नई दिल्ली,07 दिसम्बर 2022\ उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें नागपुर मेट्रो रेल निगम को एक भूखंड का कब्जा निजी फर्म को सौंपने का आदेश दिया गया था.
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एम एम सुंद्रेश की पीठ ने रेखांकित किया कि उच्च न्यायालय को फर्म द्वारा दाखिल याचिका पर इस तथ्य के मद्देनजर सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी कि भूखंड के मालिकाना हक को लेकर ‘संशय’ की स्थिति है.
कंपनी ने जिलाधिकारी द्वारा 25 अगस्त 2015 के आवंटन आदेश के आधार पर भूखंड की मिल्कियत नागपुर मेट्रो रेल निगम को देने को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
अदालत ने कहा कि जबतक लंबित याचिका में भूखंड की मिल्कियत स्पष्ट नहीं हो जाती, तबतक सार्वजनिक योजना को इस तरह से नहीं रोका जा सकता.
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि जिलाधिकारी ने अगस्त 2015 में नागपुर जिला स्थित 9,343 वर्ग मीटर जमीन मेट्रो निगम को आवंटित की थी.
इसमें रेखांकित किया गया कि शुरुआत में जुलाई 1995 में जमीन महाराष्ट्र पर्यटन निगम द्वारा कंपनी को उप पट्टे पर 30 साल के लिए दी गई थी और यह शर्त निर्धारित की गई थी कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए पट्टे को राज्य रद्द कर सकती है.
पीठ ने कहा कि वर्ष 2002 में पर्यटन निगम ने जुलाई 1995 में दिए पट्टे को रद्द कर दिया, जिसके बाद फर्म ने निगम के खिलाफ वाद दाखिल किया.
न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मेट्रो निगम द्वारा जमीन पर कब्जे को अवैध बताकर ‘त्रृटि की है. इसलिए, जबतक संबंधित भूखंड को लेकर मूल वादी (फर्म) का अधिकार साबित नही हो जाता, जिसका फैसला लंबित दीवानी मामले के जरिये होगा, मूल वादी की रिट याचिका उच्च न्यायालय द्वारा नहीं सुनी जा सकती.”
न्यायालय ने नागपुर मेट्रो रेल निगम लिमिटेड की अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मौजूदा परिस्थितियों में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश लागू नहीं होगा.