छत्तीसगढ़
कोरबा/ 16 दिसंबर 2023/ चित्रा सिंह जो छत्तीसगढ़ विज्ञानं सभा कि रिसोर्स पर्सन है जो हिसार से तालुक रखती हैं। उन्होंने बताया कि इस वर्ष जेमिनी 14 दिसंबर को सुबह 6:00 बजे से साढे पांच बजे IST पर चरम पर था। हालांकि देखने का आखिरी मौका 17 दिसंबर तक है ।भारत में लोग उल्कापात को भारतीय समय अनुसार शाम 5:30 से सुबह 7:30 बजे तक देख सकते हैं।
आईए जानते हैं कि यह उल्कापात क्या है ?
आकाश से कभी-कभी जलती हुई रोशनी धरती पर गिरती हुई दिखाई देती है, जिसे हम उल्कापात कहते हैं। उल्का जब जलते हुए रूप में नीचे पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं तब हम उन्हे उल्का पिंड कहते हैं, और साधारण बातचीत में जिसे हम टूटते हुए तारे कहते हैं।उल्का पिंडों का वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है कुछ पिंड अधिकांशत लोहा, निकल या मिश्र धातुओं से बने होते हैं और कुछ सिलीकेट खनिजों से बने पत्थर जैसे होते हैं जो धातु से संबंधित होते हैं उन्हें धात्विक कहते हैं और जो दूसरे खनिजों से बने हुए होते हैं उन्हें अश्मिक उल्का पिंड कहते हैं।उल्का पिंडों में जो तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं वो हैं कैल्शियम, निकल, अल्युमिनियम, गंधक, सिलिकॉन, मैग्नीशियम और ऑक्सीजन।उल्कापात का नामकरण उसके निकटतम तारामंडल या किसी भी चमकदार तारे के नाम पर रखा जाता है।सबसे अधिक दिखाई देने वाला उल्कापात पर्सिड्स है जो प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को दिखाई देता है।लियोनिद उल्कापात प्रत्येक वर्ष 17 नवंबर के आसपास अपने चरम पर होता है।आकाश से कभी-कभी जलती हुई रोशनी धरती पर गिरती हुई दिखाई देती है, जिसे हम उल्कापात कहते हैं। वास्तव में उल्कापिंड अंतरिक्ष में तीव्र गति से घूमता हुआ अत्यंत सूक्ष्म ब्रह्मांडीय कण होता है, धूल व गैस से निर्मित यह पिंड जब वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो घर्षण के कारण यह चमकने लगते हैं इसलिए इन्हें हम टूटता हुआ तारा या शूटिंग स्टार कहते हैं प्राय यह पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं जिसे उल्काशम (उल्का की राख) कहते हैं परंतु कुछ पिंड वायुमंडल के घर्षण से पूर्णतया जल नहीं पाते हैं और चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर गिर जाते हैं, जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसार उल्का पिंडों का नाम उस स्थान के नाम पर रखा गया है जहां वे पाए जाते हैं लंबे समय से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार उल्का पिंडों को नाम दिए जाते हैं और यह नाम उस स्थान का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां उल्कापिंड पाया गया था, किसी भी खोजकर्ता के नाम पर उल्का पिंडों का नामकरण नहीं किया जाता है।उल्का पिंडों का वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है कुछ पिंड अधिकांशत लोहा, निकल या मिश्र धातुओं से बने होते हैं,जिन्हे हम धातविक कहते हैं और कुछ सिलीकेट खनिजों से बने पत्थर जैसे होते हैं, उन्हें अश्मिक उल्का पिंड कहते हैं।उल्का पिंडों में जो तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं वो हैं कैल्शियम, निकल, अल्युमिनियम, गंधक, सिलिकॉन, मैग्नीशियम और ऑक्सीजन।उल्कापात का नामकरण उसके निकटतम तारामंडल या किसी भी चमकदार तारे के नाम पर रखा जाता है।सबसे अधिक दिखाई देने वाला उल्कापात पर्सिड्स है जो प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को दिखाई देता है।लियोनिद उल्कापात प्रत्येक वर्ष 17 नवंबर के आसपास अपने चरम पर होता है।यूं तो उल्कापात एक प्राकृतिक घटना है, फिर भी जब-जब यह बहुत ज्यादा मात्रा में दिखाई देती हैं तो जिस जगह से वह निकलती है उसे जगह के नाम पर उनका नामकरण किया जाता है।इस बार सबसे अच्छी बात यह है कि चंद्रमा बहुत जल्दी डूब जाएगा और आकाश में काफी अंधकार रहेगा जिस कारण हम आसानी से उल्कापात को देख पाएंगे।वैज्ञानिकों के अनुसार काले आकाश में आप एक घंटे मे 120 जैमिनी उल्कापात तक भी देख सकते हैं।उत्तरी गोलार्ध में रहने वाले खुशकिस्मत हैं क्योंकि इस गोलार्ध में यह उल्कापात बहुत ज्यादा मात्रा में होगा और बहुत बढ़िया से हम इनको देख सकते हैं। दिखेगा तो यह दक्षिणी गोलार्ध में भी लेकिन वहां पर इसके गिरने की मात्रा काफी कम होगी।जैमिनी तारामंडल के कैस्टर नमक तारे के बहुत पास से यह उल्कापात होता हुआ दिखाई देगा।3200 फैथों क्षुद्रग्रह इस जैमिनी उल्कापात के लिए उत्तरदायी है धूमकेतु और क्षुद्रग्रह से होने वाला उल्कापात अलग-अलग तरह का होता है।क्षुद्रग्रह किसी ग्रह से छोटे होते हैं लेकिन ये कंकर के आकार की वस्तुओं से बड़े होते हैं जिन्हें हम उल्का पिंड कहते हैं । धूमकेतु छोटे बर्फीले मिट्टी के गोले हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं धूमकेतु बर्फ और धूल से बने होते हैं जबकि क्षुद्रग्रह चट्टान से बने होते हैं, चट्टान से बनी वस्तुएं जब वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो घर्षण के कारण काफी मात्रा में ज्वाला निकलती है इसलिए ये हमें बहुत चमकीले नजर आते हैं।