Category: एजुकेशन न्यूज़

  • समाचार :: स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. टेकाम ने 31 शिक्षिकों को किया सम्मानित

    समाचार :: स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. टेकाम ने 31 शिक्षिकों को किया सम्मानित

    रायपुर, 1 फरवरी 2023/ मुख्यमंत्री की घोषणा अनुसार प्रतिवर्ष विकासखण्ड, जिला और संभाग स्तर पर मुख्यमंत्री गौरव अंलकरण योजना के अंतर्गत शिक्षकों को पुरस्कृत किया जाता है। स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने आज माध्यमिक शिक्षा मण्डल परिसर स्थित संयुक्त संचालक स्कूल शिक्षा कार्यालय के सभागार में मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण योजना के अंतर्गत रायपुर संभाग के 31 शिक्षकों को सम्मानित किया। इनमें शिक्षा दूत सम्मान से 12 शिक्षक, ज्ञानदीप से 03 शिक्षक, शिक्षा श्री से 03 व्याख्याता, उत्कृष्ट प्राचार्य 05 और 08 उत्कृष्ट प्राधान पाठक सम्मानित हुए। यह सम्मान शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने वाले शिक्षकों को बच्चों के अध्ययन-अध्यापन के साथ कौशल विकास, बौद्धिक, शारीरिक एवं सामाजिक दायित्वों के प्रति उत्तरदायित्व के लिए प्रेरणादायक कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है।

    स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि गुरू आदि काल से समाज के पथ प्रदर्शक रहे हैं इसलिए वह हमेशा सम्मान के पात्र रहे हैं। 5 सितंबर को प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाकर शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। यह सम्मान राज्य स्तरीय होता है। विकासखण्ड स्तर पर शिक्षक दूत, जिला स्तर पर ज्ञानदीप और संभाग स्तर पर शिक्षा श्री सम्मान से ‘मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण’ योजना के तहत् शिक्षकों को सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी महामारी की अवधि में शिक्षकों ने शिक्षा की ज्योति को जलाए रखा और बहुत सारे नवाचार किए। राज्य के शिक्षकोें द्वारा उस दौरान किए नवाचारों का अनुकरण अन्य राज्यों ने भी किया। मंत्री डाॅ. टेकाम ने कहा कि शिक्षक आदर्श हों तो उनके व्यवहार का अनुकरण सभी करते हैं। यह भी सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने विद्यार्थी काल में किसी न किसी शिक्षक से प्रभावित होता है। उन्होंने मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी शिक्षकों को बधाई देते हुए आग्रह किया कि वे निरंतर छात्र हित में अच्छा कार्य करते रहें। साथ ही अपने साथी शिक्षिकों को भी बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित करें। डाॅ. टेकाम ने कहा कि शिक्षिकों को अपने सामाजिक दायित्वों को नहीं भूलना चाहिए। बच्चों को बौद्धिक, नैतिक और कौशल विकास के लिए हमेशा सजग रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी परीक्षा का समय निकट है तो सभी तन-मन से तैयारी में जुट जाएं और संकल्प लें कि इस वर्ष स्कूल का बेहतर परिणाम आए।

    मंत्री डाॅ. टेकाम ने समारोह में विकासखण्ड स्तर पर कक्षा पहली से पांचवी तक अध्यापन कराने वाले शिक्षकों को शिक्षा दूत पुरस्कार में 5 हजार रूपए, जिला स्तर पूर्व माध्यमिक शाला के कक्षा छठवीं से आठवीं तक अध्यापन कराने वालों शिक्षकों को ज्ञानदीप पुरस्कार में 7 हजार रूपए, संभाग स्तर पर कक्षा 9 वीं से 12 वीं तक अध्यापन कराने वाले शिक्षकों को शिक्षा श्री पुरस्कार में 10 हजार रूपए की सम्मान राशि के साथ ही प्रशस्ति पत्र प्रदान किए। उन्होंने इसके साथ ही जिला अंतर्गत अपने विद्यालय में उत्कृष्ट कार्य करने वाले प्राचार्याें को 2 हजार रूपए, विकासखण्ड स्तर पर प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के उत्कृष्ट कार्य करने वाले प्रधान पाठकों को एक-एक हजार रूपए की सम्मान राशि प्रदान की। सभी सम्मानित शिक्षकों को प्रशस्ति पत्र, शाॅल, श्रीफल से सम्मानित किया गया।

    इस अवसर पर संयुक्त संचालक स्कूल शिक्षा रायपुर संभाग श्री के. कुमार जिला शिक्षा अधिकारी श्री आर.एल. ठाकुर सहित शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं बड़ी संख्या में शिक्षक उपस्थित थे।

  • लोक इच्छा या विधि का शासन पर द्वितीय डॉ. बी.आर. अम्बेडकर स्मारक व्याख्यान

    लोक इच्छा या विधि का शासन पर द्वितीय डॉ. बी.आर. अम्बेडकर स्मारक व्याख्यान

    रायपुर, 26 जनवरी 2023 | हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (HNLU) ने 74वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर आज द्वितीय डॉ. बी.आर. अम्बेडकर स्मृति व्याख्यान 2023 का आयोजन किया। जस्टिस दीपक गुप्ता, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे और उन्होंने लोक इच्छा या विधि का शासन विषय पर स्मृति व्याख्यान दिया। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता पूर्व में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एचएनएलयू के चांसलर थे। न्यायमूर्ति सी बी बाजपेयी, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि थे।

