जांजगीर कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा जी के लिखे जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया के ऊपर ये बिचार एक पइत

0

रायपुर 4 नवंबर 2022/

कवियों की एक पंक्ति खुसरों, कबीर, तुलसी की भी है, जिनकी कविताएं समय की सीमाओं को लांघकर कविताएं नहीं रहीं, जन-उद्गार बन गयीं। कोई कवि यूं ही जन-कवि नहीं बना जाता। कोई कविता यूं ही जन-उद्गार नहीं बन जाती। लोक के मनो-मस्तिष्क को छू लेना यूं ही नहीं हो जाता। लोक से उठकर, लोक में ही उतर जाने के लिए लोक की आत्मा का होना जरूरी है, कवि में भी, और कवि की कविता में भी। लक्ष्मण मस्तुरिया ऐसे ही कवि थे। वे इसी पंक्ति के कवि थे। वे लोक की आत्मा के साथ जिये, और रच-रच कर लोक को समर्पित करते रहे। वे उन बिरले कवियों में हैं जिनके गीत खेतों-खलिहानों में इतने गुनगुनाए गए कि लोक-गीत ही बन गए। चंदैनी गोंदा के लिए उन्होंने अनेक गीत लिखे। आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले उनके लिखे गीतों ने मई-जून की तपती हुई न जाने कितने गांवों की कितनी दोपहरियों में ठंडक घोली, कितनी ही सुबहों में रंगे भरे, कितनी ही शामों में किसानों और मजदूरों की थकावटें पोंछी। वे माटी के कवि थे, माटी की ताकत पर भरोसा करने वाले कवि थे। उनके पास सुमति की सरग निसैनी थी, जिस पर हर छत्तीसगढ़िया को चढ़ता हुआ देखना चाहते थे। मोर संग चलव कह कर, उन्होंने एक ही गीत में छत्तीसगढ़ महतारी की महिमा का बखान करते हुए स्वाभिमान के जागरण का मंत्र फूंक दिया। वे घर में, खेत में, मंचों पर, फिल्मों में केवल और केवल लक्ष्मण मस्तुरिया ही थे। वे माटी से टूटते हुए लोगों को बार-बार माटी की ओर लौटा लाते। आवाज देकर कहते – छइहां, भुइंहा ला छोड़ जवैया तै थिराबे कहां रे…। लक्ष्मण मस्तुरिहा मां सरस्वती के लाडले बेटे थे। सरस्वती ने उन्हें शब्दों से भी मालामाल किया और सुरों से भी। उन्होंने बेहतरीन आवाज पाई थी। संगीत की समझ पाई थी। उनके विशाल व्यक्तित्व और कृतित्व के आगे यह चर्चा गौण हो जाती है कि वे कहां जन्मे थे, कब जन्मे थे। उनका जिक्र होते ही बिलासपुर जिले का मस्तुरी गांव फैलकर पूरा छत्तीसगढ़ हो जाता है। 07 जून 1949 का दिन एक ऐसी तारीख हो जाता है, जिसे छत्तीसगढ़ के लोक-गीतों से मोहब्बत करने वाली हर पीढ़ी एक ऐतिहासिक तारीख के रूप में हमेशा याद रखेगी, जिस तारीख में एक कालजयी कवि, लेखक, गायक ने जन्म लिया था। हम 03 नवंबर 2018 की वह तारीख भी कभी नहीं भूलेंगे, जब अपने शब्दों और गीतों को छत्तीसगढ़ महतारी पर न्यौछावर करते हुए अमरत्व को प्राप्त हो गए। आज उनकी पुण्य तिथि पर मेरी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *