रायपुर 11 अगस्त 2023/
सतनामी समाज समाज सेवक कमल कुर्रे ने उनको याद करते हुए उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया की
मीनाक्षी देवी (मिनी माता) का जन्म असम राज्य के नवागांव नामक स्थान पर 15 मार्च 1916 को हुआ था। अब आप सोचेंगे की जन्म तो असम में हुआ था तो फिर मिनी माता जी छत्तीसगढ़ कैसे पहुंची ? परन्तु आपको यह बता देते है की मिनी माता जी का सम्बन्ध छत्तीसगढ़ से ही था परन्तु परिस्थिति ने उनके परिवार को छत्तीसगढ़ से असम पहुंचा दिया था।
कहा जाता है,कि अकाल किसी को भी राजा से रंक बना सकता है और ऐसा हुआ भी। बात है, साल 1897 से लेकर 1899 की, इस समय छत्तीसगढ़ में प्रकृति ने अपना कहर बरपाना शुरू किया था, तब इन 2 सालों में ऐसा सूखा पड़ा की, किसान खाने के मोहताज़ हो गए। लोगों का पलायन एक शहर से दूसरे शहर और दूसरे शहरों से अन्य राज्यों में होने लगा। परिस्थिति ऐसी निर्मित हो गयी थी,कि मालगुजारों को भी पलायन करना पड़ रहा था। ऐसे ही तब के बिलासपुर जिले के पंडरिया के पास के गांव सगोना के एक मालगुज़ार थे अघारीदास महंत, जिन्हे भी प्रकृति के इस कहर से बचने के लिए पलायन करना पड़ा था।
अघारीदास जी को एक ठेकेदार ने आश्वासन दिलाया की असम के चाय के बागानों में उन्हें काम दिलवा देगा, अघारीदास जी अपने अच्छे भविष्य की कामना लिए पलायन करने के लिए अपने पत्नी बुधियारिन और 3 बेटियाँ चांउरमती, पारबती और देवमती के साथ जाने को राज़ी हो गए, परन्तु किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। पलायन के समय कलकत्ता पहुंचने से पहले ही पारबती का निधन हो गया उनके पार्थिव शरीर कोअघारीदास जी को अपनी कांपती हाथों से गंगा नदी में प्रवाहित करना पड़ा। विपत्ति की यह घड़ी अभी कम भी नहीं हुई थी,कि उनकी दूसरी पुत्री चांउरमती की भी मृत्यु असम पहुंचने से पहले हो गयी। यह घटना अघारीदास और बुधियारिन के लिए किसी बड़े सदमें से कम नहीं था,और यह दोनों घटनाएं उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल गयी।
असम पहुंचने के पश्चात किसी तरह उन्हें चाय के बागान में तो काम मिल गया परन्तु उनकी पत्नी बुधियारिन का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। यह अघारीदास जी के लिए सबसे बड़ी क्षति थी । जिससे उनके लिए इससे पार पाना कठिन हो गया और वे अपने पीछे 6 साल की एक बेटी देवमती को अकेले छोड़ काल के मुँह में समा गए। 6 साल की उस बच्ची को एक दयालु परिवार का सहारा मिला, जिन्होंने उस बच्ची का इलाज कराया, पढ़ाया और काम भी सिखाया जिससे की देवमती को चाय बागान में काम मिल गया, कुछ दिनों बाद देवमती का विवाह बुधारीदास महंत से करवा दिया गया।
जन्म परिचय :
15 मार्च 1916 की रात देवमती के घर एक ऐसी कन्या का जन्म हुआ,जिन्होंने न सिर्फ अपने परिवार रोशन किया ,बल्कि आगे चलकर पुरे देश में फैले कुरीतियों का भी नाश किया। इस कन्या का नाम मीनाक्षी रखा गया, जिसे लोग प्यार से मिनी के नाम से भी बुलाते थे। मिडिल स्कुल तक की शिक्षा मिनी ने असम से ही प्राप्त की जो उनके जीवन में मिल का पत्थर साबित हुआ। 1920 के आते आते देश में स्वराज आंदोलन शुरू हो चुके थे, जिनका अमिट छाप मिनी माता के में भी दिखने लगा था। उन्होंने “बच्चा पार्टी” के सदस्य के रूप में भी काम किया था, गाँधी जी द्वारा चलाए जाने वाले स्वदेशी अभियान में भी सम्मिलित हुई, इस अभियान से जुड़ने के बाद से ही मिनीमाता जी ने स्वदेशी वस्त्र धारण करना शुरू कर दी थी।
