Category: राज्य

  • बॉक्स ऑफिस पर फिर से परचम लहराने लौट रहे हैं शाहरुख खान, इस महीने से शूरू करेंगे अगले फिल्म की शूटिंग

    बॉक्स ऑफिस पर फिर से परचम लहराने लौट रहे हैं शाहरुख खान, इस महीने से शूरू करेंगे अगले फिल्म की शूटिंग

    मुंबई।

    बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान इन दिनों आईपीएल में अपनी टीम कोलकाता नाइट राइडर्स को सपोर्ट कर रहे हैं। बीते साल शाहरुख खान की तीन बड़ी फिल्में रिलीज हुई थी। इस लिस्ट में पठान, जवान और डंकी का नाम शामिल है। इन तीनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर ऐसा धमाल मचाया कि सभी लोग दंग रह गए। इसके बाद शाहरुख खान ने कुछ दिनों के लिए एक्टिंग से ब्रेक ले लिया है। इस बीच अब शाहरुख खान को लेकर ये रिपोर्ट सामने आई है कि वो फिर से शूटिंग शुरू करने वाले हैं। अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए किंग खान अब तैयार हो गए हैं।

    शाहरुख खान ने दिया अपडेट

      शाहरुख खान ने अब अपनी नई फिल्म पर अपडेट दिया है, जिससे उनके फैंस की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई है। शाहरुख ने ‘स्टार स्पोर्ट्स’ चैनल पर बात करते हुए कहा, ‘ मैं थोड़ा आराम करना चाहता था। मैंने दो-तीन फिल्में की हैं और तीनों ही फिल्मों में काफी फिजिकल वर्क भी करना पड़ा। इसलिए मैंने कहा कि शायद मैं कुछ समय की छुट्टी ली और मैंने पूरी टीम से कहा कि मैं आऊंगा मैच देखूंगा।’ बता दें कि शाहरुख खान ने ये भी बताया है कि वो अपनी अगली फिल्म की शूटिंग जुलाई या अगस्त में शुरू करेंगे।

    इस मूवी में नजर आएंगे शाहरुख खान

    मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो शाहरुख खान जल्द ही सुजॉय घोष की फिल्म ‘द किंग’ में नजर आने वाले हैं। दावा किया जा रहा है कि जुलाई और अगस्त से शाहरुख इस मूवी की शूटिंग करने वाले हैं। हालांकि इसपर शाहरुख ने कुछ नहीं कहा है। शाहरुख खान की अपकमिंग फिल्मों का फैंस को बेसब्री से इंतजार है। मालूम हो कि बीते साल रिलीज हुई शाहरुख खान की सभी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर परचम लहरा दिया था।

  • दीपक तिजोरी का चौंकाने वाला खुलासा, सैफ अली खान की Ex वाइफ ने किया था कुछ ऐसा, दंग रह गए थे एक्टर

    दीपक तिजोरी का चौंकाने वाला खुलासा, सैफ अली खान की Ex वाइफ ने किया था कुछ ऐसा, दंग रह गए थे एक्टर

    नई दिल्ली।

     बॉलीवुड एक्टर दीपक तिजोरी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. 90 के दशक में वह बॉलीवुड इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम हुआ करते थे. पिछले कुछ सालों से दीपक तिजोरी एक्टिंग के साथ-साथ निर्देशन में भी अपना हाथ आजमा रहे हैं. इन दिनों वह अपनी डायरेक्टोरियल मूवी ‘टिप्सी’ को लेकर छाए हुए हैं. दीपक तिजोरी फिल्म के प्रमोशन में जुटे हुए हैं. इस बीच उन्होंने सैफ अली खान की एक्स वाइफ अमृता सिंह को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है.

    जूम के साथ इंटरव्यू के दौरान दीपक तिजोरी ने बताया कि फिल्म ‘पहला नशा’ में कैमियो के लिए उन्हें शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान और अन्य कई सितारों से मदद मांगी थी. तीनों स्टार्स ने उन्हें सपोर्ट करने का वादा किया था. लेकिन उस वक्त सैफ की एक्स वाइफ अमृता सिंह ने कुछ ऐसा किया था, जिसकी वजह से दीपक तिजोरी दंग रह गए थे.

    हैरान रह गए थे दीपक तिजोरी
    दीपक तिजोरी ने बताया, ‘वो एक ऐसा पल था जब मैं वास्तव में हैरान रह गया था. शाहरुख खान, सैफ अली खान और आमिर खान आ रहे थे. लेकिन जब सैफ घर पर तैयार हो रहे थे. तब अमृता सिंह ने उनसे पूछा, ‘आप क्या कर रहे हैं? आप कहां जा रहे हैं? जब सैफ ने बताया कि वह दीपक की फिल्म के लिए जा रहे हैं, तो अृमता सिंह ने कहा, ‘आप ये कैसे कर सकते हैं? हमने इस तरह की चीजें कभी नहीं की. ऐसा कौन करता है?’ दीपक तिजोरी ने बताया कि अृमता ने सैफ को उनकी फिल्म को सपोर्ट करने से रोकने की पूरी कोशिश की थी.

    अब एक-दूसरे को सपोर्ट करते नहीं दिखते सितारे
    दीपिक तिजोरी ने बताया कि वह इस घटना से शॉक्ड रह गए थे क्योंकि 90 के दशक में बॉलीवुड स्टार्स एक-दूसरे को खूब सपोर्ट करते थे लेकिन अब ऐसा होता दिख नहीं रहा है.

