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  • खुशियों की दास्तां – शहर से गाँव लौटे तो बात बन गई……

    खुशियों की दास्तां – शहर से गाँव लौटे तो बात बन गई……

    ग्वालियर, 22 फरवरी, 2024,

    “हम करके इतनी मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये, ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते” सुप्रसिद्ध गीतकार स्व. कुँअर बेचैन जी द्वारा रचित इन पंक्तियों को गीता ओझा ने चरितार्थ करके दिखाया है। वे शहर की चकाचौंध भरी जीवन शैली को दरकिनार कर गाँव लौटीं और देखते ही देखते अपना सफल स्व-रोजगार खड़ाकर लिया।

    अक्सर ये तो पढ़ने सुनने में आता रहता है कि रोजगार की तलाश में लोग गाँव से शहर की ओर पलायन करते हैं। पर गीता ओझा ने इससे उलट रोजगार की तलाश में शहर से गाँव की ओर रुख किया और उसमें सफल भी रहीं। वे ग्वालियर जिले की मुरार जनपद पंचायत के ग्राम मुगलपुरा में सफलता पूर्वक डेयरी व्यवसाय (भैंस-गाय पालन) कर अच्छी खासी आमदनी हासिल कर रही हैं। इससे पहले वे ग्वालियर शहर की कालपी ब्रिज कॉलोनी में अपने परिवार के साथ रहती थीं। गीता ने डेयरी व्यवसाय से हुई आमदनी से हाल ही में लगभग 6 लाख रुपए में एक बीघा खेत खरीदा है। साथ ही शहर में दूध-घी बेचकर अच्छे दाम प्राप्त करने के लिए एक लोडिंग वाहन भी खरीद लिया है।

    गीता बताती हैं कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और पति के साथ कोई काम-धंधा शुरू करने की मंशा के साथ हमने ग्वालियर शहर में रहना शुरू किया था। शहर में खूब हाथ-पाँव मारे पर कोई रोजगार नहीं ढूढ़ पाए। घर की रोजमर्रा की जरूरतों पर काफी खर्चा हो रहा था। शहर में खर्चा ज्यादा एवं आमदनी कम होने से हमने सोचा क्यों न अपने गाँव चलकर कोई काम-धंधा शुरू किया जाए। गीता कहती हैं कि गाँव पहुँचकर हम एनआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) के तहत गठित स्व-सहायता समूह से जुड़ गए। फिर क्या हमारी जिंदगी में खुशहाली ने दस्तक दे दी।

    मुगलपुरा गाँव में भ्रमण पर पहुँचें कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजेश चंदेल को गीता ओझा ने अपनी सफलता की दास्तां सुनाई। गीता बोली वर्ष- 2019 में शहर से गाँव में लौटने बाद हमने मात्र एक भैंस व एक गाय के साथ डेयरी व्यवसाय की शुरूआत की। इसके बाद एनआरएलएम से एक लाख बीस हजार रुपए का ऋण लेकर व्यवसाय को आगे बढ़ाया। वे कहती हैं कि एनआरएलएम से एक बार नहीं मुझे चार-चार बार आर्थिक सहायता मिलीं। आज हमारे पास उन्नत नस्ल की चौदह भैंसे व तीन गाय हैं। इससे मुझे हर माह खर्चा निकालकर औसतन पचास हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। इस आमदनी से हमने एक लोडिंग वाहन खरीद लिया है, जिससे मेरे पति को अब शहर जाकर दूध-घी बेचने में परेशानी नहीं होती है। साथ ही अच्छे दाम भी मिल जाते है। गीता बताती है कि सरकार की पीएमएफएमई योजना से हाल ही में मुझे तीन लाख साठ हजार रुपए का ऋण अनुदान मंजूर हुआ है, जिससे हम अपने कारोबार को और ऊँचाइयों पर ले जाएंगे।

    सफल उद्यमी बनीं गीता महिला सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रहीं हैं और वे अन्य ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई हैं। गीता कहती है कि हम शहर से गाँव लौटे तो सारी बातें बन गई। वे खुश होकर बोली कि भैंस-गाय पालन में जो थोडी बहुत कठिनाई आती है उसे हम तब भूल जाते है जब अपनी भैंस व गाय के दूध से बने पकवान बच्चों के साथ खाने बैठते हैं।