    एचएनएलयू के कुलपति प्रो. डॉ. वी.सी. विवेकानंदन ने अपनी टिप्पणी में कहा कि हालांकि लोक इच्छा सर्वोच्च है, लेकिन इसकी तुलना एक नदी के उद्गम और ऐसी नदी के मार्ग से की जा सकती है जिसका जीवन पोषण विधि के शासन द्वारा निर्धारित किया जाना है। उन्होंने कहा कि सरकार लोक इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है और
    न्यायपालिका विधि के शासन की रक्षा करती है लेकिन दोनों सिद्धांतों को संविधान को अपने केंद्रीय विचार के रूप में
    रखना है। न्यायमूर्ति सीबी बाजपेयी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विधि का शासन एक सिद्धांत है जो सभी लोगों और उसके शासी संस्थानों को मानता है। लेकिन सभी अंततः विधि के अधीन हैं, और कोई भी विधि से ऊपर नहीं है और इसलिए विधि की नजर में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने उक्त विषय पर अपने प्रेरक और आकर्षक सत्र में कहा कि भारत का संविधान
    निश्चित रूप से एक सशक्त और सूक्ष्म रूप से तैयार किया गया साधन है, जिसका ह्रदय और आत्मा इसकी प्रस्तावना में

    समाहित है और एक न्यायाधीश के रूप में इन सभी वर्षों तक, उन्होंने प्रस्तावना को किसी भी मामले से निपटने के लिए
    परिभाषित दस्तावेज़ के रूप में देखा। लोक इच्छा या विधि का शासन  विषय की अवधारणा पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि लोक इच्छा
    आधारशिला है, किसी को यह विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि क्या कोई सरकार जिसे फर्स्ट पास्ट द पोस्ट का
    जनादेश मिलता है, वास्तव में लोक इच्छा का सही मायने में प्रतिनिधित्व करती है। इस संदर्भ में विधि का शासन
    संविधान के जनादेश के साथ कार्यों को संतुलित करने के लिए महत्व रखता है जो वास्तव में लोक इच्छा है।
    कॉलेजियम प्रणाली के संदर्भ में केंद्र बनाम न्यायपालिका के संबंध में चल रही बहस पर अपने विचार साझा करते हुए,
    उन्होंने कहा कि वर्तमान में, मौजूदा प्रणाली से बेहतर कोई विकल्प नहीं है, लेकिन यह संवैधानिक सिद्धांत और नैतिकता
    है जिसे सर्वोच्च शासन करने की आवश्यकता है।


    छात्रों के साथ स्वतंत्र बातचीत पर न्यायमूर्ति ने कहा कि कॉलेजियम के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में सार्थक
    परामर्श आवश्यक है, हालांकि सरकारी प्रतिनिधि होना आवश्यक नहीं है, जो अनपेक्षित जटिलताओं को जन्म दे सकता है।
    उन्होंने महसूस किया कि यद्यपि प्रारंभिक स्तर के न्यायिक अधिकारियों को अधिक वेतन मिलता है, लेकिन ऐसे पदों द्वारा
    संचालित शक्ति और गतिशीलता के संदर्भ में सिविल सेवा के प्रति आकर्षण अधिक होता है।
    प्रो. डॉ. उदय शंकर, रजिस्ट्रार, एचएनएलयू ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित किया।
    अम्बेडकर मेमोरियल लेक्चर जो 2022 में स्थापित किया गया था, वर्तमान विश्व संदर्भ डॉ अंबेडकर के बौद्धिक योगदान
    को दुनिया में उनके विचारों और मूल्यों की खोज करके और विभिन्न पृष्ठभूमि के छात्रों, शिक्षाविदों और न्यायविदों को
    विभिन्न क्षेत्रों में डॉ अंबेडकर की छात्रवृत्ति और इसकी प्रासंगिकता पर प्रतिबिंबित करने के लिए एक साथ लाने का एक
    प्रयास है । उद्घाटन डॉ. बी.आर. अम्बेडकर स्मृति व्याख्यान 26 जनवरी, 2022 को 73वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर
    छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके द्वारा “भारत का संविधान और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर" विषय
    पर उद्बोधन दिया गया था।

    कार्यक्रम का संचालन एचएनएलयू की छात्रा सुश्री अस्तुति द्विवेदी और सुश्री ध्रुवी अग्रवाल ने किया। इस कार्यक्रम में 400
    से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें एचएनएलयू के शिक्षक, छात्र और कर्मचारी शामिल थे और इसे

    पर YouTube पर लाइव प्रसारित किया गया।

  • मैट्स यूनिवर्सिटी की छवि धूमिल करने लगाई गई जनहित याचिका उच्च न्यायालय ने की खारिज