    1993 में रिलीज हुई थी दीपक तिजोरी की ‘पहला नशा’
    दीपक तिजोरी ने ‘जो जीता वही सिकंदर’, कभी हां कभी ना, ‘बादशाह’ समेत कई फिल्मों में काम किया था, लेकिन ‘पहला नशा’ बतौर लीड एक्टर उनकी पहली फिल्म थी. इस मूवी को आशुतोष गोवारिकर ने डायरेक्ट किया था. यह मूवी साल 1993 में रिलीज हुई थी. इसमें पूजा भट्ट, रवीना टंडन और परेश रावल जैसे सितारे अहम किरदारों में नजर आए थे. वहीं, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, जूही चावला और राहुल रॉय का फिल्म में गेस्ट अपीयरेंस था.

  • LG ने दिल्ली महिला आयोग से हटाए सभी कर्मचारी, स्वाति मालीवाल ने कहा- महिलाओं पर मत करो जुल्म

    LG ने दिल्ली महिला आयोग से हटाए सभी कर्मचारी, स्वाति मालीवाल ने कहा- महिलाओं पर मत करो जुल्म

    नई दिल्ली।

    उपराज्यपाल वीके सक्सेना के आदेश पर दिल्ली महिला आयोग से 223 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया है। आरोप है कि दिल्ली महिला आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने नियमों के खिलाफ जाकर बिना अनुमति के इनकी नियुक्ति की थी। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने कहा कि एलजी साहब ने DCW के सारे कॉट्रैक्ट स्टाफ को हटाने का एक तुगलकी फरमान जारी किया है। आज महिला आयोग में कुल 90 स्टाफ है, जिसमें सिर्फ 8 लोग सरकार से दिये गये हैं, बाकी सब 3-3 महीने के कॉट्रैक्ट पर हैं। सब कॉट्रैक्ट स्टाफ हटा दिया जाएगा, तो महिला आयोग पे ताला लग जाएगा। ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग? खून पसीने से ये संस्था बनी है। उसको स्टाफ और सरंक्षण देने की जगह आप जड़ से खत्म कर रहे हो? मेरे जीते जी मैं महिला आयोग बंद नहीं होने दूंगी। मुझे जेल में डाल दो, महिलाओं पे मत ज़ुल्म करो।

  • युजवेंद्र चहल के पास IPL में इतिहास रचने का मौका, हैदराबाद के खिलाफ करना होगा बस ये काम

    युजवेंद्र चहल के पास IPL में इतिहास रचने का मौका, हैदराबाद के खिलाफ करना होगा बस ये काम

    नई दिल्ली।

    आईपीएल 2024 का 50वां मैच सनराइजर्स हैदराबाद और राजस्थान रॉयल्स के बीच खेला जाएगा. यह मैच शाम 7:30 बजे से खेला जाएगा. यह मैच हैदराबाद के राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम में खेला जाएगा. राजस्थान रॉयल्स की टीम शानदार फॉर्म में है. युजवेंद्र चहल टीम के लिए कमाल का प्रदर्शन कर रहे हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने आईपीएल में 200 विकेट पूरे किए थे. अब एक बार फिर उनके पास इतिहास रचने का मौका है.

    युजवेंद्र चहल के पास राजस्थान रॉयल्स के लिए इतिहास रचने का मौका होगा. इसके लिए उन्हें 5 विकेट्स की जरूरत पड़ेगी. दरअसल, अगर वे सनराईजर्स हैदराबाद के खिलाफ ऐसा कर देते हैं तो वह राजस्थान रॉयल्स के लिए आईपीएल में सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज बन जाएंगे. अभी यह रिकॉर्ड राजस्थान रॉयल्स के पूर्व क्रिकेटर सिद्धार्थ त्रिवेदी के नाम है. त्रिवेदी ने आईपीएल में राजस्थान के लिए अब तक कुल 65 विकेट लिए थे.

    अभी तक युजवेंद्र चहल ने राजस्थान के लिए 61 विकेट अपने नाम किए हैं. अगर वे इस मुकाबले में 5 विकेट ले लेते हैं तो वे सिद्धार्थ त्रिवेदी से आगे निकल जाएंगे. अगर वे सिर्फ 4 विकेट ले पाते हैं तो वह उनकी बराबरी पर आ जाएंगे. अब देखना होगा कि चहल इस मुकाबले में क्या ऐसा कर पाते हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने आईपीएल में 200 विकेट पूरे किए थे. फिलहाल वह आईपीएल में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं.

    सनराईजर्स हैदराबाद के खिलाफ राजस्थान रॉयल्स की प्लेइंग XI: संजू सैमसन (कप्तान), रियान पराग, संदीप शर्मा, रविचंद्रन अश्विन, ध्रुव जुरेल, युजवेंद्र चहल, आवेश खान, जोस बटलर, यशस्वी जायसवाल, रोवमैन पॉवेल, ट्रेंट बोल्ट.

  • भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा वेदांता ग्रुप, बिक सकता है स्टील बिजनेस

    भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा वेदांता ग्रुप, बिक सकता है स्टील बिजनेस

    नई दिल्ली।

     अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता ग्रुप (Vedanta Group) ने भारत को लेकर अपना रोडमैप तैयार कर लिया है. ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) ने कहा है कि वह आने वाले 4 साल में भारत में विभिन्न सेक्टर में लगभग 20 अरब डॉलर का निवेश करेंगे।साथ ही उन्होंने स्टील बिजनेस को बेचने के संकेत भी दिए. उन्होंने कंपनी के भारी-भरकम कर्जे को भी चिंता का विषय मानने से इंकार कर दिया।