विवाह:
बात उस समय की है जब देश में सतनाम पंथ का प्रचार-प्रसार तत्कालीन धर्मगुरु गुरु अगमदास जी के ऊपर था। गुरु अगमदास जी इसी के लिए असम प्रवास पर थे और वे मिनी माता के परिवार में ही रुके थे, अगमदास जी निःशंतान होने के कारण अपने परिवार और उत्तराधिकारी को लेकर चिंतित थे और यह चिंता उन्होंने मिनी माता के परिवार के साथ भी साझा किया, देवमती जी ने संकेत समझकर 1932 में मिनी माता का विवाह गुरु अगमदास जी से करवा दी। इस प्रकार मिनी माता पुनः असम से छत्तीसगढ़ पहुँच जाती है।
मिनी से मिनी माता बनने का सफ़र:
गुरु अगमदास जी छत्तीसगढ़ के एक प्रसिध्द व्यक्ति थे जिनका सतनाम समाज में काफी प्रभाव था, जिसके कारण उनके घर में तब के स्वतंत्रता सेनानियों का जमावड़ा लगा करता था और यह काफी सुरक्षित भी था। इन स्वतंत्रता सेनानियों का प्रभाव मिनी माता के स्वाभाव में भी दिखने लगा था। इन्ही सब कारणों से उनकी मन में भी समाज और देश के लिए कुछ करने की भावना बलवती होती गयी।
जैसे ही लगता है सब कुछ अच्छा चल रहा है, विधि का विधान कुछ और ही सोच कर बैठा होता है, 1954 में गुरु अगमदास जी की मृत्यु के बाद कर्तव्य का सारा बोझ मीनाक्षी देवी के कन्धों पर आ गया था,क्योकि उस समय उनके बेटे विजय कुमार की उम्र काफी काम थी, जो इस कर्तव्य को उठाने के लायक नहीं हुए थे। मीनाक्षी देवी अपने पारिवारिक दायित्व का अच्छे से निर्वहन करने के साथ-साथ सामाजिक दायित्व का भी काफी अच्छे से निर्वहन कर रही थी, जिसके कारण उनकी प्रसिद्धि काफी बढ़ गयी थी। वर्ष 1955 के उपचुनाव में संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर,बिलासपुर और दुर्ग में अपना परचम लहराकर छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद होने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ।
मिनी माता का राजनितिक सफर:
1955 उपचुनाव जीतकर में सर्वप्रथम महिला सांसद बनने का गर्व प्राप्त हुआ।
1957 में पुनः संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर,बिलासपुर और दुर्ग से जीतकर सांसद बनी।
1962 में बलौदाबाजार क्षेत्र से 52 फीसदी ज्यादा मतों से जीतकर दिल्ली में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व की।
1967 में जांजगीर संसदीय क्षेत्र से पिछले बार से ज्यादा मत प्रतिशत के साथ जीतकर सांसद में अपना दमदार प्रतिनिधित्व का लोहा मनवाई।
मिनी माता ने 1971 के चुनाव में पुनः जांजगीर क्षेत्र से चुनाव जीतकर पांच बार चुनाव जितने का तमगा हासिल की।
मिनी माता की राजनितिक उपलब्धियाँ:
वैसे तो मिनी माता ने ऐसे अनेक कार्य किये है जो उन्हें मीनाक्षी देवी से मिनी माता का दर्जा प्रदान किया। इसमें से कुछ प्रमुख उनलब्धियां निम्नांकित है:
1955 में अपने दम पर अस्पृश्यता बिल संसद में पास करवाया जो की पुरे देश में विशेष समुदाय के लोगों को उनका हक़ दिलवाने का काम किया।
