*रायपुर. 05 जनवरी 2023.* पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर (छ.ग.) में स्थित मल्टी डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एम. आर. यू.) में सीनियर साइंटिस्ट डाॅ. जगन्नाथ पाल एवं टीम द्वारा बेहद कम लागत वाली सिकल सेल एनीमिया जेनेटिक डायग्नोस्टिक टेस्ट विकसित की गई है। इस जेनेटिक डायग्नोस्टिक टेस्ट (आनुवंशिकता पर आधारित जांच की विधि) के माध्यम से सभी वर्ग के रोगियों में सिकल सेल एनीमिया की जांच बेहद कम खर्च में की जा सकती है। सिकल सेल जांच की इस विधि द्वारा विशेष रूप से नवजात शिशु सहित 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सिकल सेल रोग की जांच कर समय पर निदान किया जा सकता है। इसकी सहायता से प्रसव पूर्व भी गर्भवती महिलाओं में सिकल सेल एनीमिया की जांच की जा सकती है।
दो वर्ष से कम उम्र एवं नवजात शिशुओं में सिकल सेल जांच की सुविधा अब तक हमारे राज्य में नहीं है इसलिए यह जांच तकनीक सिकल सेल रोग के निदान एवं प्रबंधन में बेहद कारगर साबित होगी। चूंकि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में फीटल हीमोग्लोबिन ज्यादा होता है जिसके कारण वर्तमान में उपलब्ध कन्वेंशनल डायग्नोसिस सिस्टम – एचबी इलेक्ट्रोफॉरेसिस एवं एचपीएलसी विधि ( conventional diagnosis system Hb electrophoresis and HPLC Method ) द्वारा डायग्नोस नहीं किया जा सकता है। एमआरयू द्वारा जो नई सिकल सेल डायग्नोस्टिक तकनीक विकसित की गई है वह (qPCR) पर आधारित है जिसमें डी. एन. ए.(DNA) उपयोग में लाया जाता है जिससे हमें सटीक परिणाम प्राप्त होते हैं।
इस रिसर्च टीम में जूनियर साइंटिस्ट डाॅ. योगिता राजपूत के साथ अधिष्ठाता चिकित्सा महाविद्यालय डाॅ. तृप्ति नागरिया, अधीक्षक अम्बेडकर अस्पताल डाॅ. एस. बी. एस. नेताम, एम. आर. यू. की नोडल अधिकारी एवं विभागाध्यक्ष नेत्र रोग विभाग डाॅ. निधि पांडेय, स्त्री रोग विभागाध्यक्ष डाॅ. ज्योति जायसवाल, एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. स्मृति नायक एवं चंदूलाल चंद्राकर स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डाॅ. प्रदीप कुमार पात्रा शामिल हैं।
टेस्ट की तकनीक के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए एमआरयू के सीनियर साइंटिस्ट डाॅ. जगन्नाथ पाल बताते हैं, इस टेस्ट की लागत बाजार में उपलब्ध अन्य महंगी कमर्शियल टेस्ट की तुलना में बहुत कम है। इस टेस्ट के माध्यम से सभी वर्ग के रोगियों की जांच बेहद कम खर्चे में लगभग 20 से 50 रुपये के अंदर की जा सकती है। विशेष रूप से नवजात शिशु सहित 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सिकल सेल रोग का निदान किया जा सकता है एवं प्रसव पूर्व भी गर्भवती महिलाओं में सिकल सेल एनीमिया की जांच की जा सकती है।
*अभी प्रक्रिया में है पेटेंट फाइलिंग*
डाॅ. जगन्नाथ पाल इस सम्बन्ध में कहते हैं कि डी. एन. ए. आधारित यह टेस्ट विधि अभी पेटेंट फाइलिंग की प्रक्रिया में है इसलिए इस टेस्ट तकनीक के बारे में ज्यादा खुलासा नहीं कर सकते। क्वांटेटिव पीसीआर (qPCR) प्रक्रिया पर आधारित इस जांच तकनीक के लिए केवल 100 माइक्रोलीटर यानी 0.1 एमएल के आसपास ब्लड की आवश्यकता पड़ेगी।
कोरोना काल में प्रदेश के विभिन्न मेडिकल काॅलेज में स्थापित क्यूपीसीआर मशीन से ही यह जांच हो जाएगी। इसके लिए अलग से मशीन की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा सिकल सेल रोग निदान के क्षेत्र में काफी प्रयास किए जा रहे हैं। अतः सिकल सेल जांच की इस विधि से नवजात शिशुओं तथा 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की स्क्रीनिंग करके सिकल सेल का प्रारंभिक प्रबंधन किया जा सकता है जिससे सिकल सेल की समस्या का निवारण प्राथमिक स्तर से ही शुरू किया जा सकेगा।
*कौन है सीनियर साइंटिस्ट डाॅ. जगन्नाथ पाल*
कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज से एम. बी. बी. एस. की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने स्पेश्यल सेंटर फाॅर माॅल्युक्युलर मेडिसिन जेएनयू नई दिल्ली से पी. एच. डी. किया। उसके बाद पोस्ट डाक्टरल फेलो के लिए डाना-फेबर (हावर्ड) चले गए और कैंसर इंस्टीट्यूट बोस्टन, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका) में बतौर साइंटिस्ट शोध कार्य किया। डाॅ. पाॅल वर्तमान में चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर के अंतर्गत संचालित एमआरयू यूनिट में संचारी एवं गैर संचारी रोगों पर शोध कर रहे हैं।