Category: कृषि

  • खेत की गहरी जुताई के लिए सरकार इस मशीन के लिए दे रही सब्सिडी, ऐसे करें आवेदन

    खेत की गहरी जुताई के लिए सरकार इस मशीन के लिए दे रही सब्सिडी, ऐसे करें आवेदन

    पटना।

    गर्मियों में खरीफ की बुवाई से पहले किसान खेत की गहरी जुताई करते हैं तो उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होता है। खेती करने से खेत में मौजूद हानिकारक कीट में खराब से खरपतवार नष्ट होकर भूमि में मिल जाते हैं और खाद में तब्दील होकर खेत की उर्वराशक्ति को बढ़ाते हैं।इतना ही नहीं खेत की गहरी जुताई करने में से फसल रोग को रोग व कीट लगने की संभावना भी बहुत कम रहती है। किसान सबसॉइलर मशीन पर सब्सिडी का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं ऐसे में किसानों को गर्मियों में खेत की गहरी जुताई अवश्य करनी चाहिए। खास बात ये है की खेती की गहरी जुताई लिए राज्य सरकार की ओर से किसानों को सबसेलर मशीन की खरीद पर 80% सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है। प्रदेश के जो किसान सबसॉइलर मशीन पर सब्सिडी का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं । वे कृषि विभाग की इस योजना के तहत आवेदन करके सस्ती दर पर यह मशीन खरीद सकते हैं।

    खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बेहतर होती है

    राज्य सरकार की ओर से कृषि यंत्र अनुदान योजना की तौर पर कृषि यंत्रीकरण योजना के तहत प्रदेश के किसानों को सबसे पहले मशीन पर सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है। सबसे पहले मशीन किसानों के लिए बेहद खास मशीन है। इस मशीन की सहायता से किसान खेत की मिट्टी को तोड़ने या उसे ढीला करने के साथ इसकी गहरी जुताई कर सकते हैं। इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़कर चलाया जाता है। यह मशीन मोल्डबोर्ड हल ,डिस्क हेरो व रोटरी टिलर जैसे कृषि यंत्रों की तुलना में अधिक गहराई तो खेत की जुताई करती है जिसे कीट पतंगे नष्ट हो जाते हैं और खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बेहतर होती है।

    मशीन किसानों के लिए काफी उपयोगी है

    खेत की तैयारी के लिए यह मशीन किसानों के लिए काफी उपयोगी है। इतना ही नहीं इस मशीन का उपयोग किसान खेत में पानी को रोकने के लिए भी कर सकते हैं।सबसॉइलर मशीन पर प्रदेश के किसानों को राज्य सरकार की ओर से 80 प्रतिशत तक सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है। कृषि यंत्रीकरण योजना के तहत सबसे पहले मशीन पर सामान्य किसानों को 70% सब्सिडी दी जा रही है । वहीं अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति अत्यंत पिछड़ा वर्ग के किसानों को 80% सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है। बाजार में कई ब्रांड की सब सोइलर मशीन आती है। इसमें महिंद्रा, जॉन डियर, फील्ड किंग जैसी सब सोलर मशीन काफी प्रचलित है।हालाँकि जो किसान सरकारी सब्सिडी का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें राज्य सरकार के कृषि विभाग द्वारा अधिकृत कंपनियां ही से कृषि मशीन की खरीद करनी होगी।तभी उन्हें सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाएगा।

    यह मशीन कम सिंचाई वाले क्षेत्र के लिए उपयोगी है

    यह बात की जाए सबसे पहले मशीन की कीमत भी तो इसके अनुमानित कीमत भारत में 12600 से शुरू होकर 1. 80 लाख रुपए तक है l सबसोइलर मशीन से किसान अपनी खेती को अधिक लाभकारी बना सकते हैं । इसके प्रयोग से गहराई तक खेत की जुताई की जा सकती है इससे भूमि की दशा में सुधार होता है। गहरी जुताई करने से खेत में कीटो की समस्या को काफी हद तक काम किया जा सकता है। इस मशीन से किसान आसानी से भूमि की तैयारी कर सकते हैं। इस मशीन के प्रयोग से भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ती है। खेत में नालियां बनाने के लिए भी इस मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन की सहायता से खेत में ढाई फीट तक गहरी नाली बनाई जा सकती है। यह मशीन कम सिंचाई वाले क्षेत्र के लिए उपयोगी है।

