रायपुर 14 अप्रैल 2023/ आज चौथे दिन की कथा में पूज्य भाई श्री रमेश भाई ओझा जी ने बताया कि कई लोग पूछते हैं सत्संग में आप इतनी सारी अनुकरणीय बातें बताते हैं उनमें से कौन सी बातों को अमल में लाया जाए, तो मैं कहता हूँ जो आप अफोर्ड कर सकें, छोटी छोटी बातों को अमल में लाएँ फिर बड़े संकल्प की ओर बढ़ें।
कथा भी गंगा की तरह है एक बार अवतरित हो जाये तो उसे भक्तों को पुकारना नही पड़ता, सब अपने आप आते हैं।
कथा एक सर्जरी की तरह है अस्पताल में शल्यक्रिया होती है यहाँ शास्त्र क्रिया होती है। हर रोग के कुछ लक्षण होते हैं सद्गुरु रूपी वैद्य ही उज़के समझकर आपकी सर्जरी करते हैं। ये कथा भवरोग की दवा है। यदि इनके अनुसार चलेंगे तो ट्रीटमेंट हो सकेगा इसलिये इसे संजीदगी से लें।
कथा चरित्र बनाने के लिए होती है उसके साथ कई पुण्य कार्य हो जाते हैं पर उद्देश्य तो एक है समाज को बनाना। मार्गदर्शन करना।
कथा हमे मोक्ष दिलवाती है मो अर्थात मोह, क्ष अर्थात क्षय।
भाई श्री ने कहा रायपुर की धरती पर स्वामी जी विवेकानन्द को याद करते हुए एक बात कहना चाहता हूँ कि स्वामी जी ने समस्त पापों की सूची में एक और पाप को जोड़ा, वह है कमज़ोर होना। कमज़ोर होना उतना ही पाप है जितनी कि हिंसा, असत्य , क्रोध आदि है। शुकदेव ने देखा ऐसी पवित्र कथा को सुनने के लिए उनके पिता भी श्रोताओं की पंक्ति में बैठे हैं उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। भागवत को शुकदेव ने आसव की तरह माना जिससे एक तरह का नशा हो जाता है, जैसे व्यसनी नशे के बिना रह नहीं सकता उसी तरह किसी को श्रीकृष्ण के नाम का नशा हो जाये तो क्या कहने!
नारद जी के दो प्रौढ़ और दो बालक शिष्य थे प्रौढ़ शिष्य वाल्मीकि और वेदव्यास। नारद जी की ही प्रेरणा से वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की, और वेदव्यास जी ने नारद जी के बताए हुए चार श्लोकों का विस्तार करके सरस्वती नदी के तट पर भागवतगीता की रचना की जिसमे अट्ठारह हज़ार श्लोक हुए।
इस तरह परीक्षित राजा की जिज्ञासा शान्त करने शुकदेव ने कथा का वर्णन आरम्भ किया। राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट पर कलि के प्रभाव से कई हिंसाएं कीं थीं जिसका पश्चाताप करने पर उन्हें श्राप हुआ कि सात दिनों में परीक्षित की मृत्यु हो जायेगी, उन्ही सात दिनों में परीक्षित की मुक्ति के प्रयोजन से ये कथावाचन शुकदेव जी के द्वारा किया गया।
वामन अवतार,नरसिंह अवतार, वराह अवतार और कृष्ण जन्म की कथाएँ बताईं। कृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। जेल के सात दरवाज़े टूट गए जब बाल कृष्ण को लेकर पिता वासुदेव नन्द और यशोदा के गाँव कृष्ण को उफनती यमुना पार कर ले गए। पूरे स्टेडियम में नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, के घोष से गूँज उठा। सारे भक्त पुरूष ,महिलाएँ और बच्चे झूम झूम कर नृत्य करने लगे। सारा माहौल कृष्णमय हो गया। कल कृष्ण रुक्मणि विवाह का प्रसङ्ग होगा।