    कई बिजनेस पर है वेदांता ग्रुप की नजर

    अनिल अग्रवाल ने बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि वेदांता ग्रुप भारत में निवेश को लेकर उत्साहित हैं. हम कई सेक्टर में निवेश करने की योजना बना चुके हैं. हमारा 4 साल का इनवेस्टमेंट प्लान तैयार है. फिलहाल हमारी नजर टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स और ग्लास बिजनेस पर है. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन और लैपटॉप बनाने में सेमीकंडक्टर्स और ग्लास की सख्त जरूरत पड़ती है. वेदांता ग्रुप इन दोनों ही बिजनेस में पहले से ही मौजूद है. सेमीकंडक्टर प्लांट के लिए उनके पास गुजरात में जमीन है. फिलहाल इसके लिए सही पार्टनर की तलाश की जा रही है।

    सही कीमत नहीं मिली तो चलाते रहेंगे स्टील बिजनेस

    स्टील बिजनेस को लेकर स्पष्टीकरण देते हुए अनिल अग्रवाल ने कहा कि वेदांता ग्रुप इसे जारी रखने के लिए पूरी तरह समर्पित है. इसे मार्च में बिक जाना चाहिए था. मगर, सही कीमत न मिलने के चलते फैसला नहीं हो सका. हालांकि, अगर हमें स्टील बिजनेस की सही कीमत मिले तो हम उसे बेचने को भी तैयार हैं. सही कीमत न मिलने पर हम यह बिजनेस चलाते रहेंगे. स्टील बिजनेस फायदे में है. साथ ही हमारे पास इसे चलाने के लिए भरोसेमंद टीम भी है।

    वेदांता ग्रुप ने कभी नहीं किया लोन डिफॉल्ट

    कंपनी के कर्ज के बारे में वेदांता ग्रुप के चेयरमैन ने कहा कि अभी हमारे ऊपर लगभग 12 अरब डॉलर का कर्ज है. हालांकि, इसे लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है. वेदांता ग्रुप ने आज तक कभी डिफॉल्ट नहीं किया है. हर बिजनेस को खड़ा करने के लिए कर्ज की जरूरत पड़ती है।

  • सिद्धार्थ आनंद ने कृष 4 पर दिया बड़ा अपडेट, सुपरहीरो बनकर बॉक्स ऑफिस पर परचम लहराएंगे ऋतिक रोशन

    सिद्धार्थ आनंद ने कृष 4 पर दिया बड़ा अपडेट, सुपरहीरो बनकर बॉक्स ऑफिस पर परचम लहराएंगे ऋतिक रोशन

    मुंबई।

    बॉलीवुड इंडस्ट्री के हैंडसम हंक ऋतिक रोशन की फिल्म फाइटर इसी साल बड़े पर्दे पर रिलीज हुई थी। मूवी में दीपिका पादुकोण भी लीड रोल में थी। इस फिल्म में ऋतिक रोशन ने पाकिस्तान को धूल चटा दिया था। इस मूवी को लोगों ने काफी तगड़ा रिस्पॉन्स दिया था, जिस वजह से ये बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। इस बीच ऋतिक रोशन की अपकमिंग फिल्म कृष 4 को लेकर एक अपडेट सामने आया है, जिसे जानने के बाद फैंस की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाएगी। बॉलीवुड के जाने-माने डायरेक्टर सिद्धार्थ आनंद ने फिल्म कृष 4 को लेकर बड़ा अपडेट दे दिया है।

    सुपरहीरो बनकर लौटेंगे ऋतिक रोशन

      ऋतिक रोशन की कृष 4 की चर्चा शुरू हो गई है। इस फिल्म को लेकर सिद्धार्थ आनंद ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। जैसे ही सोशल मीडिया पर कृष 4 को लेकर खबरें वायरल हुईं वैसे ही डायरेक्टर सिद्धार्थ आनंद ने इसपर रिएक्ट करके कहा कि हां वो आ रहे हैं। बता दें कि लोग अभी से ही ये चर्चा करने लगे हैं कि बॉक्स ऑफिस पर ऋतिक रोशन की फिल्म कृष 4 धमाल मचाने वाली है। ऐसे में अब देखना ये दिलचस्प होगा कि ये मोस्ट अवेटेड फिल्म कब बड़े पर्दे पर रिलीज होगी।

    इस साउथ एक्टर के साथ काम करेंगे ऋतिक रोशन

    बताते चलें कि बॉलीवुड स्टार ऋतिक रोशन इन दिनों वॉर की शूटिंग कर रहे हैं। बता दें कि इस फिल्म में साउथ के स्टार एक्टर जूनियर एनटीआर भी दिखाई देंगे। इस मूवी का अच्छा खासा बज बना हुआ है। इस फिल्म के लिए फैंस बेहद एक्साइटेड हैं। मालूम हो कि वॉर 2 के पहले पार्ट में ऋतिक के साथ टाइगर श्रॉफ ने धमाल मचाया था। इस मूवी ने बॉक्स ऑफिस पर सारे रिकॉर्ड्स तोड़ डाले थे। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि ऋतिक और जूनियर एनटीआर को जोड़ी को लोग कितना प्यार देते हैं।

  • वाईआरएफ की स्पाई यूनिवर्स में धांसू एक्शन करेंगी आलिया भट्ट और शरवरी वाघ

    वाईआरएफ की स्पाई यूनिवर्स में धांसू एक्शन करेंगी आलिया भट्ट और शरवरी वाघ

    मुंबई।

    बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट इन दिनों चर्चा में हैं। बीते साल आलिया भट्ट की फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी रिलीज हुई थी, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया था। आलिया भट्ट की कई फिल्में पाइपलाइन में हैं। इन सब में से सबसे खास वाईआरएफ की अपकमिंग स्पाई यूनिवर्स है। बता दें कि इस स्पाई में आलिया भट्ट बतौर लीड रोल में नजर आएंगे। वहीं इस फिल्म में एक्ट्रेस शरवरी वाघ की भी एंट्री हो गई है। इस बीच आलिया भट्ट और शरवरी वाघ को लेकर ये रिपोर्ट सामने आई है कि दोनों ने इस फिल्म के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।

    आलिया भट्ट और शरवरी वाघ की फोटोज हुई वायरल

     एक्ट्रेस आलिया भट्ट और शरवरी वाघ की कुछ तस्वीरें इंटरनेट पर धड़ल्ले से वायरल हो रही हैं। इन फोटोज में साफ पता चल रहा है कि दोनों अपनी अपकमिंग स्पाई मूवी के लिए खुद को तैयार कर रही हैं। एक तस्वीर में आलिया भट्ट जिम वियर में नजर आ रही हैं। वहीं दूसरे शरवरी वाघ भी इसी लुक में दिखाई दे रही हैं। इन फोटोज पर लोग जमकर रिएक्ट कर रहे हैं। जहां एक यूजर ने लिखा, आलिया और शरवरी आपलोग स्पाई फिल्म के लिए रेडी हो रहे है ना?’

    एक्शन अवतार में नजर आएंगी आलिया भट्ट

    मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आलिया भट्ट वाईआरएफ की अपकमिंग स्पाई यूनिवर्स में धांसू एक्शन करते नजर आएंगी। रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया है कि इस फिल्म में बॉबी देओल भी नजर आएंगे। हालांकि मेकर्स की ओर से अभी तक कुछ कंफर्म नहीं किया गया है। बताते चलें कि आलिया भट्ट सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और अक्सर अपने फैंस के साथ तस्वीरें तस्वीरें और वीडियोज शेयर करती रहती हैं। आलिया भट्ट की हर अदा पर करोड़ों लोग फिदा हैं।

  • रणबीर कपूर की रामायण में कैकेयी बनेंगी लारा दत्ता? एक्ट्रेस ने बताया सच

    रणबीर कपूर की रामायण में कैकेयी बनेंगी लारा दत्ता? एक्ट्रेस ने बताया सच

    मुंबई।

    बॉलीवुड स्टार रणबीर कपूर की फिल्म रामायण इन दिनों चर्चा में हैं। हाल ही में इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई है। बीते दिनों फिल्म रामायण के सेट से कुछ तस्वीरें सामने आई थीं, जिन्हें देख फैंस गदगद हो गए थे। इन फोटोज में रणबीर कपूर भगवान राम के रूप में नजर आ रहे थे। वहीं साई पल्लवी, माता सीता के लुक में दिखाई दी थीं। कुछ दिनों पहले ये खबर सामने आई थी कि बॉलीवुड एक्ट्रेस लारा दत्ता इस मूवी में कैकेयी का किरदार निभाने वाली हैं। इस विषय पर अब एक्ट्रेस लारा दत्ता ने खुद रिएक्ट किया है।

    लारा दत्ता ने कही ये बात

      इस फिल्म को देखने के बाद लोग काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं। बता दें कि आए दिन फिल्म को लेकर कोई न कोई नया अपडेट सामने आ रहा है। इस बीच कैकेयी बनने पर लारा दत्ता ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। लारा दत्ता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में में कहा, ‘काफी दिनों से मै भी ये बातें सुन रही हैं। इन अफवाहों को सुनना और पढ़ना काफी अच्छा लग रहा है। वैसे कौन रामायण का हिस्सा नहीं बनना चाहता है। इस फिल्म मैं मंदरोदरी या सूर्पनखा का रोल निभाने के लिए भी तैयार हो जाती है।’

    कब रिलीज होगी रामायण

    बताते चलें कि रणबीर कपूर की फिल्म रामायण साल 2025 में दिवाली के मौके पर बड़े पर्दे पर रिलीज होगी। फैंस इस मूवी को देखने के लिए बेहद एक्साइटेड हैं। बीते साल प्रभास की मूवी आदिपुरुष सामने आई थी, जिसे लोगों ने कुछ खास रिस्पॉन्स नहीं दिया था। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि रणबीर कपूर की फिल्म रामायण को लोग कैसा रिस्पॉन्स देते हैं। इसपर आपकी क्या राय है हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

  • आज के दौर में ट्रेड यूनियन आंदोलन और चुनौतियां

    आज के दौर में ट्रेड यूनियन आंदोलन और चुनौतियां

     नई दिल्ली।

    आजादी के आंदोलन में ट्रेड यूनियनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है| वैसे तो वर्ष 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की स्थापना के साथ हमारे देश में संगठित ट्रेड यूनियन आंदोलन की शुरूआत मानी जा सकती है, लेकिन इससे पहले 1908 की जुलाई में बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के मुकदमे में 6 साल की सजा सुनाये जाने के बाद बंबई के चार लाख मजदूरों ने 6 दिनों की ऐतिहासिक हड़ताल करके आजादी के आंदोलन में सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया था| यह मजदूर वर्ग की पहली राजनैतिक लड़ाई थी, जिसने उपनिवेशवादी शोषण और आर्थिक बदहाली के खिलाफ आम जनता के असंतोष को अभिव्यक्त किया| 1936 में किसान सभा की स्थापना के साथ साम्राज्यवाद के खिलाफ मजदूर-किसान एकता की वर्गीय भावना तेज हुई| 1946 में नौसेना का विद्रोह, जिसमें एक साथ कांगेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे फहराए गए थे, इसकी चरम अभिव्यक्ति थी, क्योंकि हर वर्दी के नीचे एक किसान छुपा हुआ था| इस विद्रोह ने देश से अंग्रेजों की विदाई को अंतिम रूप दे दिया|