    आपको कृषि यंत्रीकरण सॉफ्टवेयर ofmas पर आवेदन करना होगा

    यदि आप बिहार राज्य के किसान है तो इस कृषि यंत्रीकरण योजना के तहत आवेदन करके सबसे पहले मशीन पर सब्सिडी का लाभ आवेदन प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आप योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट www.farmech.bih.nic.in कर सकते हैं। आपको कृषि यंत्रीकरण सॉफ्टवेयर ofmas पर आवेदन करना होगा।

    सहायक निदेशक या जिला कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर सकते हैं

    इससे पहले आपको डीबीटी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करना होगा। क्योंकि बिना रजिस्ट्रेशन नंबर की ऑफ मास पर आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे। किसानों को पहले डीबीटी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करना होगा और इसके बाद में आधिकारिक की वेबसाइट पर जाकर योजना के तहत आवेदन कर पाएंगे। आवेदन से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप अपने प्रखंड कृषि पदाधिकारी या सहायक निदेशक या जिला कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।

  • नीचे आलू ऊपर टमाटर…एक ही पौधे से दो-दो फसल; संयोग नहीं, साइंस के प्रयोग से यहां हुआ चमत्कार

    नीचे आलू ऊपर टमाटर…एक ही पौधे से दो-दो फसल; संयोग नहीं, साइंस के प्रयोग से यहां हुआ चमत्कार

    नई दिल्ली| 
    देश में किसानों को सशक्त बनाने लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. अलग-अलग तरह की टेक्नोलॉजी को खोजने का काम कर रही हैं. वहीं हरियाणा सरकार ने पलवल जिले के गांव दुधौला में बने विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय में कृषि कौशल संकाय द्वारा ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से टमाटर और आलू की फसल को तैयार की गई है. जिससे किसानों की आय को दोगुना किया जा सके. इसको लेकर Local18 की टीम ने विश्वविद्यालय के कुलपति राज नेहरू से बातचीत की. तो उन्होंने ग्राफ्टिंग तकनीक के बारे में बिस्तार से जानकारी दी.
    कुलपति राज नेहरू ने कहा कि ग्राफ्टिंग तकनीक जिसमें एक पौधे के ऊतक दूसरे पौधे पौधे के ऊतकों में प्रविष्ट कराये जाते हैं. जिससे दोनों के वाहिका ऊतक आपस में मिल जाते हैं. विश्वविद्यालय के छात्र पारंपरिक खेती के साथ साथ एडवांस एग्रीकल्चर तकनीक के बारे में सीख रहे हैं. ग्राफ्टिंग विधि के माध्यम से एक ही पौधे से मल्टीपल्स पौधे कैसे तैयार किए जा सकते हैं. प्रोटेक्टिव फार्मिंग की प्रकार से की जाए. ताकि किसानों की आय को बढ़ाई जा सके. प्रधानमंत्री का विजन है कि किसानों की आय बढ़े

    इस विधी से किसान लगा सकते है एक बार में दो फसल
    उन्होंने कहा कि श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से यह दर्शाया है. टमाटर और आलू दोनों के पौधे को इंटीग्रेट कर एक ही पौधे से दोनों फसल प्राप्त की जा सकती है. इसके अलावा विद्यार्थियों को मल्टी क्रॉपिंग के बारे में जानकारी दी जा रही है. विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के पीआरओ डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कृषि कौशल संकाय द्वारा आसपास के क्षेत्र के किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों के बारे में जागरूक किया जा रहा है. कृषि कौशल संकाय द्वारा रिसर्च की गई है. जिसमें ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से आलू और टमाटर के पौधे को एक कर नया प्रोडक्ट तैयार किया गया है. जिसके तहत पौधे के नीचे आलू और ऊपर टमाटर लगेंगे. इस विधि से एक ही बार में किसान दो फसलों को प्राप्त कर सकते हैं.

    बैटरी से संचालित अष्टावक्र चेयर
    उन्होंने बताया कि मानव जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए कौशल को शिक्षा में समाहित कर, मनुष्य को सुखद उपलब्धियां अर्जित की जा सकती है. श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने इसे अपने नवाचार से प्रमाणित किया है. इस विद्यार्थियों द्वारा विकसित किए गए नवीनतम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ईव्हील चेयर का नाम अष्टावक्र है. इस चेयर का मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों और वृद्धों को समृद्धि में सहायक होना है.अष्टावक्र चेयर को विद्यार्थियों ने बैटरी से संचालित किया है, और इसे मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है. इसमें आठ विशेषताएं हैं, जिससे यह चारों दिशाओं में चल सकती है और 360 डिग्री पर घूम सकती है. यह ईवील चेयर 15 किलोमीटर तक की गति से चल सकती है और एक बार की चार्जिंग में 20 किलोमीटर का सफर तय कर सकती है. इस चेयर को विश्वविद्यालय की विद्यार्थियों ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक सुविधा में बदल दिया है जो अपने आप को बुला सकते हैं और अन्य सामाजिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए लगभग 50 हजार रुपये की लागत आई है.

  • एग्रीविज़न ने किया कृषि चिन्हारी अभियान का पोस्टर विमोचन

    एग्रीविज़न ने किया कृषि चिन्हारी अभियान का पोस्टर विमोचन

    रायपुर l
    भारतीय ज्ञान की अद्वितीयता को कृषि के क्षेत्र में भी प्रमाणित करने के उद्देश्य से एग्रीविजन द्वारा कृषि चिन्हारी लेख संकलन अभियान चलाया जा रहा है।
    इसमें देश भर के कृषि विद्यार्थी, शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों, प्रबुद्धजनों से भारतीय कृषि की गौरवशाली ज्ञान परंपरा को साझा करने हेतु आलेख आमंत्रित किये जाएंगे। ‘कृषि चिन्हारी’ अभियान में भारत की वैज्ञानिक कृषि ज्ञान परंपरा, प्राचीन कृषि पद्धतियों, जनजातीय कृषि ज्ञान विषय पर आलेख, शोधपत्र, अध्ययन आदि देश भर से आमंत्रित किये जा रहे हैं, जिसकी पंजीयन की आखिरी तिथि 05/05/24 है। गौरतलब है भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है, प्राचीनकाल से ही भारत विश्व भर में मसालों एवं अनाजों का निर्यात करता रहा है। भारतीय मसालों की मांग विश्व भर में सर्वाधिक थी, भारतीय व्यापारी मसालों के बदलें में बहुमुल्य रत्न आदि का व्यापार किया करते थे। प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे वृक्षायुर्वेद, कृषि पराशर आदि में कृषि प्रबंधन की उन्नत तकनीकों का वर्णन किया गया है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक है। वैसे ही कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रबंधन के संदर्भ में चाणक्य द्वारा रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी प्रबंधन नीतियों का वर्णन किया गया है। ऐसे बहुत से उन्नत ज्ञान जो आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं, परंतु आधुनिकीकरण की दौड़ में नकार दिया गया। भारत में फसलों की जैव-विविधता, उन्नत कृषि परंपरा कृषि के क्षेत्र में नयी तकनीकों के आने से समय के साथ लुप्त हो गयी। परंतु कृषि में बढ़ते रसायनों – उर्वरकों के प्रयोग ने विश्व भर के कृषि वैज्ञानिकों को कृषि की पद्धतियों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया है। कृषि की पद्धतियाँ समन्वित एवं प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए। ऐसे गौरवशाली पुरातन ज्ञान के संकलन के उदेश्य से चलाये जा रहे एग्रीविजन द्वारा चलाये जा रहे “कृषि चिन्हारी” अभियान का पोस्टर का विमोचन इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ गिरीश चन्देल द्वारा किया गया। इस अवसर पर विवि अध्यक्ष भूपेंद्र चंद्रा, योगेश साय, आदित्य नारायण, हिमांशु, सौम्य, रोहन उपस्थित रहें।
    एग्रीविजन कृषि चिन्हारी अभियान के कार्यक्रम समनव्यक एवं छत्तीसगढ़ प्रांत संयोजक निखिल तिवारी ने बताया की दीर्घकाल से भारत के बारें में जानबूझकर भ्रांतियां गढ़ी गयीl भारत सांप सपेरों का देश था, यह सर्वथा असत्य है। इस अभियान के माध्यम से हम भारत की प्राचीन वैज्ञानिक कृषि परंपरा को पुनर्स्थापित करने का कार्य करेंगे।

    एग्रीविजन के राष्ट्रीय संयोजक शुभम पटेल जी ने बताया कि एग्रीविजन देश भर के कृषि विद्यार्थियों, विशेषज्ञों आदि से आलेख संकलित कर इसके दस्तावेजीकरण करके भविष्य में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवम् देश भर कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों से इन विषयों पर शोध करने की मांग भी करेगी। जिससे भारतीय ज्ञान प्रमाणिकता के साथ विश्वपटल पर आ सकें। की प्राचीन कृषि ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए चलाए जा रहे कृषि चिन्हारी अभियान का पोस्टर विमोचन किया गया|*

  • स्वीप अभियान का शुभंकर “केला” बुरहानपुर जिले में बना आकर्षण का केन्द्र

    स्वीप अभियान का शुभंकर “केला” बुरहानपुर जिले में बना आकर्षण का केन्द्र

    इन्दौर।

    लोकसभा निर्वाचन के मद्देनजर इंदौर संभाग में मतदान के प्रतिशत में वृद्धि के लिए स्वीप अभियान के तहत मतदाता जागरूकता हेतु विशेष प्रयास चल रहे है। इसी के तहत संभाग के जिलों में अनेक नवाचार भी किये जा रहे है। संभाग के बुरहानपुर जिले में इस अभियान के शुभंकर के रूप में “केला” चयनित किया गया है। शुभंकर “केला” जिले में आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

    उल्लेखनीय है कि बुरहानपुर जिले की मुख्य फसल “केला” है। इसको देखते हुये इसे स्वीप गतिविधियों के लिए शुभंकर के रूप में चयनित किया गया हैं। यह शुभंकर कलेक्ट्रेट कार्यालय के मुख्य द्वार पर मतदाताओं से मतदान की अपील कर रहा है। केला स्वरूप में बनी आकृति “मेरा वोट मेरा अधिकार”कार्यालय में आने –जाने वाले मतदाताओं को अपना मतदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं,वही स्वीप गतिविधियों के तहत फ्लेक्स ,बैनर , बैच में इस आकृति को उकेर कर लोकतंत्र के इस महापर्व में सहभागिता करने के लिए नागरिकों को जागरूक किया जा रहा है।

    उल्लेखनीय है कि जिले में केले की खेती का क्षेत्रफल 23 हजार 650 हेक्टेयर है। जिले में 16 लाख मीट्रिक टन केला का उत्पादन होता है। जिले में 18 हजार 325 किसान केले की खेती से जुड़े है। केले की बिक्री से 1700 करोड़ रूपये का कारोबार होता है।

  • प्रावधानों का पालन कर कराएँ फसलों का उपार्जन – कलेक्टर  चौहान

    प्रावधानों का पालन कर कराएँ फसलों का उपार्जन – कलेक्टर चौहान

    ग्वालियर।

    समर्थन मूल्य पर गेहूँ, चना व सरसों उपार्जन के लिये की गईं तैयारियों की कलेक्टर रुचिका चौहान ने सोमवार को समीक्षा की। उन्होंने अंतरविभागीय समन्वय बैठक में उपार्जन से जुड़े अधिकारियों को निर्देश दिए कि जिले के सभी खरीदी केन्द्रों पर प्रावधानों का पालन कर उपार्जन कराएँ। साथ ही जो किसान पहले स्लॉट बुक कराएँ, उनसे खरीदी भी पहले की जाए। उपार्जन में कोई लापरवाही न हो।

    सोमवार को यहाँ कलेक्ट्रेट के सभागार में आयोजित हुई बैठक में जानकारी दी गई कि जिले में गेहूँ उपार्जन के लिये इस साल 14 हजार 377 किसानों ने पंजीयन कराया है, जो पिछले साल से लगभग 1100 अधिक है। इसी तरह सरसों के उपार्जन के लिये 5 हजार 639 व चना के लिये 313 किसानों द्वारा पंजीयन कराया गया है।

    जिले में पंजीकृत किसानों से फसल उपार्जन के लिए 47 खरीदी केन्द्र स्थापित किए गए हैं। अभी तक सरसों की फसल के लिये 68 किसानों द्वारा स्लॉट बुकिंग कराई गई है।

    बैठक में विभिन्न अंतरविभागीय प्रकरणों का समाधान भी कलेक्टर  चौहान द्वारा किया गया। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे समय से अपने बिजली बिल जमा करें। साथ ही विभागीय मसलों को आपसी समन्वय बनाकर निपटाएँ।

    कलेक्ट्रेट में हुई बैठक में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी  विवेक कुमार, अपर कलेक्टर  अंजू अरुण कुमार व  टी एन सिंह, जिले के सभी एसडीएम तथा उपार्जन व्यवस्था से जुड़े विभागों सहित अन्य विभागों के जिला स्तरीय अधिकारी मौजूद थे। डबरा व भितरवार के एसडीएम सहित अन्य क्षेत्रीय अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस बैठक में शामिल हुए।

  • कृषि विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा अधिकार का जागरूकता दिवस मनाया गया

    कृषि विश्वविद्यालय में बौद्धिक सम्पदा अधिकार का जागरूकता दिवस मनाया गया

    रायपुर ।

    इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में बौद्धिक सम्पदा अधिकार के परिपेक्षय में जागरूकता दिवस मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने अपने संबोधन में कहा कि आज का युग स्पर्धा का युग है, जिसमें दस्तावेजों का पंजीयन, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट और कॉपी राईट समय की मांग दर्शाता है। उन्हांने आगे कहा पेटेन्ट कराने के लिए की मार्गदर्शिका के अनुसार भारत सरकार से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना होता है। नियमानुसार प्रकाशन के दो साल बाद साईटेशन होता है। जागरूकता दिवस पर उन्होंने पेटेन्ट की महत्वपूर्ण उपयोगिता बताई। कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत भाषण देते हुए संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी ने कहा कि पेटेन्ट का इतिहास पुराना है। 1400 ईस्वी में भवन डिजाइनरों के द्वारा पेटेन्ट का उपयोग किया गया। जहां-जहां भी पेटेन्ट किया गया वहां विकास की गति तेज हुई है। उन्होंने आगे कहा कि पेटेन्ट का मतलब जनता के लिए जानकारी को विस्तारित करना है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में बौद्धिक सम्पदा अधिकार के प्रकोष्ठ की स्थापना हुई है, विश्वविद्यालय में किस्मों को जी.आई. टैग मिला है तथा पेटेन्ट की विधि को सरल किया गया है।

    कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बौद्धिक सम्पदा अधिकार के बारे में व्याख्यान देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. एस.व्ही. वेरूलकर ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन के अनुसार बौद्धिक सम्पदा का अधिकार व्यक्ति के मस्तिष्क में सृजन और उसके उपयोग के दस्तावेजीकरण से जुड़ा है। उन्होंने पेटेन्ट में कॉपिराईट, ट्रेडमार्क, जी.आई. टैग को शामिल किया है। उन्होंने भारतीय पेटेन्ट अधिनियम 1970 की जानकारी दी तथा मूल्य संवर्धन और पेटेन्ट की विस्तृत प्रक्रिया बताई। इसी सत्र में छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, रायपुर के वैज्ञानिक डॉ. अमित दुबे ने व्याख्यान देते हुए बताया नवाचार से नये-नये तरीके ज्ञात होते हैं। इन तरीकों का व्यावसायीकरण जरूरी होता है। उन्होंने नवाचार प्रक्रिया में अनुसंधान और विकास संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, उद्योगों द्वारा किये जाने वाले अनुसंधान, नवाचार, विकास, पेटेन्ट, उत्पादन, विपणन तथा अंगीकरण के संबंध को बताया।

    बौद्धिक सम्पदा अधिकार के बारे में उन्होंने भारत सरकार के पेटेन्ट जानकारी केन्द्र, ज्ञान – राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन अहमदाबाद, राज्य सरकार के नवाचार निधि कार्यक्रम तथा छत्तीसगढ़ के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एम.एस.एम.ई.) के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत में प्रकाशन का चौथा स्थान है जबकि साईटेशन 9वें स्थान पर है तथा पेटेन्ट दर्ज कराने में 40वें स्थान पर है। जागरूकता दिवस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के निदेशक विस्तार डॉ. अजय वर्मा, संचालक बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ. एस.एस. टुटेजा, संचालक शिक्षण डॉ. एस.एस. सेंगर, अधिष्ठाता द्वय डॉ. जी.के. दास, डॉ. ए.के. दवे विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन वैज्ञानिक डॉ. दीप्ति झा ने किया तथा कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन सह संचालक अनुसंधान डॉ. धनंजय शर्मा ने किया।

  • मध्यप्रदेश भूलेख पोर्टल

    मध्यप्रदेश भूलेख पोर्टल

    राजगढ़़।

    प्रदेश में कृषि वर्ष परिवर्तन के कारण कार्यालय आयुक्त, भू-अभिलेख ग्वालियर द्वारा संचालित मध्यप्रदेश भूलेख पोर्टल https://mpbhulekh.gov.in की सेवाएँ एक अप्रैल 2024 से 10 अप्रैल 2024 तक स्थगित रहेंगी। यह जानकारी कार्यालय आयुक्त भू-अभिलेख ग्वालियर द्वारा दी गई है।

  • कृषि विभाग द्वारा किसानों से अपील की गई

    कृषि विभाग द्वारा किसानों से अपील की गई

    उज्जैन ।

    जिले के कृषकों से अपील की जाती है कि गेहूं की फसल की कटाई के बाद बचे हुए फसल अवेशष (नरवाई) जलाना खेती के लिये आत्मघाती कदम है। वर्तमान में जिले में लगभग गेहूं फसल की कटाई का कार्य पूर्ण हो चुका है। गेहूँ फसल की कटाई के पश्चात् सामान्य तौर पर किसान भाईयों द्वारा नरवाई में आग लगा देते है, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की संरचना भी प्रभावित होती है। इस संबंध में म.प्र. शासन की अधिसूचना में निषेधात्मक निर्देश दिये गये हैं। इनके अनुसार जिले के कृषकों से निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाने की अपील की जाती है।

    खेत की गहरी जुताई के लाभ

    उत्पादन में स्थिरता की दृष्टि से 2 से 3 वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई करना लाभप्रद होता है। गहरी जुताई करने से आगामी मौसम में खरपतवार कम हो जाते है। जिससे खरपतवार नियंत्रण में लागत कम होती है। गहरी जुताई से मृदा में हानिकारक कीट-पतंगे/फफुंद सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने से एवं पक्षियो के द्वारा हानिकारक कीटों को खाने से खेत में आगामी फसल में कीट व रोग लगने की संभावना कम हो जाती है। गहरी जुताई करने से जमीन की निचली परतों में जमा हुआ उर्वरक आगामी फसल में पौधों को आसानी से उपलब्ध होता है। अतः गहरी जुताई के अनेक लाभ है और गहरी जुताई का यही समय सबसे उपयुक्त है। जिन किसान भाईयों ने खेत की गहरी जुताई नहीं की हो, कृपया अवश्य करें। उसके बाद बख्खर/कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें। उपलब्धता अनुसार अपने खेत में 10 मीटर के अंतराल पर सब-सॉयलर चलाएं, जिससे मिट्टी की कठोर परत को तोड़ने से जल अवशोषण/नमी का संचार अधिक समय तक बना रहे।

    नरवाई का उपयोग निम्न तरीकों से किया जाता है

    कृषक नरवाई जलाने की अपेक्षा अवशेषों और डंठलों को एकत्रित कर जैविक खाद जैसे- भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए तो वे बहुत जल्दी सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद बना सकते है। खेत में कल्टीवेंटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो आदि की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश खाद कि बचत की जा सकती है। तो पशुओ के लिए भूसा और खेत के लिए बहुमूल्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढने के साथ मिट्टी की संरचना को बिगडने से बचाया जा सकता है। कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ स्ट्रॉ-मैनेजमेंट सिस्टम को सामान्य हार्वेस्टर से गेहूं कटवाने के स्थान पर स्ट्रा-रीपर एवं हार्वेस्टर का प्रयोग करना चाहिये।

    उल्लेखनीय है कि नरवाई में आग लगाने पर पुलिस द्वारा प्रकरण भी कायम किया जा सकता है। अतः उपरोक्त लाभों को ध्यान में रखते हुए किसान भाईयों को नरवाई में आग नहीं लगाने एवं नरवाई को गहरी जुताई कर खेत में मिलाने की सलाह दी जाती है।

  • जिले में फसलों के अवशेष जलाने पर पूर्णत: प्रतिबंध

    जिले में फसलों के अवशेष जलाने पर पूर्णत: प्रतिबंध

    ग्वालियर।

    कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी चौहान ने फसल के अवशेष जलाने से फैलने वाले प्रदूषण पर अंकुश, अग्नि दुर्घटनाएँ रोकने एवं जान-माल की रक्षा के उद्देश्य से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत यह आदेश जारी किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि आदेश का उल्लंघन पर भारतीय दण्ड विधान की धारा-188 के तहत कार्रवाई होगी। साथ ही किसी ने अवशेष जलाए तो उसे पर्यावरण मुआवजा भी अदा करना होगा। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि दो एकड़ से कम भूमि धारक को 2500 रूपए प्रति घटना, दो एकड़ से अधिक व पाँच एकड़ से कम भूमि धारक को पाँच हजार रूपए प्रति घटना एवं पाँच एकड़ से अधिक भूमि धारक को 15 हजार रूपए प्रति घटना पर्यावरण मुआवजा देना होगा।

  • विकसित भारत के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका कृषि की होगी : डॉ. पाठक

    विकसित भारत के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका कृषि की होगी : डॉ. पाठक