    मैट्स यूनिवर्सिटी की छवि धूमिल करने लगाई गई जनहित याचिका उच्च न्यायालय ने की खारिज

    रायपुर, 20 जनवरी 2023। प्रदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय मैट्स यूनिवर्सिटी की छवि धूमिल करने का षडयंत्र विफल हो गया है। व्यक्तिगत लाभ और ब्लैकमेलिंग करने के उद्देश्य से कथित गलत मार्कशीट के संबंध में लगाई गई जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है। यह याचिका तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट संजीव अग्रवाल द्वारा मनेंद्रगढ़ विधायक विनय जायसवाल की गलत मार्कशीट को दिखाकर लगाई गई थी जिससे मैट्स यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई जा सके। यह मार्कशीट संजीव अग्रवाल ने ही छेड़खानी कर बनाई थी।
    उल्लेखनीय है कि तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट संजीव अग्रवाल द्वारा मैट्स यूनिवर्सिटी के विरुद्ध लगातार मीडिया के विभिन्न माध्यमों में मैट्स यूनिवर्सिटी द्वारा गलत अंकसूची जारी करने का भ्रामक प्रचार किया जा रहा था। इसके लिए संजीव अग्रवाल द्वारा मनेंद्रगढ़ विधायक विनय जायसवाल की डीसीए की गलत अंकसूची बनाकर मैट्स विश्वविद्यालय द्वारा जारी किये जाने का षडयंत्र किया जा रहा था। मैट्स विश्वविद्यालय की छवि खराब करने के इन गलत प्रयासों का सच माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका खारिज करने के बाद सबके सामने आ गया है। माननीय उच्च न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कहा कहा है कि जनहित याचिका कमजोर वर्ग के बचाव हेतु है, इसका उद्देश्य निजी हितों तथा व्यक्तिगत लाभों को प्राप्त करना नहीं है।
    पूर्व में भी छत्तीसगढ़ सरकार के उच्च शिक्षा विभाग एवं छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग द्वारा उक्त मामले में पूरी निष्पक्षता से जांच की गई थी जिसमें यह पाया गया था कि जो मार्कशीट दिखाई जा रही है वह मैट्स यूनिवर्सिटी द्वारा जारी ही नहीं की गई है। इससे य़ह प्रतीत होता है कि संजीव अग्रवाल व्यक्तिगत लाभ के लिए ब्लैकमेलिंग के कार्यों में लिप्त है। संजीव अग्रवाल द्वारा लगाई गई जनहित याचिका को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया। माननीय उच्च न्यायालय के इस निर्णय से मैट्स यूनिवर्सिटी की छवि खराब करने का मकसद और निजी लाभ के लिए ब्लैकमेल करने के सारे कुत्सित षडयंत्र भी विफल हो गये हैं। मैट्स यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ राज्य का प्रथम निजी विश्वविद्यालय है जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास कर उनके करियर का निर्माण करना है। मैट्स यूनिवर्सिटी भारत सरकार के राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन आयोग (नैक) से बी प्लसप्लस ग्रेड प्राप्त राज्य का प्रथम निजी विश्वविद्यालय भी है।

    संलग्न – माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश की वेब पोर्टल से प्राप्त छायाप्रति।

  • कलिंगा विश्वविद्यालय के द्वारा शोधकर्ताओं के लिए  छः महीने के इंटर्नशिप कार्यक्रम का भव्य शुभारंभ

    कलिंगा विश्वविद्यालय के द्वारा शोधकर्ताओं के लिए  छः महीने के इंटर्नशिप कार्यक्रम का भव्य शुभारंभ

    रायपुर 14 जनवरी 2023/

    रायपुर- कलिंगा विश्वविद्यालय मध्य भारत का प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान है।जिसे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद(नैक) के द्वारा बी प्लस रेंक की मान्यता प्रदान की गयी है।यह छत्तीसगढ़ में एकमात्र निजी विश्वविद्यालय है जो एनआईआरएफ रैंकिंग 2022 में उच्चस्तरीय 101-150 विश्वविद्यालयों में शामिल है। कलिंगा विश्वविद्यालय के सभी पाठ्यक्रमों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद आदि प्रतिष्ठित संस्थानों से मान्यता प्रदान की गयी है।

    मूल्य आधारित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित कलिंगा विश्वविद्यालय में नये शोध और नयी खोज को विकसित करने के लिए सर्वसुविधायुक्त सेंट्रल इंस्ट्रुमेंटेशन सुविधा (सीआईएफ) की स्थापना की गयी है। कलिंगा विश्वविद्यालय में मूल्य आधारित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित नये शोध और नयी खोज को विकसित करने के लिए सर्वसुविधायुक्त सेंट्रल इंस्ट्रुमेंटेशन सुविधा (सीआईएफ) की स्थापना की गयी है।