    आजादी के बाद ट्रेड यूनियनों की भूमिका देश के नव-निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई| हालांकि ट्रेड यूनियनें बनती हैं मजदूरों की आर्थिक समस्याओं को केंद्र में रखकर, लेकिन हमारे देश में ट्रेड यूनियनों की भूमिका सामूहिक सौदेबाजी की ताकत पर मजदूरों के केवल वेतन-भत्तों/मजदूरी बढ़ाने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उसे व्यापक राजनैतिक सवालों से भी जूझना पड़ा है| इस ट्रेड यूनियन आंदोलन ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का समर्थन किया, तो आपातकाल के खिलाफ भी उसे जूझना पड़ा| महंगाई और बेरोजगारी के सवाल को उसने हमेशा केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों से जोड़कर देखा| मजदूर वर्ग की व्यापक एकता बनाए रखने के लिए उसे सांप्रदायिक-उन्मादी ताकतों से भी लड़ना पड़ा है| वह वैश्वीकरण-उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों से पैदा हो रहे संकट के खिलाफ संघर्ष करने के प्रति भी सचेत है और इन नीतियों के खिलाफ लड़ने के लिए व्यापक मजदूर-किसान एकता का निर्माण करने की जरूरत को भी शिद्दत से महसूस कर रहा है| वह समझ रहा है कि इस एकता के बल पर ही आम जनता के लोकतांत्रिक आंदोलनों का निर्माण किया जा सकता है| इस प्रकार, आजादी के आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी ट्रेड यूनियनों की भूमिका केवल मजदूरी बढ़ाने जैसे आर्थिक मुद्दों तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि हमारी मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने, समूचे समाज को संस्कारित करने और लोकतंत्र को बचाने-बढ़ाने और उसे मजबूत करने की रही है|

    लेकिन यूरोप के ट्रेड यूनियन आंदोलन और हमारे देश के ट्रेड यूनियन आंदोलन में एक बुनियादी अंतर है| यूरोपीयन समाज सामंतवाद की राख से पैदा हुआ पूंजीवादी समाज है| हमारे देश में सामंती समाज को ध्वस्त करके पूंजीवाद की स्थापना नहीं हुई है, बल्कि पूंजीवाद को सामंतवाद पर रोपा गया है| इसलिए यूरोप के पूंजीवाद ने भूमि के जिन सामंती संबंधों को बेहिचक नष्ट किया, भारत में ये संबंध बने रहे| यह पूंजीवाद का सामंतवाद के साथ गठजोड़ था, जिसके कारण पूंजीवादी संविधान के बुनियादी लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति हमारे देश का शासक वर्ग और सत्ताधारी पार्टियां कभी ईमानदार नहीं रही| नतीजन, धर्म-जाति-भाषा-क्षेत्र के आधार पर सामंती मूल्यों को बढ़ावा मिला, वैज्ञानिक सोच को दरकिनार करके अंधविश्वास और पोंगापंथ को पाला-पोसा गया, धर्मनिरपेक्षता पर सांप्रदायिक राजनीति को हावी होने दिया गया और धनबल और पहचान की राजनीति केंद्र में लाई गई| यह सब काम सुनियोजित तरीके से किया गया, ताकि पूंजीपतियों के मुनाफे पर कोई आंच न आने पाए और पूंजी के खिलाफ विकसित हो रहे संघर्ष को हर स्तर पर कमजोर किया जा सके| इस प्रक्रिया का हमारे समाज पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा| जनवादी-प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतें कमजोर हुई और इसका उतना ही बुरा असर हमारे देश के ट्रेड यूनियन आंदोलन पर भी पड़ा, क्योंकि सार रूप में ट्रेड यूनियनें हमारे समाज और सामाजिक संगठन का ही एक हिस्सा है| परंपरागत वामपंथी ट्रेड यूनियनें कमजोर हुई हैं| वामपंथी ट्रेड यूनियनों के कमजोर होने का अर्थ है, मजदूरों की वर्गीय एकता का कमजोर पड़ना| अब धर्म और जाति के आधार पर काम करने वाली ट्रेड यूनियनों का भी उदय हुआ| ये ऐसी ट्रेड यूनियनें हैं, जो मजदूरों को एक ‘वर्ग’ के रूप में संगठित होने और उनमें मजदूरवर्गीय एकता की भावना विकसित होने से रोकती हैं|

    नवउदारीकरण के दौर ने समूचे परिदृश्य को बदल दिया है और ट्रेड यूनियनों के सामने नई चुनौतियां पेश हुई हैं| मुनाफे अधिकतम करने की कोशिश में वित्तीय पूंजी और ज्यादा खूंखार और आक्रामक हुई है और आदिम संचय की प्रक्रिया ने परजीवी पूंजीवाद को जन्म दिया है| इस तरह लोकतंत्र, वैज्ञानिक चेतना और एक विकसित व सभ्य समाज के निर्माण के काम को पूंजीवाद ने त्याग दिया है| पूंजीवादी लोकतंत्र ने आम जनता और विशेषकर मजदूर वर्ग को जो अधिकार दिए हैं, उसे छीनने की प्रक्रिया तेज हो गई है और समूचे मजदूर वर्ग को बंधुआ दासता के युग में ढकेलने की कोशिश हो रही है| इसी का परिणाम है : श्रम कानूनों का निरस्तीकरण और श्रम संहिताओं को उन पर थोपा जाना| इस पूंजी ने वैचारिक वर्चस्व कायम करने के लिए मीडिया सहित अपने सारे संसाधनों को झोंक दिया है| जो कुछ आज तक संघर्षों से हासिल हुआ है, उसे बचाने की लड़ाई आज ट्रेड यूनियनों की मुख्य चिंता बन गई है। आज ट्रेड यूनियन आंदोलन का जोर चार श्रम संहिताओं की वापसी और पुराने श्रम कानूनों की बहाली पर है ; क्योंकि जो हासिल है, उसे बचाकर ही, और जो खो गया है, उसे फिर से पाकर ही आप आगे की लड़ाई लड़ सकते हैं|

    उदारीकरण के इन तीन-चार दशकों में भारत को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा गया है| इससे उच्चतर वर्ग खुशहाल हुआ है तथा उनकी आय और क्रय-शक्ति बढ़ी है| वही दूसरी ओर, मेहनतकश वर्ग का शोषण और तेज हुआ है और वे जिंदा रहने लायक मजदूरी भी नहीं कमा पा रहे हैं। संगठित क्षेत्र में रोजगार घटा है और असंगठित क्षेत्र में मजदूरों की संख्या कुल श्रम-शक्ति का 93% तक पहुंच गई है| स्थायी नियमित मजदूरों की जगह ठेका मजदूर ले रहे हैं, जो सेवा अवधि और सामाजिक सुरक्षा के लाभ से वंचित होकर घोर दरिद्रता का जीवन जी रहे हैं| संगठित क्षेत्र के विनिर्माण उद्योग में 1980 के दशक में यदि 100 रूपये का सामान तैयार किया जाता था, तो इसमें मजदूरी का हिस्सा 30 रूपये होता था, जबकि कच्चे माल की लागत 50 रूपये होती थी और पूंजीपति को मुनाफा 20 रूपये होता था| पिछले 40-45 सालों में यह स्थिति उलट गई है| आज मजदूरी का हिस्सा घटकर 10 रूपये से भी कम रह गया है और पूंजीपति का मुनाफा बढ़कर 60 रूपये से अधिक हो गया है| यह मेहनतकशों के बढ़ते शोषण को ही दिखाता है|

    इसका नतीजा है कि आज गरीब तबका बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बनाने में असमर्थ हैं। बेरोजगारी नई ऊंचाई पर पहुंच गई है और आज पिछले 50 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है| सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.44% है, जबकि शहरी बेरोजगारी दर 10.09% (दिसंबर 2022 की स्थिति में) है। सार्वजनिक क्षेत्र को कमजोर करने की दिशा में जो कदम सरकार उठा रही है, उससे सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार पाने की युवाओं की आशा ख़त्म हो रही है और उन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

    भारतीय राजनीति के उदारीकरण के बाद के चरण की एक उल्लेखनीय विशेषता है – नीति निर्माण और क्रियान्वयन पर कॉर्पोरेटों द्वारा अत्यधिक नियंत्रण प्राप्त करना। मोदी राज में इस नियंत्रण ने सारी हदें तोड़ दी हैं। सार्वजनिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर निजीकरण कॉर्पोरेट तुष्टिकरण का मुख्य तरीका है। यहां तक कि लाभ कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों का भी निजीकरण किया जा रहा है और कॉर्पोरेट एकाधिकार को आगे बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। देश की विशाल ढांचागत संपत्ति निजी कॉर्पोरेट कंपनियों और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित बड़े व्यावसायिक घरानों को सौंपी जा रही है। यह पूरी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और रोजगार के नुकसान और बेरोजगारी की खतरनाक स्थिति को और खराब करेगा। ऐसा अनुमान है कि लॉकडाउन के दौरान लगभग 12 से 20 करोड़ मजदूरों को अपना रोजगार गंवाना पड़ा है। इस प्रकार, उदारीकरण की प्रक्रिया ‘रोजगारहीन विकास’ से आगे बढ़कर ‘रोजगार-हानि’ से जुड़ गई है|

    भारतीय अर्थव्यवस्था की यह स्थिति इसके बावजूद है कि देश की विकास दर (सकल घरेलू उत्पाद – जीडीपी में) बढ़ रही है| इसके बावजूद भारत को संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक 2021-22 में 191 देशों में 132वां स्थान मिला है। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की रैंकिंग वर्ष 2021 में 121 देशों में से 101 से गिरकर वर्ष 2022 में 107 हो गई है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2022 की रैंकिंग में भारत को 146 देशों की सूची में 135वां स्थान मिला है। इसका अर्थ है कि जीडीपी विकास दर में वृद्धि आम जनता की समृद्धि और संपन्नता की सूचक होने के बजाये, भारतीय समाज में आर्थिक असमानता बढ़ने की और मानव विकास सूचकांक में और ज्यादा गिरावट आने की सूचक हो गई है|

    इन्हीं नीतियों का नतीजा है कि भारत में अरबपतियों की कुल संख्या वर्ष 2020 के 102 से बढ़कर वर्ष 2022 में 166 हो गई है। इसके विपरीत लगभग 23 करोड़ लोग — दुनिया में सबसे ज्यादा – अति-गरीबी में रहते हैं। ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट : द इंडिया सप्लीमेंट’ से पता चलता है कि भारत की 40 प्रतिशत से अधिक संपत्ति का स्वामित्व इसकी जनसंख्या के मात्र 1 प्रतिशत के पास है। 10 सबसे अमीर भारतीयों की कुल संपत्ति वर्ष 2022 में 27.52 लाख करोड़ रूपये थी और वर्ष 2021 की तुलना में इसमें 32.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा है। इसका अर्थ है कि विकास की पूरी प्रक्रिया में मेहनतकश जो संपत्ति पैदा कर रहे हैं, उसे हडपने की प्रक्रिया अश्लीलता की हद तक पहुंच गई है| भारत का ट्रेड यूनियन आंदोलन आम जनता और मेहनतकशों पर उदारीकरण जनित इन दुष्प्रभावों से लड़ रहा है|