    रायपुर । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं सचिव कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा, भारत सरकार डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा है कि विगत 50 वर्षां में भारत में कृषि क्षेत्र का तीव्र विकास हुआ है और वर्ष 1991 तक विदेशों से अनाज का आयात करने वाला देश आज अन्य देशों को 53 बिलियन यू.एस. डॉलर मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज भारत में 330 मिट्रिक टन अनाज का उत्पादन हो रहा है और उद्यानिकी फसलों का उत्पादन 550 मिट्रिक टन हो गया है। दूध उत्पादन के क्षेत्र में भारत पूरे विश्व में अग्रणी स्थान पर है। देश की कृषि उत्पादकता वर्ष 1970 में 0.7 मिट्रिक प्रति हेक्टेयर थी जो आज बढ़कर 2.4 मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हो गई है। डॉ. पाठक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2047 तक विकसित भारत निर्माण के संकल्प को पूरा करने में सबसे बड़ी भूमिका कृषि की ही होगी। डॉ. पाठक आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, वैज्ञानिकों तथा विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। डॉ. पाठक ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का जायजा भी लिया। उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय छात्रावास एवं शबरी कन्या छात्रावास का लोकार्पण भी किया।
    डॉ. पाठक ने भारत में कृषि शिक्षा के परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश में कृषि शिक्षा तेजी से विस्तार हो रहा है और आज 73 शासकीय कृषि विश्वविद्यालयों के साथ ही 157 निजी कृषि विश्वविद्यालय भी संचालित हैं। विगत पांच वर्षां में कृषि विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या लगभग दो गुनी हो गई है। अनेक नये कृषि महाविद्यालयों की शुरूआत की गई है, नये पाठ्यक्रम खोले गये हैं तथा सीटों में वृद्धि की गई है। डॉ. पाठक ने कहा कि आज कृषि शिक्षा के क्षेत्र में वर्चुअल क्लासरूम, वृह्द मुक्त ऑनलाईन पाठ्यक्रम (मूक) तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स जैसी आधुनिक सुविधाओं का उपयोग भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार एवं व्यवसाय के बड़ते अवसरों को देखते हुए कृषि पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों की रूचि लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा के सामने अनेक चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
    डॉ. पाठक ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के भ्रमण के दौरान यहां संचालित विभिन्न अधोसंरचनाओं एवं अनुसंधान कार्यां का अवलोकन किया। उन्होंने उच्च मूल्य फसलों की गुणवत्तायुक्त संरक्षित खेती के अंतर्गत उगाई जा रही फसलों का अवलोकन किया। उन्होंने टिश्यू कल्चर प्रयोगशा में टिश्यू कल्चर तकनीक के माध्यम से उत्पादित केले एवं गन्ने के पौधों के बारे में जानकारी ली। डॉ. पाठक ने डॉ. आर.एच. रिछारिया प्रयोगशाला में संग्रहित धान की परंपरागत 23 हजार से अधिक किस्मों के जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म) का अवलोकन किया। उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान इम्यूनिटी बूस्टर एवं कैंसर रोधी किस्म ‘‘संजीवनी’’ के संबंध में जानकारी प्राप्त की। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान से प्रोटीन, इथेनॉल एवं शुगर सिरप निर्माण की तकनीक का भी जायजा लिया। उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित फायटोसेनेटरी लैब में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने डॉ. पाठक को बताया कि कृषि विश्वविद्यालय द्वारा धान की 18 हजार से अधिक किस्मों की डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग पूर्ण कर ली गई है। डॉ. चंदेल ने उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान की न्यूट्री-रिच किस्मों के बारे में भी जानकारी दी। डॉ. पाठक ने कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे अनुसंधान कार्यां की सराहना की तथा भविष्य में किये जाने वाले अनुसंधान एवं विकास कार्यां के लिए शुभकामनाएं दीं। इस दौरान संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, निदेशक विस्तार डॉ. अजय वर्मा, निदेशक प्रक्षेत्र एवं बीज डॉ. एस.एस. टुटेजा, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. संजय शर्मा एवं अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय, रायपुर डॉ. जी.के. दास भी उपस्थित थे।