    केंद्रीय उपकरण सुविधा (सीआईएफ)का लक्ष्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान के लिए सबसे अद्यतन और उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकों के साथ एक केंद्रीय सुविधा प्रदान करना है।इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सीआईएफ के द्वारा विश्वविद्यालयीय छात्रों और शिक्षकों के साथ-साथ बाहरी शैक्षणिक संस्थानों,शोधकर्ताओं एवं औद्योगिक संस्थाओं के प्रशिक्षकों के लिए भी निर्धारित शुल्क लेकर उच्च-स्तरीय शोध उपकरणों को उपलब्ध कराकर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।जिससे एक बेहतर शोध वातावरण बन सके।कलिंगा विश्वविद्यालय में सीआईएफ विभाग के द्वारा श्रृंखलाबद्ध प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।इसी तारतम्य में  सीआईएफ के द्वारा शोधकर्ताओं के लिए विश्वविद्यालय के फार्मेसी भवन में 9 जनवरी 2023 को छः महीने के इंटर्नशिप कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

    उक्त शुभारंभ समारोह की शुरुआत कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.आर. श्रीधर, महानिदेशक डॉ. बैजू जॉन , कुलसचिव डॉ.संदीप गांधी, डीएए श्री राहुल मिश्रा और समस्त संकाय के अधिष्ठाता और प्राध्यापकों की उपस्थिति में माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुयी। विश्वविद्यालय के महानिदेशक डॉ बैजू जॉन ने उपस्थित प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इंटर्नशिप भविष्य की नींव है।नवीन प्रशिक्षणार्थियों कोअपने कौशल में सुधार करने और अपनी क्षमताओं को पहचानना बहुत जरूरी है उन्होंने यह भी कहा कि छह महीने के इंटर्नशिप कार्यक्रम कठोर अभ्यास, छात्रों और विशेषज्ञ संकाय सदस्यों के प्रयासों के साथ ऑफ़लाइन मोड के माध्यम से सीखने पर केंद्रित हैं।

    इस अवसर पर उपस्थित कलिंगा यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. आर. श्रीधर ने इन कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए किए गए प्रयासों के लिए सीआईएफ की  टीम को बधाई दी और सभी की सफलता की कामना की। उन्होंने अपने अनुभव को भी साझा करते हुए कहा कि दैनिक जीवन में आज सबसे अधिक कौशल विकास की आवश्यकता है। उन्होनें अपनी शुभकामनाएं देते हुए प्रशिक्षकों से इंटर्नशिप के दौरान  समर्पण के साथ काम करने और नया कुछ सीखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि छात्रों को उपलब्ध संसाधनों का पूरी तरह से कुशल उपयोग करना चाहिए।

    विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. संदीप गांधी ने उपस्थित प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इंटर्नशिप कार्यक्रमों का लक्ष्य इंटर्न को सफल होने और दुनिया भर में होने वाले बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम बनाना है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अकादमिक मामलों के अधिष्ठाता  श्री राहुल मिश्रा ने भी इंटर्नशिप करने वाले प्रशिक्षणार्थियों को शुभकामनाएं दीं। समारोह के दौरान विभिन्न संकाय के अधिष्ठाता,प्राध्यापक और छात्र-छात्राएं उपस्थित थें।कार्यक्रम का संचालन फैशन डिजाइनिंग विभाग के विभागाध्यक्ष श्री कपिल केलकर ने किया जबकि  धन्यवाद ज्ञापन महानिदेशक डॉ बैजू जॉन के द्वारा किया गया।

  • कलिंगा विश्वविद्यालय में “एसपीएसएस का उपयोग कर अनुसंधान में डेटा विश्लेषण” पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन सम्पन्न

    कलिंगा विश्वविद्यालय में “एसपीएसएस का उपयोग कर अनुसंधान में डेटा विश्लेषण” पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन सम्पन्न

    रायपुर 14 जनवरी 2023/

    रायपुर- कलिंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर 101-150 के बैंड में एनआईआरएफ रैंकिंग 2022 के साथ नैक ग्रेड B+ से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय है और यह वास्तव में मध्य भारत में उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में उभरा है।

    कलिंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर एक प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित है। कलिंगा विश्वविद्यालय ज्ञान सृजन के लिए शिक्षण, नवाचार अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध है और छात्रों को उन्नत और एकीकृत प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।

    फैकल्टी ऑफ कॉमर्स एंड मैनेजमेंट, कलिंगा यूनिवर्सिटी ने 2 जनवरी 2023 से 6 जनवरी 2023 तक “डेटा एनालिसिस इन रिसर्च यूजिंग एसपीएसएस” पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया।

    राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य अनुसंधान सॉफ्टवेयर एसपीएसएस पर व्यावहारिक प्रशिक्षण देकर अनुसंधान को बढ़ावा देना था। कार्यशाला के विशेषज्ञ प्रसिद्ध शोधकर्ता डॉ. धवल मेहता, सहायक प्रोफेसर, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय और डॉ. हितेश परमार, प्रोफेसर, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, गुजरात थे।

    कार्यशाला में पूरे भारत से और विदेशों से भी भागीदारी हुई। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से 100 से अधिक शिक्षाविद, शोधार्थी और छात्र इस सूचनात्मक कार्यशाला में शामिल हुए। कार्यशाला में, प्रोफेसरों ने अनुसंधान में सामने आने वाली विभिन्न जटिलताओं और समस्याओं पर और एसपीएसएस जैसे सॉफ्टवेयर टूल का उपयोग करके उन समस्याओं को कैसे हल किया जा सकता है पर भी चर्चा की ।

