नई दिल्ली।
भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के कई विकसित देशों की तुलना में सबसे तेजी से बढ़ रही है और विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी मज़बूत स्थिति में है. लेकिन हमारी करेंसी एक ऐसे पड़ोसी देश से भी कमजोर है जिसे आतंकवाद की फैक्टरी माना जाता है. जी हां, इस देश में पिछले साल तालिबानी आतंकवादियों का कब्ज़ा हो गया और ये आतंकवादी ही सरकार भी चला रहे हैं. देखा जाए तो इस देश की आर्थिक स्थिती भी बहुत ख़राब है. हालांकि, इन सबके बावजूद इसकी करेंसी की वैल्यू भारतीय रुपये से काफी मजबूत है.

यहां हम जिस देश की बात कर रहे हैं वह है अफगानिस्तान. इस देश से पिछले साल अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद यहां कई महीनों तक गृह युद्ध चला जिसके वजह से यहां की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई. हालांकि, इसके बाद भी आज के समय में डॉलर के मुकाबले में इसकी करेंसी का एक्सचेंज रेट भारतीय रुपये की तुलना में अधिक बेहतर स्थिति में है. ऐसा क्यों है? आइये जानते हैं…

हमसे मजबूत है अफगानिस्तान की करेंसी
अफगानिस्तान की करेंसी को अफगान अफगानी (Afghan Afghani) कहते हैं. अगर लेटेस्ट एक्सचेंज रेट को देखें तो लगभग 71.20 अफगान अफगानी में 1 डॉलर को ख़रीदा का सकता है, तो वहीं 1 डॉलर खरीदने में आपको 83.38 भारतीय रुपये खर्च करने पड़ेंगे. डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया अपने ऑल टाइम लो पर ट्रेड का रहा है, यानी इस समय डॉलर के बदले भारतीय करेंसी की एक्सचेंज रेट 83.38 रुपये है. यानी अगर आप 1000 रुपये अफगानिस्तान ले जाएंगे तो एक्सचेंज में आपको केवल 853.92 अफगानी करेंसी मिलेगी.यही नहीं, ब्लूमबर्ग एक रिपोर्ट में अफगानी करेंसी को दुनिया में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी बता चुकी है. अब आप सोच रहे होंगे कि तालिबानी सत्ता वाले जिस देश में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है, वहां की करेंसी रुपये से भी मजबूत कैसे हो सकती है? तो चलिए आपको इसका कारण बताते हैं.

हवाला कारोबार बड़ी वजह
अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से है. यहां अशिक्षा और बेरोजगारी चरम पर है. अफगानी करेंसी में तेजी का कारण यह है कि वहां अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपया बैन है. आप वहां करेंसी की ऑनलाइन ट्रेडिंग भी नहीं कर सकते. दूसरी तरफ अफगानिस्तान में हवाला कारोबार खूब फल-फूल रहा है. मनी-एक्सचेंज जैसे काम भी हवाला से होते हैं. अफगानिस्तान में तस्करी के माध्यम से अमेरिकी डॉलर पहुंचते हैं और हवाला के जरिए इनका एक्सचेंज होता है. ये सब चीजें अफगानी करेंसी को डॉलर के मुकाबले मजबूती दे रही हैं.

अमेरिका से भी मिलती है मदद
अफगानी करेंसी में तेजी के पीछे एक कारण यूएन की मदद भी है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान को सहायता राशि देता है. तालिबानी राज के बाद से अब तक यूएन ने अफगानिस्तान को 5.8 अरब डॉलर की मदद दी है. यूएन के अनुसार इस साल अफगानिस्तान को 3.2 डॉलर की मदद की आवश्यकता है, जिसमें से 1.1 अरब डॉलर मिल चुके हैं. इसकी अलावा अफगानिस्तान में प्राकृतिक संसाधन भी काफी हैं. यहां लिथियम का बड़ा भंडार है, जिसकी वैल्यू करीब 3 लाख करोड़ डॉलर है.


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