नई दिल्ली,08 अक्टूबर 2022 /
इधर आरिफ मृदंग बजा रहे हैं, उधर रिरिजु सुप्रीम कोर्ट को तुरही सुना रहे हैं। सबके सब लोकतंत्र की छाती पर पाँव रखे संविधान का बाजा बजा रहे हैं। उधर राजा पर्यटन पर है। अभी तक 66 देशों का पर्यटन कर चुका है, जिनमें से कई में अनेक अनेक बार की गयी यात्राओं का जोड़ शामिल नहीं है। इन दिनों वह धुंआधार देशाटन पर है। प्रमुदित, उत्फुल्लित, आल्हादित, बालसुलभ उत्साह से उत्साहित होकर दिन में 7 बार परिधान बदल रहा है। राजतंत्र के जमाने के राजा एक ही मुद्रा में बैठकर तैलचित्र बनवाते थे, मरे हुए शेर के ऊपर पाँव रखकर फोटो उतरवाते थे। उन्ही की नक़ल करने की कोशिश में वह नारद स्वयंवर काण्ड दोहरा रहा है। कभी हाथ फैला कर अभिराम मुद्रा में पोज दे रहा है, कभी युवा उत्साही पर्यटकों की तरह सूरज को हथेली में लेकर, तो कभी ऊंचे पर्वतीय शिखर पर हाथ रखकर फोटो सेशन कर रहा है। उसके अलावा फोटो फ्रेम में कोई और न आये, इसके लिए बच्चों की तरह बिफर रहा है, नजदीक आने वालों को दुत्कार-फटकार कर किनारे कर रहा है। देश और उसकी प्रजा भले किसी हाल में हो, घटना-दुर्घटना, मौक़ा-बेमौका हो या फिर काल या अकाल हो ; राजा के लिए वह पर्यटन और नयी-नयी पोशाकों के रैम्प शो और फोटो सत्रों का अवसर ही होता है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राजा मोरबी में हुयी करीब डेढ़ सौ गुजरातियों की स्तब्धकारी मौत – सांस्थानिक हत्याओं – के बाद 24 घंटे छुपे रहने के बाद वहां के लिए निकल चुका है। हर जगह की तरह यहां भी लाशों और घायलों से भरे अस्पताल को सजाया जा रहा है, उसके टाइल्स बदले जा रहे हैं, रंग रोगन किया जा रहा है ताकि राजा का शोकाभिव्यक्ति पर्यटन ठीक-ठाक हो सके। शोक, वेदना और पीड़ा के इन पलों में वह कपडे बदल सके और उसके फोटो सेशन के लिए समुचित चकाचौंध हो सके। यह अलग बात है कि अपने पूर्ववर्ती राजाओं की तरह बुद्धि-विवेक दरिद्र यह राजा भी असली बात भूल गया है कि वह जितनी बार कपडे बदल रहा होता है, दरअसल उतनी ही बार खुद को पहले से भी ज्यादा निर्वस्त्र और नग्न कर रहा होता है। वह यह सच भी भूल रहा है कि यह नग्नता की ग्लानि होती है, जो बार-बार परिधान बदलने को विवश करती है, मगर जाती उसके बाद भी नहीं है।
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मदमस्त दरबारी पर्यटक राजा धूमधड़ाके से बजा रहे संविधान का बाजा