    कलिंगा विश्वविद्यालय के वाणिज्य और प्रबंधन संकाय के डीन, सीएमए, डॉ. अभिषेक त्रिपाठी की उपस्थिति में कार्यशाला की शोभा बढ़ाई गई। उन्होंने सुश्री मुस्कान दीवान और सीएमए सुजाता सिंह के नेतृत्व वाली आयोजन समिति के प्रयासों की सराहना की।

    कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. संदीप गांधी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन हमारे देश में शिक्षाविदों की नींव को मजबूत करते हैं और यह नियमित रूप से आयोजित होने चाहिए।

  • लुई ब्रेल जिन्होंने नेत्रहीनों के लिए बनाई ब्रेल लिपि

    लुई ब्रेल जिन्होंने नेत्रहीनों के लिए बनाई ब्रेल लिपि

    रायपुर, 04 जनवरी 2024।

    आधुनिक दुनिया में तरक्की और बराबरी के लिहाज से आज का दिन बेहद खास है क्योंकि आज ही दिन एक ऐसे महान शख्स का जन्म हुआ था, जिन्होंने आगे चलकर एक ऐसी लिपि का आविष्कार किया जिसकी बदौलत नेत्रहीन लोगों के लिए पढ़ने-लिखने में काफी सहूलियत हुई. हम बात कर रहे हैं उस महान शख्स की जिन्होंने लुई ब्रेल की खोज की, उनका नाम है लुई ब्रेल.

    नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करने वाले लुई ब्रेल का आज ही के दिन 1809 में फ्रांस के एक छोटे से कस्बे कुप्रे में जन्म हुआ था. लुई 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. लुई ब्रेल जिन्होंने खुद नेत्रहीन होने के बावजूद दृष्टिहीनों को पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाने को लेकर एक नया आविष्कार किया, जिसे ब्रेल लिपि कहा जाता है और इसकी मदद से आज बड़ी संख्या में नेत्रहीन लोग अपना पढ़ाई पूरी करते हैं.

    जन्म से ही नेत्रहीन नहीं थे लुई ब्रेल

    हालांकि फ्रांस के रहने वाले लुई ब्रेल जन्म से ही नेत्रहीन नहीं थे, लेकिन जब वह बहुत छोटे थे तो एक हादसे में आंखों की रोशनी चली गई थी. लुई ब्रेल के पिता रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम करते थे. 3 साल की उम्र में एक दिन लुई ब्रेल अपने पिता के औजारों के साथ खेल रहे थे तो अचानक उन्हीं में से एक औजार उनकी आंख में लग गया. शुरुआत में इलाज कराने पर थोड़ी राहत मिली लेकिन गुजरते वक्त के साथ उनकी तकलीफ बढ़ती चली गई. तकलीफ इस कदर बढ़ती चली गई कि जब वह 8 साल के हुए तो उनके आंखों से दिखना बंद हो गया और नेत्रहीन हो गए.

    आंखों की रोशनी गंवाने के बाद जब लुई ब्रेल 16 साल के हुए तो एक दिन उन्हें ख्याल आया कि क्यों न नेत्रहीनों के लिए पढ़ने को किसी ब्रेल पर काम किया जाए और फिर वह इस विचार पर काम करने लगे. इस दौरान उनकी मुलाकात फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से हुई. बार्बियर ने लुई ब्रेल को ‘नाइट राइटिंग’ और ‘सोनोग्राफी’ के बारे में बताया था, जिसकी मदद से सैनिक अंधेरे में पढ़ा करते थे.

    इस ‘नाइट राइटिंग’ में लिपि कागज पर उभरी हुई होती थी, जिसमें 12 बिंदु थे. इसमें 12 बिंदुओं का प्रयोग किया गया था, जिन्हें इसे 6-6 की 2 पंक्तियों में रखा गया था. हालांकि ‘नाइट राइटिंग’ लिपि में विराम चिन्ह, संख्याएं और किसी तरह के गणितीय चिन्ह नहीं थे.

    लुई ने ब्रेल लिपि में 64 अक्षर शामिल किए

    ‘नाइट राइटिंग’ लिपि की जानकारी मिलने के बाद लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए खास लिपि बनाने की योजना पर काम करने लगे. लुई ने ब्रेल लिपि में 12 की जगह केवल 6 बिंदुओं का इस्तेमाल कर 64 अक्षर और निशान तैयार किए. हालांकि ब्रेल लिपि में उन्होंने गणितीय चिन्हों, विराम चिन्ह और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए जरुरी चिन्ह भी बनाए. इस तरह लुई ब्रेल ने 1825 में महज 16 साल की उम्र में ही नेत्रहीनों के पढ़ने-लिखने में मदद के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार कर डाला.

    हालांकि लुई ब्रेल ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सके. 1851 में लुई को ट्यूबर कुलोसिस यानी टीबी की गंभीर बीमारी और वह लगातार इसकी चपेट में आते चले गए. फिर महज 43 साल की उम्र में अपने जन्मदिन के 2 दिन बाद 6 जनवरी 1852 में उनकी मौत हो गई.

    ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल आज भी भारत में पूजे जाते हैं और वह काफी लोकप्रिय भी हैं. 2009 में भारत सरकार ने लुई ब्रेल की 200वीं जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट और दो रुपये का सिक्का जारी किया था. उनकी बनाई ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के लिए बड़ी मददगार साबित हुई
    और आज भी इसका बखूबी इस्तेमाल किया जाता है.

  • दीर्घकालिक उपाय छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के बीच सीखने की खाई को पाटने के लिए आवश्यक

    दीर्घकालिक उपाय छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के बीच सीखने की खाई को पाटने के लिए आवश्यक

    रायपुर 17 दिसंबर 2022/

    रायपुर: अन्य क्षेत्रों की तरह, कोविड-19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों की सीखने की क्षमता एवं प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित किया है , इसलिए राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सरकारी स्कूलों में बच्चों के सीखने के अंतराल को पाटने के लिए प्रयास और पहल करने की जरूरत है |गैर-लाभकारी संस्था आत्मशक्ति ट्रस्ट, दलित आदिवासी मंच एवं जन जागरण समिति, छत्तीसगढ़ के द्वारा आज जारी एक हालिया और संयुक्त तथ्य-खोज अध्ययन रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है । .

    रिपोर्ट को छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रतिनिधियों , छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री केपी खांडे ने विमोचन किया । अन्य लोगों में राज्य अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य श्री राम पप्पू बघेल, राज्य आरटीई फोरम के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय, सुधीर प्रधान – उपाध्यक्ष, शिक्षक संघ, छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधि, श्री विभीषण पात्रे – सचिव, जन जागरण समिति , श्री देवेंद्र बघेल – संयोजक दलित आदिवासी मंच, आत्मशक्ति ट्रस्ट के वरिष्ठ प्रबंधक श्री संतोष कुमार, श्री मनोज सामंतरे और कई अन्य गणमान्य लोगों ने रिपोर्ट के विमोचन में भाग लिया और राज्य में बच्चों के बीच सीखने के परिणामों में सुधार के लिए कार्य एवं रणनीतियों पर चर्चा की।

    यह रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के महासमुंद, बलौदाबाजार और जांजगीर चांपा जिले के 323 गांवों के किये गए ऑनलाइन अध्ययन पर आधारित है |इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है की महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को जो सीखने की हानि हुई है उसके रिकवरी के लिए राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों का धरातल पर क्या असर है इसको पाता लगाया जा सके और राज्य सरकार को इसके बारे में अवगत कराया जा सके ताकि शिक्षा की वर्तमान स्थिति के अंतर को पाटने के लिए एक सहयोगी प्रयास किया जा सके।

    अध्ययन में लर्निंग रिकवरी प्रोग्राम पर 651 उत्तरदाताओं, शिक्षा के अधिकार के मानदंडों पर 367 उत्तरदाताओं, ड्रॉप आउट पर 101 उत्तरदाताओं और प्रवासन ( माइग्रेशन ) पर 96 उत्तरदाताओं से डेटा एकत्र किया गया है ।

    अध्ययन रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

    • 62.1% छात्रों ने कहा कि उन्हें अपने वर्तमान पाठ्यक्रम में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे इसे अपने पिछले वर्ष के पाठ्यक्रम से जोड़ने में सक्षम नहीं हैं

    • रिपोर्ट से पता चला कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लर्निग रिकवरी के लिए धरातल पर कोई ठोस पहल नहीं किये जा रहे है जिस कारण ये बच्चों को शिक्षा की परिधि में रहने के लिए ही मजबूर करेगा एवं छात्रों के लिए कोविड-19 महामारी के दौरान सीखने का जो नुकसान हुआ है उससे उबरना कठिन होगा।

    • तथ्य-खोज रिपोर्ट से पता चला कि 27.52% (101) स्कूलों में स्वीकृत पदों की संख्या की तुलना में 1 शिक्षक की कमी है। पर्याप्त स्कूल शिक्षकों की कमी छत्तीसगढ़ में शिक्षा को बहुत प्रभावित करती है। इसी तरह, 25.88% (95), 19.07% (70), और 7.90% (29) स्कूलों में क्रमशः 2,3 और 4 शिक्षकों की कमी है।

    • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 14.71% (54) स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं, लगभग सभी कार्यालयों और संस्थानों में, हम पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय पा सकते हैं, फिर स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं है ? आरटीई के लागू होने के 13 साल बाद भी यह स्थिति है जबकि यह छात्रों की प्राथमिक आवश्यकता है |

    • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट ने इस तथ्य की भी पड़ताल की कि स्कूलों में 24.52% (90) शौचालयों में पानी की सुविधा नहीं है। माता-पिता द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, पानी की उचित सुविधा के बिना शौचालय का कोई उपयोग नहीं है।

    • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से पता चलता है कि 12.26% (45) स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं। खेल का मैदान छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खेल के मैदानों की कमी के बारे में एसएमसी सदस्य और माता-पिता गंभीर रूप से चिंतित हैं।

