रायपुर, 04 जनवरी 2024।
आधुनिक दुनिया में तरक्की और बराबरी के लिहाज से आज का दिन बेहद खास है क्योंकि आज ही दिन एक ऐसे महान शख्स का जन्म हुआ था, जिन्होंने आगे चलकर एक ऐसी लिपि का आविष्कार किया जिसकी बदौलत नेत्रहीन लोगों के लिए पढ़ने-लिखने में काफी सहूलियत हुई. हम बात कर रहे हैं उस महान शख्स की जिन्होंने लुई ब्रेल की खोज की, उनका नाम है लुई ब्रेल.
नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करने वाले लुई ब्रेल का आज ही के दिन 1809 में फ्रांस के एक छोटे से कस्बे कुप्रे में जन्म हुआ था. लुई 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. लुई ब्रेल जिन्होंने खुद नेत्रहीन होने के बावजूद दृष्टिहीनों को पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाने को लेकर एक नया आविष्कार किया, जिसे ब्रेल लिपि कहा जाता है और इसकी मदद से आज बड़ी संख्या में नेत्रहीन लोग अपना पढ़ाई पूरी करते हैं.
जन्म से ही नेत्रहीन नहीं थे लुई ब्रेल
हालांकि फ्रांस के रहने वाले लुई ब्रेल जन्म से ही नेत्रहीन नहीं थे, लेकिन जब वह बहुत छोटे थे तो एक हादसे में आंखों की रोशनी चली गई थी. लुई ब्रेल के पिता रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम करते थे. 3 साल की उम्र में एक दिन लुई ब्रेल अपने पिता के औजारों के साथ खेल रहे थे तो अचानक उन्हीं में से एक औजार उनकी आंख में लग गया. शुरुआत में इलाज कराने पर थोड़ी राहत मिली लेकिन गुजरते वक्त के साथ उनकी तकलीफ बढ़ती चली गई. तकलीफ इस कदर बढ़ती चली गई कि जब वह 8 साल के हुए तो उनके आंखों से दिखना बंद हो गया और नेत्रहीन हो गए.
आंखों की रोशनी गंवाने के बाद जब लुई ब्रेल 16 साल के हुए तो एक दिन उन्हें ख्याल आया कि क्यों न नेत्रहीनों के लिए पढ़ने को किसी ब्रेल पर काम किया जाए और फिर वह इस विचार पर काम करने लगे. इस दौरान उनकी मुलाकात फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से हुई. बार्बियर ने लुई ब्रेल को ‘नाइट राइटिंग’ और ‘सोनोग्राफी’ के बारे में बताया था, जिसकी मदद से सैनिक अंधेरे में पढ़ा करते थे.
इस ‘नाइट राइटिंग’ में लिपि कागज पर उभरी हुई होती थी, जिसमें 12 बिंदु थे. इसमें 12 बिंदुओं का प्रयोग किया गया था, जिन्हें इसे 6-6 की 2 पंक्तियों में रखा गया था. हालांकि ‘नाइट राइटिंग’ लिपि में विराम चिन्ह, संख्याएं और किसी तरह के गणितीय चिन्ह नहीं थे.
लुई ने ब्रेल लिपि में 64 अक्षर शामिल किए
‘नाइट राइटिंग’ लिपि की जानकारी मिलने के बाद लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए खास लिपि बनाने की योजना पर काम करने लगे. लुई ने ब्रेल लिपि में 12 की जगह केवल 6 बिंदुओं का इस्तेमाल कर 64 अक्षर और निशान तैयार किए. हालांकि ब्रेल लिपि में उन्होंने गणितीय चिन्हों, विराम चिन्ह और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए जरुरी चिन्ह भी बनाए. इस तरह लुई ब्रेल ने 1825 में महज 16 साल की उम्र में ही नेत्रहीनों के पढ़ने-लिखने में मदद के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार कर डाला.
हालांकि लुई ब्रेल ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सके. 1851 में लुई को ट्यूबर कुलोसिस यानी टीबी की गंभीर बीमारी और वह लगातार इसकी चपेट में आते चले गए. फिर महज 43 साल की उम्र में अपने जन्मदिन के 2 दिन बाद 6 जनवरी 1852 में उनकी मौत हो गई.
ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल आज भी भारत में पूजे जाते हैं और वह काफी लोकप्रिय भी हैं. 2009 में भारत सरकार ने लुई ब्रेल की 200वीं जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट और दो रुपये का सिक्का जारी किया था. उनकी बनाई ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के लिए बड़ी मददगार साबित हुई
और आज भी इसका बखूबी इस्तेमाल किया जाता है.