Category: कृषि

  • कृषि विश्वविद्यालय में कृषि अभियंताओं के राष्ट्रीय सम्मेलन एवं संगोष्ठी का आयोजन 29 और 30 अगस्त को

    कृषि विश्वविद्यालय में कृषि अभियंताओं के राष्ट्रीय सम्मेलन एवं संगोष्ठी का आयोजन 29 और 30 अगस्त को

    रायपुर ।

    इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में ‘‘सतत विकास के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु कृषि अभियंताओं का योगदान’’ विषय पर 29 से 30 अगस्त 2024 को कृषि अभियंताओं का 36वां राष्ट्रीय सम्मेलन एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजिनियर्स (इंडिया) छत्तीसगढ़ स्टेट सेन्टर, रायपुर एवं स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कृषि अभियांत्रिकी संकाय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। इस राष्ट्रीय सम्मेलन सह संगोष्ठी में वर्तमान समय में कृषि के विकास हेतु बहु प्रासंगिक विषयों जैसे – इंजीनियरिंग इनपुट का संरक्षण और प्रबंधन, फार्म मशीनरी, कृषि प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन, गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत, मिट्टी और जल संरक्षण और प्रबंधन’’ आदि पर विस्तृत चर्चा होगी एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। इनमें मुख्यतः कृषि में जुताई-बुआई से लेकर कटाई-मड़ाई एवं प्रसंस्करण की क्रियाओं का मशीनीकरण, ड्रोन का उपयोग, रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली का उपयोग, कृषि बागवानी में अत्याधुनिक तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रोबोटिक्स एवं आई.ओ.टी. का प्रयोग आदि विषयों पर सार्थक संवाद, प्रदर्शन, प्रस्तुतिकरण एवं विचारों का आदान-प्रदान होगा। जलवायु परिवर्तन एवं कृषि कार्यों के समय पर संपादन में कृषि श्रमिकों की घटती उपलब्धता के परिपेक्ष्य में कृषि अभियंताओं के बढ़ते महत्व एवं कस्टम हायरिंग जैसे क्षेत्रों में उद्यमिता विकास की असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला जाएगा। इस कार्यक्रम में अभियंता, उद्यमी, वैज्ञानिक, उद्योगपति, शोधकर्ता, प्रगतिशील कृषक एवं देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के विद्वत्तजन शामिल हांगे तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए यथोचित रणनीति को अंतिम रूप देने देंगे।

    कार्यक्रम के आयोजन सचिव एवं स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. विनय कुमार पाण्डेय ने बताया कि इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया), कोलकाता के उपाध्यक्ष डॉ. नूतन दास, आई.आई.टी. खड़गपुर के पूर्व प्राध्यापक एवं सी.एस.वी.टी.यू., भिलाई के पूर्व कुलपति डॉ. बी.सी. मल, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल, परभणी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. इंद्रमणी, डॉ. सिंह कुलपति मेरठ विश्वविद्यालय, डॉ. गौड़ कुलपति, वैशाली, बिहार, डॉ. अम्बष्ठ अध्यक्ष, सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड, भारत सरकार, नई दिल्ली, डॉ. सयाली, सचिव और महानिदेशक, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया), कोलकाता, डॉ. ए.के. सिंह, सहायक महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारत सरकार, नई दिल्ली डॉ. रमना राव, निदेशक एन.आई.टी., रायपुर, डॉ. मेहता निदेशक, केन्द्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान, भोपाल, सहित देश भर के विख्यात विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे।