    • तथ्य-खोज रिपोर्ट से पता चला है कि 101 ड्रॉपआउट मामलों में से 32.67% एसटी के हैं, जबकि 26.73%, 38.61% और 1.98% क्रमशः एससी, ओबीसी और सामान्य श्रेणियों से हैं। तथ्य-खोज से पता चला की ड्रॉपआउट के महत्वपूर्ण कारण घरेलु कार्य है जिसमे 32.67% बच्चे लगे हुए हैं । , और 36.63% ने अपने ड्रॉपआउट कारणों को पाठ्यक्रम में कठिनाइयों के कारण बताया है, 7.92% ने बताया की माता-पिता रुचि नहीं रखते हैं,7.92%, 14.85%, श्रम कार्य में लगे हुए हैं, और या तो माता-पिता पलायन कर चुके हैं या पढ़ाने में रुचि नहीं रखते हैं।

    • तथ्य-खोज से पता चला कि 77.22% छात्रों के पास पढ़ने का कोई अवसर नहीं था, न ही उनके लिए COVID-19 महामारी के दौरान विभिन्न मुद्दों के कारण पढ़ने की गतिविधियों में शामिल होने की कोई गुंजाइश थी।

    प्रवासी छात्रों की वर्तमान व्यस्तता -57.29% ने कहा है कि वे अपने माता-पिता को घरेलू काम में मदद कर रहे हैं।

  • 114 विद्यार्थी शामिल हुए अनुभूति कार्यक्रम में

    114 विद्यार्थी शामिल हुए अनुभूति कार्यक्रम में

    भोपाल,07 नवम्बर 2022 /
    वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल में शासकीय नवीन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बागसेवनिया के 114 विद्यार्थियों को “अनुभूति कार्यक्रम के तहत वन” वन्य-प्राणी पर्यावरण और उनके संरक्षण के प्रति जागरूक कराया गया।मास्टर ट्रेनर श्री ए.के. खरे, सेवानिवृत्त उप वन संरक्षक एवं पक्षी विद मोहम्मद खालिक ने विद्यार्थियों को वन्य प्राणियों की गतिविधियों से अवगत कराया। विद्यार्थियों को पक्षी-दर्शन, वन्य प्राणी दर्शन, प्रकृति पथ भ्रमण और सामाजिक वानिकी की गतिविधियों की बारिकियों से अवगत कराया। वन विहार प्रबंधन द्वारा वन्य प्राणियों पर तैयार की गई लघु फिल्म के साथ ईकोलॉजिकल प्रोसेस के संदर्भ में “खाद्य जाल एवं वर्ड माईग्रेशन” के खेल भी कराए गए। वन्य प्राणियों का रेस्क्यू किस प्रकार किया जाता है के संबंध में रेस्क्यू टीम ने अहम जानकारी दी।

    वन विहार संचालक श्रीमती पद्मप्रिया बालाकृष्णनन ने शिविर में शामिल सभी विद्यार्थियों को शपथ दिलाई और प्रतिभागियों को अनुभूति बैग, केप और पठनीय सामग्री वितरित की। अगला अनुभूति कैम्प वन विहार में 19 दिसम्बर 2022 को आयोजित होगा |

  • समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययन शाला में हुआ ट्रांसजेंडर जागरूकता कार्यशाला का आयोजन

    समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययन शाला में हुआ ट्रांसजेंडर जागरूकता कार्यशाला का आयोजन

    रायपुर,09 दिसम्बर 2022। को मितवा संकल्प समिति, रायपुर और समाजशास्त्र एवं समाज कार्य अध्ययनशाला, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में विभाग के विद्यार्थियों व शोधार्थियों के साथ “ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2019” विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। स्वागत वक्तव्य में विभागाध्यक्ष प्रो. एन. कुजूर ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति सदियों से समाज से बहिष्कृत रहे हैं और उन्हें मूलभूत मानवीय अधिकार भी नहीं प्रदान किए गए जिसके कारण यह समुदाय आज भी हाशिए पर जीवन व्यतीत करने को मजबूर है। तदोपरांत विभाग के प्रो. एल. एस. गजपाल ने उपस्थित सभी विद्यार्थियों, शोधार्थियों को सड़क सुरक्षा सप्ताह के बारे में जानकारी देते हुए मितवा संकल्प समिति की अध्यक्ष विद्या राजपूत को आमंत्रित किया कि वे आकार सभी को सड़क सुरक्षा से संबंधित नियमों का शपथ दिलाए।


    कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में रवीना बरीहा, सदस्य तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड छत्तीसगढ़ शासन, ने कार्यक्रम के शुरुवात में भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए कहा कि यह पश्चिम से आयतित अवधारणा नहीं है, हमारे समाज में हमेशा से ही जेंडर भिन्नता प्रदर्शित करने वाले लोग रहे हैं। अंग्रेजों के काल में बने अपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 के कारण ट्रांसजेंडर की स्थिति में हास हुई जिसके कारण यह समुदाय समाज से बहिष्कृत ही हो गया। अधिनियम के बिंदुओं को प्रतिभागियों के समक्ष व्याख्यायित किया। रवीना बरीहा ने कहा कि समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को कई तरह के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के बाद केंद्र सरकार के द्वारा ट्रांसजेंडर अधिनियम पारित करवाया गया। आगे अपनी बात रखते हुए रवीना बरिहा ने कहा कि ट्रांसजेंडर को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांति फैली हुई है जिसके कारण लोग समझ नहीं पाते कि ट्रांसजेंडर किसे कहा जाए और किसे नहीं। उन्होंने जोर दिया कि कोई व्यक्ति ट्रांसजेंडर है या नहीं यह उस व्यक्ति के आत्म पहचान पर निर्भर करता है। उन्होंने अधिनियम के बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह अधिनियम ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों को दोहरी सुरक्षा प्रदान करता है।


    कार्यक्रम में दूसरे वक्ता के रूप में पापी देवनाथ ने अपनी बात रखी। पापी देवनाथ ने अपने जीवन अनुभवों को साझा करते हुए ट्रांसमेन के जीवन में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ट्रांसविमेन अपनी समस्याओं पर बोलने लगी है और लोग उनकी समस्याओं को लेकर जागरूक भी हो रहे हैं लेकिन ट्रांसमेन बहुत कम है जो अपने परिवार के खिलाफ जाते हुए अपनी जेंडर पहचान स्वीकार करते हुए समाज के समक्ष आ पाते है यही कारण है कि लोगों में ट्रांसमेन के बारे में जानकारी की कमी हैं। पापी देवनाथ ने बताया कि एक लड़की के शरीर में पैदा होने के कारण उन्हें बचपन से ही लड़कों की तरह विपरीत लिंगी व्यवहार के कारण घर व बाहर से प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ा। उन्हें रोजगार प्राप्त करने भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। नौकरी मिलने के बाद भी कार्यस्थल पर लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही उन्होंने लिंग परिवर्तन की महंगी व जटिल चिकित्सा प्रक्रिया के बारे में अपने अनुभव साझा किया। अंतिम वक्ता के रूप में विद्या राजपूत ने अपनी बात रखते हुए छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पुलिस बनने की कहानी को बताते हुए कहा कि लोगों की स्वीकार्यता प्राप्त करने के लिए ट्रांसजेंडर को सम्मानित कार्यों में आना महत्वपूर्ण रहा है इससे समुदाय के लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा है।


    विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर हेमलता बोरकर ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि लोगों तक अपनी समस्याओं को पहुंचाना महत्वपूर्ण है। यह कार्य इस तरह के जागरूकता कार्यशाला से ही संभव है।
    कार्यक्रम में विभाग के अतिथि शिक्षक क्षमा चंद्राकर, हुम प्रभा साहू, डॉ. प्रमा चटर्जी, डिसेंट साहू, शोधार्थी डॉ. नरेश साहू, फलेंद्र साहू व विभाग के सभी विद्यार्थी, शोधार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन समाज कार्य तृतीय सेमेस्टर की छात्रा निकिता कौशिक के द्वारा किया गया।

     

  • श्रवण बाधित और मूकबधिर परीक्षार्थियों को मिलेंगे विशेष शिक्षक

    श्रवण बाधित और मूकबधिर परीक्षार्थियों को मिलेंगे विशेष शिक्षक

    भोपाल,03 नवम्बर 2022 /
    राज्य शासन ने माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में ऐसे सभी परीक्षा केन्द्रों पर साइन लैंग्वेज जानने वाले शिक्षक को पर्यवेक्षक बनाने के निर्देश दिए हैं, जहाँ श्रवणबाधित एवं मूकबधिर परीक्षार्थी परीक्षा दे रहे हैं। नि:शक्तजन आयुक्त श्री संदीप रजक ने लोक शिक्षण आयुक्त को पत्र लिखकर श्रवणबाधित और मूकबधिर परीक्षार्थियों के परीक्षा कक्ष में सांकेतिक भाषा जानने वाले विशेष शिक्षक की नियुक्ति करने का आग्रह किया था।

    लोक शिक्षण आयुक्त श्री अभय वर्मा ने कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के दौरान श्रवणबाधित एवं मूकबधिर परीक्षार्थियों के परीक्षा केन्द्रों पर विशेष शिक्षकों को पर्यवेक्षक बनाने और उन्हें केन्द्र पर परीक्षा अवधि में उपस्थित रहने की अनुमति प्रदान की है।

    आयुक्त श्री रजक ने बताया कि आमतौर पर हाई-स्कूल और हायर सेकेन्ड्री परीक्षा में मूकबधिर और श्रवणबाधित परीक्षार्थियों को सामान्य परीक्षार्थियों के साथ ही बैठने की व्यवस्था की जाती है और सामान्य शिक्षकों को ही पर्यवेक्षक नियुक्त किया जाता है। इन विद्यार्थियों को प्रश्न-पत्र समझने में जब कठिनाई होती है तो सामान्य शिक्षक अक्सर समझ या समझा नहीं पाते। ऐसे में साइन लैंग्वेज प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक इन विद्यार्थियों की समस्याओं का समाधान कर सकेंगे।