1967 में एक बहुत बड़ी रैली का नेतृत्व मिनी माता के द्वारा किया गया, यह रैली भिलाई स्टील प्लांट के द्वारा 1966 में मजदूरों की छटनी के विरोध में चलाया गया था। इसी रैली के फलस्वरूप ही हज़ारों मजदूरों को काम से नहीं निकाला गया।
1968 जातिगत भेदभाव के कारण होने वाले लड़ाइयों के लिए भी आवाज बुलंद की, जिसके फलस्वरूप ही बहुत से जगह जातिगत भेदभाव को काम करने में सफलता हासिल हुई।
मिनी माता जी राज्य कांग्रेस समिति के महासचिव के पद पर भी रहीं।
गुरु घासीदास सेवा संघ और हरिजन एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष के पद पर भी रही।
इन्होने स्टेट डिप्रेस्ड लीग की उपाध्यक्ष के पद को भी सुशोभित किया।
मीनाक्षी देवी महिला मंडल रायपुर के सचिव के पद पर रहते हुए महिला उत्थान के अनेक कार्य किये।
मिनी माता जी ने सामाजिक कल्याण बोर्ड और जिला कांग्रेस समिति के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
मिनी माता द्वारा सामाजिक कार्य:
मिनी माता ने सामाजिक उत्थान के अनेक कार्य किये, जो उनके कद को सामाजिक क्षेत्र में और बढ़ा देता है।
उन्होंने गावों के विकास और उत्थान में अपना अमूल्य योगदान दिया, जिससे उनकी ख्याति जन- जन तक बढ़ती चली गयी।
दहेज़ प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ अपना अमूल्य योगदान दिया तथा इसके लिए अनेक कार्य किये।
शारीरिक रूप से विकलांग और गरीबों के विकास में मीनाक्षी देवी का योगदान सर्वोपरिय था।
मिनी माता जी ने महिलाओं की शिक्षा को लेकर अनेक अभियान चलाये जिससे की महिलाओं को समाज में उनका हक़ मिल सकें।
महिलाओं के साथ-साथ उनके बाल कल्याण के लिए योगदान अत्यंत सराहनीय था।
ग्रामीणों को स्वच्छता का सन्देश उनका सहयोग ग्रामीणों के विकास के लिए एक अहम् योगदान था।
चूँकि,उस समय हरिजन छात्रों को पढ़ाई के लिए दूसरे किसी जगह जाने पर रहने के लिए आश्रय कोई देने को तैयार नहीं होता था,इस बुराई को कम करने के लिए उन्होंने हरिजन छात्रावास के निर्माण में भी जोर दिया। समाज में व्याप्त अस्पृश्यता नामक राक्षस से लड़ने में उन्होंने सबसे अधिक योगदान दिया।
निधन ममतामयी मिनी माता का निधन दिल्ली प्रवास के दौरान हवाई जहाज दुर्घटना के कारण 11 अगस्त 1972 को हुआ। यह क्षति छत्तीसगढ़ के लिए सबसे अधिक पीड़ा प्रदान करने वाली थी। सतनामी समाज की गुरु माता की समाधि रायपुर बिलासपुर हाईवे में स्थित,सिमगा से 3 किलोमीटर की दूरी में बसे खडुवापुरी नामक गाँव में गुरु अगमदास जी के समाधी के पास में ही मिनी माता जी की भी समाधि बनायी गई है। यह स्थली सतनामी समाज के लिए एक सामाजिक महत्व देने वाली स्थली के रूप में चिन्हांकित है।
गौरव:
मिनी माता जी द्वारा किये गए सामाजिक उत्थान के काम और उनके ममतामयी स्वाभाव के कारण ही छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ में महिला कल्याण के लिए काम करने वाली महिलाओं या समूहों को हर साल “मिनी माता सम्मान” से नवाजा जाता है। उनके नाम से रायपुर बस स्टैंड का नाम रखा गयासाथ ही उनके स्मृति को बनाये रखें के लिए अनेक स्कूलों और कॉलेजों का नाम भी इन्ही के नाम से रखा गया। हसदेव बांगो परियोजन का नाम भी मिनी माता बांगों परियोजना रखा गया है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा भवन का नाम भी ममतामयी माता “मिनी माता” के नाम से किया गया है।