    उदारीकरण की इस प्रक्रिया ने न केवल देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता के जीवन-अस्तित्व को सर्वनाश की ओर धकेला है, इसने एकजुट मजदूर वर्ग की अवधारणा को भी खंडित किया है| इसने मजदूर वर्ग के भीतर ही विभिन्न संस्तरों को भी जन्म दिया है, जिससे मेहनतकशों में वर्गीय एकता की भावना कमजोर हुई है| कुल श्रम-शक्ति में संगठित क्षेत्र के मजदूरों की हिस्सेदारी घटी है और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का प्रतिशत बढ़ा है और दोनों के बीच में आय/मजदूरी की असमानता भयावह रूप से बढ़ी है| आज देश के असंगठित क्षेत्र का मजदूर अपने जीवन-अस्तित्व की रक्षा के लिए ठीक उसी प्रकार संघर्ष कर रहा है, जैसे कि संकटग्रस्त किसान समुदाय|

    नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में इन विभिन्न संस्तर के मजदूरों को एकजुट करना – विशेषकर निजी उद्योगों के मजदूरों को संगठित करना – और उनमें मजदूर वर्गीय भावना पैदा करना ट्रेड यूनियन आंदोलन के लिए एक बड़ी चुनौती है| इन निजी उद्योगों में अब ट्रेड यूनियनों का पंजीयन ही बहुत कठिन काम है, क्योंकि नियोक्ता शुरूआत में ही नेतृत्वकर्ता मजदूरों को अपने दमन का निशाना बनाते हैं| ऐसे मामलों में राज्य के श्रम विभाग से भी कोई मदद नहीं मिलती, क्योंकि पूंजीपतियों के पक्ष में उन्हें पहले ही निष्प्रभावी बना दिया गया है|

    इन परिस्थितियों ने मजदूर वर्ग में प्रतिक्रियावादी विचारधारा और अपसंस्कृति के प्रसार के लिए उर्वर जमीन तैयार की है, क्योंकि मजदूरों की चेतना में सामंती मूल्य पहले से ही जिंदा है| कॉर्पोरेट-नियंत्रित मीडिया ने भी इन प्रतिक्रियावादी मूल्यों को बढ़ावा दिया है और मजदूर वर्ग के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया है| पूंजीवादी मीडिया ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से व्यक्तिगत सफलता के मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर उभारा है और ट्रेड यूनियनों के सामूहिक प्रयासों को नजरअंदाज किया है| इससे मजदूर वर्ग के एक हिस्से में, ख़ास तौर से शिक्षित और मध्यवर्गीय युवाओं में, जो व्यक्तिगत प्रयासों में ज्यादा और ट्रेड यूनियन गतिविधियों में कम विश्वास रखते हैं, भ्रम पैदा हुआ है| मजदूर वर्ग के बीच जाति, धर्म और इसी प्रकार की पहचान आधारित संगठनों का प्रभाव भी बढ़ा है और इससे वर्ग आधारित एकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है|

    मजदूर वर्ग के प्रगतिशील आंदोलन को इन विपरीत प्रवृत्तियों का निश्चित तौर पर सामना करना पड़ रहा है, लेकिन केवल एक मजबूत मजदूर वर्गीय आंदोलन के जरिये ही इसका मुकाबला किया जा सकता है| ऐसे आंदोलनों को विकसित करने का आधार भी उन्हीं भौतिक परिस्थितियों में छुपा है, जिसमें पूंजी उन्हें अपने दमन और शोषण का शिकार बनाती है| वर्गीय उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष की प्रक्रिया में ही वर्गीय एकता की अवधारणा का विकास होगा| इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने के उचित रास्ते खोजने होंगे और पूंजी के हमलों के खिलाफ एक प्रभावशाली संघर्षों में उसे लामबंद करना होगा| आज जब भारतीय पूंजी का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है और बड़े पूंजीपतियों के हाथों कई औद्योगिक और गैर-औद्योगिक कंपनियों का नियंत्रण हैं और ये कंपनियां वैश्विक उत्पादन के ढांचे से बंधी हुई है, मजदूर वर्ग में विभिन्न संस्तरों का होना भारतीय पूंजीवाद की विशेषता बन गया है| इन मजदूरों की चेतना का स्तर भी भिन्न-भिन्न होगा, लेकिन ये सभी पूंजी के शोषण के शिकार है|

    वर्ष 2008 से वैश्विक मंदी जारी है और हाल-फिलहाल इससे बाहर निकलने की कोई संभावना नजर नहीं आती| इस मंदी के प्रभाव से हमारा देश भी अछूता नहीं है| इसका अर्थ है कि कामकाजी लोगों की आर्थिक हालत में गिरावट आ रही है| इसी समय, हमारे देश की सरकारें विदेशी पूंजी और निजी निवेशकों की भावनाओं को सहला रही है| इस मंदी से निकलने के लिए और अपने मुनाफों को बनाए रखने के लिए पूंजीपति वर्ग मेहनतकशों पर बोझ लाद रहा है| मजदूर वर्ग को श्रम कानूनों से वंचित करना और उन पर श्रम संहिताओं को थोपा जाना इसी प्रयास का हिस्सा है, जो उन्हें संगठन बनाने और सामूहिक सौदेबाजी करने के बुनियादी अधिकार से वंचित करता है| इससे पूंजी और श्रम के बीच का अंतर्विरोध बढ़ रहा है| नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ संघर्षों को मजबूत करके ही ट्रेड यूनियनें इसका हल निकाल सकती है| इसलिए एक संयुक्त ट्रेड यूनियन आंदोलन को विकसित करने की सारी संभावनाएं भी मौजूद हैं|