  • गाजरघास उन्मुलन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

    गाजरघास उन्मुलन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

    नारायणपुर ।

    कृषि विज्ञान केन्द्र केरलापाल, नारायणपुर द्वारा गाजरघास उन्मुलन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन नारायणपुर के विभिन्न ग्रामों में किया जा राहा है, इस कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य यह है कि आम जनता एवं किसानो को गाजरघास के हानी कारक प्रभाव एवं उसके नियत्रण के बारे में जागरूक करना, कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारीयों के द्वारा बताया गया कि गाजर घास जिसे आमतौर पर कांग्रेस घास, चटक चादनी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक विदेशी घास है, यह विदेशी खरपतवार अधिकतर रोड के किनारे, घर के बाडी में बंजर भूमि सहित कई स्थानों में उगता है, जो कि मनुष्य के स्वास्थय के लिये हानिकारक है। यह त्वचा एवं श्वसन तत्र को जबरदस्त हानी पहुंचाता है। इस घास से एलर्जी इतनी हानी कारक होती है कि मनुष्य घातक रूप से अस्थमा से ग्रस्त हो सकती है। गाजर घास मनुष्य के साथ-साथ पशुओं के लिये भी हानी कारक है। इसको नष्ट करने का उपाय यह है कि इस खरपतवार को फूलने से पहले ही उखाड़ कर जला देना चाहिए ताकि इसके बीज न बन पाए व न ही फैल पाए। जैविक उपाय जिसमे खरपतवार को छोटे अवस्था में 15 प्रतिशत नमक का घोल बना कर छिड़काव करना एवं अधिक मात्रा में फैल जाने पर खाली खेतों में मेढ़ पर ग्लाइफोसेट 41 फिसदी दवा का छिड़काव करने से इसका नियत्रंण किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारी एवं कर्मचारी के साथ किसान भाग ले रहे हैं।

  • फूलो की खेती से दीदियों को मिलेगी अतिरिक्त आमदनी

    फूलो की खेती से दीदियों को मिलेगी अतिरिक्त आमदनी

    रायपुर ।

    फूलों का उपयोग अपने घर, मंदिरों, शादी एवं सजावट सहित अन्य कार्यों के लिए किया जाता है। फूल श्रद्धा और भावना का प्रतीक है। अपने घरों के बगीचे, गार्डन, गमलों में भी अलग-अलग फूल लगाएं जाते हैं। सुबह-सुबह सुंदर और सुगंधित फूल देखकर मन आनंदित हो जाता है। दूरस्थ वनांचल क्षेत्र की महिलाओं को फूलों के खेती के प्रति प्रेरित करना और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए उद्यान विभाग द्वारा निःशुल्क पौधे भी उपलब्ध कराये जा रहे हैं। दंतेवाड़ा जिले की स्व-सहायता समूह की 45 दीदियां मिलकर लगभग 4 एकड़ खेत में फूलों की खेती कर आगे बढ़ रही हैं।

    जिला प्रशासन और बिहान योजना अंतर्गत जिले के महिला स्व सहायता समूह की दीदियों को फूलों की खेती करने के लिए उद्यान विभाग द्वारा प्रशिक्षण दिया गया है। यह प्रशिक्षण जिला दंतेवाड़ा के गाँव तुड़पारास, भोगाम, भैरमबंद में दीदियों को दिया गया। फूल उत्पादन के पश्चात महिला समूहों द्वारा फूलों से माला एवं गुलदस्ते बना कर माँ दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के प्रांगण में विक्रय किया जाएगा, ताकि वे अच्छी खेती करके मुनाफा कमा कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकें। दंतेवाड़ा के उद्यानिकी विभाग और सीएसआईआर राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के डायरेक्टर अजीत शासनी के मार्गदर्शन में महिला समूह की दीदियों को  विभिन्न प्रकार के फूलों के 60 हजार पौधे वितरण किये गये हैं।

  • कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर, महासमुंद एवं दुर्ग की वैज्ञानिक सलाहकार समितियों की बैठक संपन्न

    कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर, महासमुंद एवं दुर्ग की वैज्ञानिक सलाहकार समितियों की बैठक संपन्न

    रायपुर ।

    इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. (कर्नल) गिरीश चंदेल ने कहा है कि विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र स्थानीय किसानों की आवश्यकताओं तथा समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अपनी योजनाएं तैयारकर किसानां के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं। डॉ. चंदेल ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों तथा विषय वस्तु विशेषज्ञों से आव्हान किया कि वे फसलों की गुणवत्ता में सुधार कर तथा इनका मूल्य संवर्धन कर किसानों की आय बढ़ाने का कार्य करें। डॉ. चंदेल आज यहां निदेशक विस्तार सेवाएं, रायपुर में महासमुंद एवं (पाहंदा) दुर्ग कृषि विज्ञान केन्द्रों की वैज्ञानिक सलाहकार समितियों की बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में कृषि महाविद्यालय, रायपुर एवं महासमुंद के अधिष्ठाता, तीनों कृषि विज्ञान केन्द्रां के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन विभागों के अधिकारी तथा कृषक प्रतिनिधि शामिल हुए।

    बैठक में कृषि विज्ञान केन्द्र रायपुर, महासमुंद एवं दुर्ग के कार्यक्षेत्र में कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों के लिए चलाई जाने वाली लाभकारी योजनाआें पर चर्चा की गई तथा कृषक प्रतिनिधियों से प्राप्त स्थानीय आवश्यकताओं तथा समस्याओं के अनुरूप इनमें आवश्यक फेर-बदल करने के निर्देश दिये गये। बैठक के दौरान तीनों कृषि विज्ञान केन्द्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा उनके कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा संचालित योजनाओं, गतिविधियों एवं उपलब्धियों का प्रस्तुतिकरण किया गया। निदेशक विस्तार सेवाएं डॉ. एस.एस. टुटेजा ने इन कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा संचालित योजनाआें एवं गतिविधियों की की समीक्षा की तथा आवश्यक दिशा निर्देश दिये। इस अवसर पर संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, निदेशक प्रक्षेत्र एवं बीज डॉ. राजेन्द्र लाकपाले सहित बड़ी संख्या में कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे।

  • बीज उपचार एवं नर्सरी उपचार के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र की सलाह

    बीज उपचार एवं नर्सरी उपचार के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र की सलाह

     जांजगीर-चांपा।

    कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर-चांपा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ राजीव दीक्षित ने बताया कि फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग व्याधि का आक्रमण होता है जिनमें से बहुत से रोग बीज जनित होते हैं, बीजों को उपचारित कर बुवाई करने से फसलों को प्रारंभिक अवस्था में कीट व्याधि  लगने से बचाया जा सकता है।उन्होंने बताया कि किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि धान बुवाई पूर्व बीज अवश्य उपचारित करें। सर्वप्रथम धान बीज को 17 प्रतिशत नमक घोल से उपचारित करे स केंद्र के वैज्ञानिक शशिकांत सूर्यवंशी ने बताया कि इस हेतु 17 प्रतिशत नमक का घोल तैयार करने हेतु 10 लीटर पानी ड्रम में लेकर 1 किलो 700 ग्राम नमक को घोले। तत्पश्चात धान के बीज को ड्रम मे डूबाये, इससे स्वस्थ बीज ड्रम में नीचे की ओर बैठ जाएगा एवं पोचे दाने ऊपर तैर जावेंगे, स्वस्थ बीज को निकाल कर स्वच्छ पानी में दो से तीन बार धोवे तत्पश्चात बीज की प्रति एकड़ अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें स पानी से घुले बीज को छायादार स्थान में फैला देंवे। अब स्वस्थ बीज के चयन पश्चात इन बीजों को रासायनिक/ जैविक दवाओं से उपचारित करने हेतु एफआईआर नियम का पालन करें अर्थात पहले फफूंदनाशक से तत् पश्चात कीटनाशक से एवं अंततः जैविक दवाओं से बीज को उपचारित करें। फफूंदनाशक से उपचारित करने हेतु विभिन्न फफूंदनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम मेनकोजेब, थायराम, कैप्टान दवाओं की 2 से 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से लेवे एवं धान बीज को उपचारित करें। कीटनाशक से उपचार हेतु कार्ट्रेप हाइड्रोक्लोराइड, इंडोक्साकार्ब क्लोरानटेनिलीपोल, क्लोरोपायरीफॉस आदि दवाओं की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग कर धान को उपचारित करें। जैव उर्वरकों से उपचार हेतु विभिन्न जैव उर्वरक जैसे पीएसबी कल्चर, एजोसपाइरिलम की अनुशंसित मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

    रोपाई कर रहे कृषक थरहा/नर्सरी उपचार अवश्य करें स  थरहा उपचार करने हेतु जिस खेत से थरहा निकाला जा रहा है उस खेत में एक छोटा गड्ढा बना ले एवं यह अंदाज लगाये कि इसमें कितना पानी होगा फिर 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से उसमें क्लोरोपीरीफोस, इंडक्शाकार्ब या कारटापहाइड्राक्लोराइड दवा पानी में मिला दें एवं 100 ग्राम यूरिया डाल दे। अब जो मजदूर थरहा निकाल रहे हैं उनसे कहें की वह थरहाजुड़ी को गड्ढे में डालते जाएं 15 से 20 मिनट थरहा उस गड्ढे में रहता है तो धान का थरहा दवा को अवशोषित कर लेता है इस तरह थरहा उपचारित हो जाता है इसका फायदा यह है कि प्राथमिक अवस्था में जो तना छेदक का संक्रमण होता है उसे हम रोक सकते हैं ।अतः किसान भाइयों से अनुरोध है की बीज  उपचार एवं थरहा उपचार अवश्य करें।

    सावधानियां –
    धान को नमक पानी के घोल से उपचारित करने के पश्चात स्वच्छ पानी से अवश्य धोबे। दवाओं की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें। बीज उपचार करने हेतु सीड ड्रम का इस्तेमाल करें या पॉलीथिन  बिछाकर दवा को बीजो मे अच्छी तरह से मिलाये। उपचारित बीजों को छायादार स्थान में फैला कर रखें। जैव उर्वरकों से 2 घंटे बुवाई पूर्व बीजों को उपचारित करे। एफआईआर नियम का पालन अवश्य करें अर्थात पहले फफूंद नाशक तत्पश्चात कीटनाशक एवं अंततः जैव उर्वरकों से बीज को उपचारित करें।

  • दोगुना उत्पादन और लागत में कमी के चलते किसान अपना रहे हैं श्री पद्धति

    दोगुना उत्पादन और लागत में कमी के चलते किसान अपना रहे हैं श्री पद्धति

    रायपुर ।

    राज्य के सुदूर दंतेवाड़ा जिले में भी किसान श्री पद्धति को अपनाने लगे हैं। परंपरागत रूप से धान की बोनी के मुकाबले दोगुने उत्पादन और लागत में कमी इस पद्धति की खासियत है। चालू खरीफ मौसम में जिला प्रशासन और कृषि विभाग के संयुक्त प्रयास से 540 हेक्टेयर में धान की बोनी की गई है। जिले के अन्य किसानों को भी इस पद्धति को अपनाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ’’श्री पद्धति’’ से बोआई करने पर न केवल पानी की कम आवश्यकता पड़ती है साथ ही  इस पद्धति से खेती करने में फसल में रोग भी लगने की संभावना भी कम रहती है। इसके अलावा ’’श्री पद्धति’’ के बोनी में उर्वरक और रासायनिक दवाओं, कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी जगह ’’ग्रीन मन्योर’’ (हरी खाद) का उपयोग किया गया है। ’’श्री पद्धति’’ से खेती करने पर लगभग दो से ढाई गुना अधिक उत्पादन होगा। इसके लिए किसानों को लगातार प्रेरित किया जा रहा है। इस पद्धति से खेती के लिए जिले के विकासखंड गीदम, और दंतेवाड़ा क्षेत्र के किसानों द्वारा अधिक रूचि दिखाई जा रही है।

    अधिकारियों ने बताया कि ’’श्री पद्धति’’ बोआई के अन्य लाभ में कम बीज से अधिक उत्पादन भी शामिल है। इसके अलावा धान की खेती करने में लागत भी कम आती है। परंपरागत खेती में एक हेक्टेयर में जहां 50 से 60 किलो बीज की जरूरत पड़ती है, वहीं ’’श्री पद्धति’’ से धान की खेती में बीज जरूरत महज 5 से 6 किलो की ही होती है। ऐसे में किसानों को कम बीज में अधिक उत्पादन मिलेगा। जिला प्रशासन की पहल पर जिले में 600 हेक्टयर में श्री पद्धति से धान की बोनी का लक्ष्य रखा गया है इसके साथ ही 1200 हेक्टेयर रकबे में ग्रीन मैन्योर (हरी खाद) तैयार कर उत्पादकता को बढ़ाने दिशा में कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में बारिश की स्थिति जिले में अच्छी होने के चलते किसानों को ’’श्री पद्धति’’ से खेती के लिए अनुकूल अवसर मिला है। इस संबंध में कृषि विभाग द्वारा किसानों को खेती की तैयारी से लेकर पौधों की रोपाई की पूरी जानकारी दी जा रही है। साथ ही खरपतवार नियंत्रण के बारे में भी बताया जा रहा है। पिछले वर्ष तक जिले में महज एक सौ पचास हेक्टेयर में ही ’’श्री पद्धति’’ से किसान धान की खेती करते थे। जबकि इस वर्ष श्री पद्धति से धान की खेती का रकबा बढ़ाया गया है।

  • सड़क पर धान की रोपाई:पक्की रोड नहीं बनने पर ग्रामीणों ने जताया अनोखा विरोध, सरपंच-अधिकारियों से कई बार लगा चुके हैं गुहार

    सड़क पर धान की रोपाई:पक्की रोड नहीं बनने पर ग्रामीणों ने जताया अनोखा विरोध, सरपंच-अधिकारियों से कई बार लगा चुके हैं गुहार

    बालोद।

     मानसून का मौसम है. हर तरफ झमाझम बारिश हो रही है. किसान खेती किसानी में जुटे हैं. अक्सर आपने देखा होगा कि रोपाई का काम खेतों में किया जाता है लेकिन हम एक आपको ऐसा प्रदर्शन दिखा रहे हैं, जिसमें गांव वालों ने धान के पौधे सड़क और गलियों में रोप दिए.

    सड़क पर खेती कर अनोखा विरोध: दरअसल गांव वाले कीचड़ भरी गलियों में चलने की मजबूरी से परेशान हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि शासन प्रशासन और पंचायत से भी कई बार गुहार लगाई गई है. लेकिन परेशानी कम होने के बजाए अब बढ़ती जा रही है. अब गांव की गलियों में ही ग्रामीणों ने धान के पौधे रोप कर विरोध जताया है. अब इसका वीडियो भी तेजी से वायरल हो रहा है.

    छत्तीसगढ़ के मोहलाई गांव में अनोखा विरोध: यह बालोद जिले के मोहलाई गांव का मामला है. यहां ग्रामीण लड़कियां. महिलाएं और पुरुष सड़क पर धान रोप कर विरोध जता रहे हैं.

    गांव के हिरवानी ने बताया कि ”सड़क में पानी और कीचड़ की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. सरपंच से मांग किया कि अगर सड़क बनाना मुमकिन न हो तो फिलहाल बजरी या मुरुम डालकर ही कम से कम अस्थाई रूप से इस समस्या का निराकरण करें ताकि बच्चों को स्कूल जाने में कोई दिक्कत ना हो.”