    लेकिन नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ संघर्षों को तब तक व्यापक नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि इसे मोदी सरकार की सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ संघर्षों से जोड़ा नहीं जाता| वर्ष 2014 से मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी ताकतें मजबूत हुई है| यह सरकार फासीवादी आरएसएस के हिंदुत्व के एजेंडे को आक्रामक रूप से लागू कर रही है| सामाजिक-इथनिक विभाजनों को बरकरार रखते हुए भी वह इन सभी तबकों पर ‘हिंदुत्व की पहचान’ को थोपने में काफी हद तक सफल हुई है| इसका मजदूर वर्ग और कामकाजी लोगों पर भी बुरा असर पड़ा है| इसलिए, आज हिंदुत्व की विचारधारा का मुकाबला करना और एक ऊंचे स्तर की राजनैतिक चेतना के साथ वर्गीय एकता का निर्माण करना ट्रेड यूनियन आंदोलन के विकास के लिए बहुत जरूरी है| इसके लिए ट्रेड यूनियनों को कारखानों और कार्य-स्थलों से बाहर निकलकर मजदूरों और मेहनतकशों की बस्तियों में जाना होगा और उनके सामाजिक मुद्दों, जैसे : दलित उत्पीड़न व आदिवासियों के शोषण, को जबरदस्त तरीके से उठाना होगा तथा उन्हें प्रगतिशील सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़ना होगा| इसका अर्थ है कि ट्रेड यूनियनों को अपने संकीर्ण आर्थिक नजरिये से ऊपर उठकर सामाजिक-सांस्कृतिक दायित्वों का भी निर्वहन करना होगा|

    मार्क्स का नारा था : दुनिया के मजदूरों एक हो! इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है| इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों| आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है| ट्रेड यूनियन आंदोलन के सामने चुनौती यही है कि एक वर्ग विहीन और शोषण विहीन समाज निर्माण की दिशा में बढ़ने के लिए तथा मानव सभ्यता द्वारा अभी तक हासिल की गई उपलब्धियों को बचाने के लिए पूरे देश के मजदूर वर्ग को एकजुट करें, इस एकजुटता के आधार पर मजदूर-किसान एकता का निर्माण करें और इस एकता के आधार पर व्यापक लोकतांत्रिक जन आंदोलन का निर्माण करें, ताकि फासीवादी खतरे को शिकस्त दी जा सकें| जनतंत्र पर आधारित पूंजीवादी समाज ही समाजवाद की ओर आगे बढ़ने की राह खोल सकता है| ट्रेड यूनियन आंदोलन को इस चुनौती को स्वीकार करना होगा| मेहनतकशों की व्यापक वर्गीय एकता ही शासक वर्ग की चुनौती का मुकाबला कर सकती है| इस मुकाबले के लिए आज पहला कदम यही होगा कि हिंदुत्व-कॉर्पोरेट गठजोड़ पर आधारित संघ-भाजपा की फासीवादी सरकार की हार इस लोकसभा चुनाव में सुनिश्चित की जाएं।

  • खूंखार बल्लेबाजों के भरी टीम का निकाला दम, चेन्नई के गेंदबाज ने मैच के बाद खोला राज, कहा- हमारा एक ही लक्ष्य था

    खूंखार बल्लेबाजों के भरी टीम का निकाला दम, चेन्नई के गेंदबाज ने मैच के बाद खोला राज, कहा- हमारा एक ही लक्ष्य था

    चेन्नई।

     इंडियन प्रीमियर लीग 2024 में सबसे दमदार बल्लेबाजी क्रम मानी जाने वाली सनराइजर्स हैदराबाद की टीम को लगातार दूसरे मैच में शर्मसार होना पड़ा. पहले रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने हराया और अब चेन्नई सुपर किंग्स ने भी रनों का पीछा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने नहीं दिया. हैदराबाद के खिलाफ इंडियन प्रीमियर लीग के मैच में चार विकेट लेकर चेन्नई सुपर किंग्स की जीत के सूत्रधार बने तेज गेंदबाज तुषार देशपांडे ने कहा कि पावरप्ले में बेहद आक्रामक खेलने वाली सनराइजर्स के खिलाफ संयम रखना जरूरी था.

    चेन्नई ने पहले बल्लेबाजी के लिए भेजे जाने पर तीन विकेट पर 212 रन बनाए. जवाब में टूर्नामेंट में अब तक दो बार सर्वोच्च स्कोर का रिकॉर्ड बना चुकी सनराइजर्स 18.5 ओवर में 134 रन पर आउट हो गई. तीन ओवर में 27 रन देकर चार विकेट लेने वाले देशपांडे ने कहा ,‘‘ यह बेहतरीन प्रदर्शन था. हमारा एक ही लक्ष्य था कि सनराइजर्स जैसी टीम के सामने संयम रखना है क्योंकि वे पावरप्ले में काफी खतरनाक होते हैं.’’

    इंडियन प्रीमियर लीग के इस सीजन में दो बार इस टूर्नामेंट के इतिहास के सबसे बड़े स्कोर का रिकॉर्ड तोड़ा है. मुंबई इंडियंस के खिलाफ 277 रन बनाकर इस रिकॉर्ड को अपने नाम किया और फिर 20 दिन के भीतर ही रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के खिलाफ 287 रन बनाकर अपने ही बनाए रिकॉर्ड को तोड़ डाला. कमाल की बात यह कि दो बार रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करने वाली टीम की बल्लेबाजी पिछले दो मैच में बुरी तरह फ्लॉप रही है.

    उन्होंने कहा ,‘‘ पावरप्ले में उस लैंग्थ से गेंदबाजी करना अहम था. मैने उन्हें शॉट्स खेलने के लिये ललचाया. कुछ गेंदों को स्विंग मिली लेकिन उसके बाद कोई स्विंग नहीं मिल रही थी. हम एक रणनीति लेकर उतरे थे और उस पर बखूबी अमल किया.’’