    सड़क नहीं बनने से ग्रामीण परेशान: ग्रामीणों का कहना है कि कई बार गांव के लोगों ने सड़क बनवाने के लिए सरपंच, सचिव, अधिकारी, विधायक जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, लेकिन अब तक सड़क नहीं बन सकी है. ऐसे में परेशान होकर गांव के लोगों ने कीचड़ भरे रास्ते में धान का पौधा लगा दिया. ग्रामीणों का कहना है कि सब जगह जाकर अर्जी लगा दिया पर सुनवाई तो नहीं हुई इसलिए पौधा लगाना हमने उचित समझा है.

    जानिए क्या होती है रोपाई: धान की फसल लेने के लिए रोपाई एक प्रक्रिया है, जिसमें धान के पौधे को खेत में निश्चित दूरी पर लगाया जाता है. इसमें खरपतवार कम होती है. धान की फसल भी अच्छी होती है.

  • मोहनपुरा-कुंडालिया परियोजनाओं से 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मे होगी सिंचाई

    मोहनपुरा-कुंडालिया परियोजनाओं से 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मे होगी सिंचाई

    कौशल विकास और रोजगार मंत्री  गौतम टेटवाल के साथ गुजरात सरकार के जल संसाधन मंत्री  कुंवर जी भाई मोहन भाई बावलिया ने आज राजगढ़ जिले के मोहनपुरा-कुंडालिया सिंचाई परियोजना का अवलोकन किया। मोहनपुरा-कुंडालिया परियोजनाओं से लगभग 3 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी। दोनों प्रदेश के मंत्रियों ने मोहनपुरा डैम के समीप कृषिधाम का भी अवलोकन किया। स्थानीय किसानों एवं अधिकारियों से चर्चा कर योजना के संबंध में विस्तृत जानकारी ली। मंत्री  बावलिया ने एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत मोहनपुरा पंप हाऊस परिसर में पौधरोपण भी किया। स्थानीय सांसद  रोडमल नागर भी उपस्थित रहे।

    मोहनपुरा-कुंडालिया डेम की दोनों परियोजनाओं में 7 पम्प हाऊस से सिंचाई की व्यवस्था की गई है। दोनों डेम मे लगभग 26 हजार कि.मी. की पाईपलाइन बिछाई गई है। अंडरग्राउण्ड पाईप से किसानों के खेतों तक कनेक्शन दिये गये है। इसमें किसान कम पानी से अधिक सिंचाई कर पा रहे है। गुजरात के जल संसाधन मंत्री  बावलिया ने झझाड़पुर गाँव पहुँचकर प्रेशराइज पाईप प्रणाली का अवलोकन किया और स्थानीय किसानों से सिंचाई और फ़सल उत्पादन के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि कुंडालिया डेम के अवलोकन के बाद जानकर अच्छा लगा कि कम पानी में किस प्रकार से अधिक से अधिक सिंचाई की जा सकती है। मंत्री  बावलिया ने कहा कि वे गुजरात के कच्छ में नर्मदा जी का पानी पहुँचाने के लिए ऐसी ही परियोजना का प्लान तैयार कर रहें हैं‍। कुंडालिया परियोजना के अवलोकन से कच्छ परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने में आवश्यक मदद मिलेगी।

  • मंत्री मंडल की बैठक में मंडी अधिनियम में संशोधन किए जाने का लिया गया निर्णय

    मंत्री मंडल की बैठक में मंडी अधिनियम में संशोधन किए जाने का लिया गया निर्णय

    रायपुर.

    मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की अध्यक्षता में 19 जुलाई 2024 को मंत्रालय महानदी भवन में मंत्रिपरिषद की बैठक आयोजित हुई। बैठक में निम्नानुसार महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए –

    # मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रथम अनुपूरक अनुमान वर्ष 2024-2025 का विधानसभा में उपस्थापन के लिए छत्तीसगढ़ विनियोग विधेयक-2024 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया।

    *साय सरकार का किसानों के हित में एक और बड़ा फैसला*

    # किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन किए जाने का निर्णय लिया गया। मंत्रिपरिषद की बैठक में छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक-2024 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया।

    छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन होने से अन्य प्रदेश के मंडी बोर्ड अथवा समिति के एकल पंजीयन अथवा अनुज्ञप्तिधारी, व्यापारी एवं प्रसंस्करणकर्ता भारत सरकार द्वारा संचालित ई-नाम पोर्टल (राष्ट्रीय कृषि बाजार) के माध्यम से अधिसूचित कृषि उपज की खरीदी-बिक्री बिना पंजीयन के कर सकेंगे, इससे छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों और विक्रेताओं को अधिकतम मूल्य मिल पाएगा।

    संशोधन प्रस्ताव के अनुसार मंडी फीस के स्थान पर अब ‘‘मंडी फीस तथा कृषक कल्याण शुल्क‘‘ शब्द जोड़ा जाना प्रस्तावित है। संशोधन प्रस्ताव के अनुसार कृषक कल्याणकारी गतिविधियों के लिए मंडी बोर्ड अपनी सकल वार्षिक आय की 10 प्रतिशत राशि छत्तीसगढ़ राज्य कृषक कल्याण निधि में जमा करेगा। इस निधि का उपयोग नियमों में शामिल प्रयोजनों के लिए किया जा सकेगा।

    # छत्तीसगढ़ राज्य के नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि के आबंटन, अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन और भूमि स्वामी को हक प्रदान करने के संबंध में मंत्रिपरिषद ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इस संबंध में पूर्व में जारी निर्देश और परिपत्रों को निरस्त कर दिया है।

    जिसमें राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा नगरीय क्षेत्रों में अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन, शासकीय भूमि के आबंटन एवं वार्षिक भू-भाटक के निर्धारण एवं वसूली प्रक्रिया संबंधी 11 सितम्बर 2019 को जारी परिपत्र, नगरीय क्षेत्रों में प्रदत्त स्थायी पट्टों का भूमिस्वामी हक प्रदान किए जाने संबंधी 26 अक्टूबर 2019 को जारी परिपत्र, नजूल के स्थायी पट्टों की भूमि को भूमिस्वामी हक में परिवर्तित किए जाने के लिए 20 मई 2020 को जारी परिपत्र तथा नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि के आबंटन, अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन और भूमि स्वामी हक प्रदान करने के संबंध में 24 फरवरी 2024 को जारी परिपत्र शामिल हैं।

    मंत्रिपरिषद की बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि इन प्रपत्रों के अंतर्गत जारी आदेशों के तहत आबंटित भूमि की जानकारी राजस्व विभाग की वेबसाईट में प्रदर्शित की जाएगी और इस विषय में कोई भी आपत्ति और शिकायत प्राप्त होने पर संभागीय आयुक्त द्वारा इसकी सुनवाई की जाएगी।

    # मंत्रिपरिषद की बैठक में छत्तीसगढ़ माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक-2024 के प्रारूप का अनुमोदन किया गया। जीएसटी कॉउंसिल द्वारा इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर के संबंध में आगत कर प्रत्यय लिये जाने के प्रावधान को युक्तियुक्त बनाने एवं पान मसाला, गुटखा इत्यादि के विनिर्माण में लगने वाले मशीनों के रजिस्ट्रीकरण के लिए अधिनियम में कुछ संशोधन का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय के परिपेक्ष्य में केन्द्रीय माल और सेवा कर संशोधन अधिनियम 2024, 15 फरवरी 2024 अधिसूचित है। इस संबंध में छत्तीसगढ़ माल और सेवा कर अधिनियम 2017 में भी तद्नुसार संशोधन किया जाना प्रस्तावित किया गया है।

    # छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का 22वां वार्षिक प्रतिवेदन (01 अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2023 तक की अवधि के लिए) विधानसभा के पटल पर रखे जाने हेतु अग्रिम आवश्यक कार्यवाही के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को अधिकृत किया गया।

    –00–

  • बेटी का शौक पूरा करने शुरू किया मशरूम की खेती, बन गई ड्रोन दीदी

    बेटी का शौक पूरा करने शुरू किया मशरूम की खेती, बन गई ड्रोन दीदी

    जिले के छोटे से गांव मतवारी में रहने वाली जागृति साहू की कहानी प्रेरणा से भरी है। शिक्षिक नहीं बन पाने की मायूसी से उबरते हुए जागृति ने बेटी का शौक पूरा करने पहले मशरूम की खेती शुरू की। इससे लाखों रुपए कमाएं और मशरूम लेडी के नाम से वियात हो गईं। हर्बल गुलाल के कारोबार को भी नए आयाम तक पहुंचाया और अब ड्रोन उड़ाकर खेती में किसानों की मदद कर रहीं हैं। इस तरह मशरूम लेडी अब ड्रोन दीदी भी बन गईं हैं। जागृति जिले की प्रमाणित ड्रोन पायलट हैं।

    जागृति दो विषयों में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ बीएड की डिग्री प्राप्त की है। वह शिक्षक बनना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जागृति के पति चंदन साहू बताते है कि शिक्षक न बन पाने की निराशा की वजह से वह ज्यादा बात नहीं करती थी।

    वे कहते हैं कि मैंने उस वक्त सोचा कि किसी काम में व्यस्त होने से शायद इनका मन लगे। चूंकिं बेटी और मुझे मशरूम बहुत पसंद था तो मैंने उन्हें मशरूम की खेती करने का सुझाव दिया। बेटी की पसंद की वजह से जागृति ने यह कार्य प्रारंभ किया। देखते ही देखते बेटी की छोटी सी पसंद के लिए शुरू किया गया कार्य जागृति को उंचाईयों तक ले गया।

    इसके बाद उन्होंने अपनी रुचि को बढ़ाते हुए हर्बल गुलाल और घरेलू वस्तुएं बनानी शुरू की। साल 2019 में जागृति ने 33 लाख रुपए का मशरूम बेचा। जागृति ने अपने साथ और महिलाओं को भी मुनाफा दिलाया। आस पास के गांव की दीदियों को भी प्रशिक्षण देकर स्वावलंबन की राह दिखाई।

    जागृति बताती हैं कि जब उन्हें कैमिकल वाले गुलाल से होने वाले नुक़सान के बारे में पता चला। थोड़े अध्ययन के बाद पाया कि घर पर उगने वाली साग-भाजी और फूलों से ही हर्बल गुलाल बनाया जा सकता है।

    फिर समूह की दीदियों के साथ हर्बल गुलाल का उत्पादन प्रारंभ किया।

    पहले वर्ष समूह की दीदियों ने केवल 35 हज़ार रुपए का गुलाल विक्रय किया। पिछले वर्ष बहुत सारे ऑर्डर्स आए, उन्होंने लगभग 8 लाख 25 हज़ार रुपए की बिक्री की।

    अब पहुंचा रही नई तकनीक का लाभ

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल नमो ड्रोन दीदी में चयनित होकर उन्होंने ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण लिया। आज वह एक प्रमाणित ड्रोन पायलट हैं और ड्रोन दीदी के नाम से जानी जाती हैं। ड्रोन के माध्यम से वह खेतों में दवाइयों का छिड़काव करती हैं और इस नई तकनीक का लाभ किसानों तक पहुंचाती हैं। इससे किसानों का समय तो बचता है साथ ही श्रम और खर्च भी कम होता है।

    मिली मशरूम लेडी ऑफ दुर्ग की पहचान

    जागृति का सफर यहीं नहीं रुका। जागृति ने शासन की योजनाओं का लाभ लिया और एक सामान्य महिला से अपनी अलग पहचान बनाई। मशरूम की खेती से नई ऊंचाइयां प्राप्त करने पर उन्हें मशरूम लेडी ऑफ़ दुर्ग कहा जाने लगा। जागृति का सफऱ एक सामान्य महिला से लेकर लखपति दीदी बनने और आज ड्रोन दीदी के रूम में कृषि को उन्नति की ओर ले जा रहा है।