Category: कृषि

  • धान की फसल में तना छेदक, बंकी और झुलसा जैसे बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

    धान की फसल में तना छेदक, बंकी और झुलसा जैसे बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

    रायपुर ।

    छत्तीसगढ़ में चालू खरीफ सीजन में अब तक 48.16 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बोनी हो चुकी हैं। जबकि राज्य सरकार द्वारा इस सीजन में 48.63 लाख बोनी का लक्ष्य रखा गया है। इनमें प्रमुख रूप से धान की फसल की बोनी जाती है। इस साल अच्छी बारिश हुई हैं। लेकिन अच्छी बारिश होने के बावजूद, हाल के दिनों में तेज धूप और बदलते मौसम के कारण कुछ जिलों में धान की फसल में तना छेदक, बंकी और झुलसा जैसी बीमारियों के लक्षण सामने आ रहे हैं। कृषि विभाग ने किसानों को इन बीमारियों से बचाव के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
    कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि तना छेदक से बचाव के लिए किसान फेरोमोन ट्रैप और लाइट ट्रैप का इस्तेमाल कर सकते हैं। भूरा माहो कीट के नियंत्रण के लिए फोरेट का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। यदि कीट प्रकोप गंभीर हो जाता है, तो इमिडाक्लोप्रिड या इथीप्रोप$इमिडाक्लोप्रिड दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।धान की फसल में झुलसा रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्राइसाइक्लोजोल, आइसोप्रोथियोलेन, या टेबुकोनाजोल जैसी फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। छिड़काव दोपहर 3 बजे के बाद करने पर यह अधिक प्रभावी होगा, और 10 से 15 दिन के अंतराल पर इसे दोहराने की आवश्यकता होगी। जीवाणु जनित झुलसा (बहरीपान) रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकालकर 3-4 दिन तक खुला छोड़ने और 25 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी गई है। शीथ ब्लाइट रोग के लिए हेक्साकोनाजोल का छिड़काव उपयोगी साबित हो सकता है।
    कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि दलहनी और तिलहनी फसलों में जल निकासी का प्रबंधन सही तरीके से करें और फसल में कीट और बीमारियों की सतत निगरानी बनाए रखें। किसानों को धान की फसल में रोग और कीटों से बचाव के लिए आवश्यक जानकारी और मार्गदर्शन देने के लिए मैदानी अमलों को सक्रिय किया गया है। किसान अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी या कृषि विभाग से संपर्क कर सकते हैं।

  • गुलाब की खेती से महक रहा है रजनी का जीवन

    गुलाब की खेती से महक रहा है रजनी का जीवन

    रायपुर ।

     

     

    आज के समय में पारंपरिक खेती की तुलना में बागवानी या फूलों की खेती किसानों के लिए अधिक मुनाफा देने वाली खेती साबित हो रही है। मुख्य रूप से गुलाब की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है। गुलाब की मांग पूरे वर्ष बनी रहती है। साथ ही त्योहारों, शादी समारोह व विभिन्न आयोजनों के समय इसकी मांग काफी बढ़ जाती है। धान की पैदावार के लिए पहचान रखने वाले छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कटघोरा विकासखण्ड की कुमगरी की रहने वाली  रजनी कंवर ने गुलाब की खेती करके एक मिसाल कायम की है और दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनी है। रजनी ने विभागीय सहायता से डच रोज़ की खेती शुरू की और आज 30 हजार से अधिक की प्रतिमाह कमाई कर रही हैं। पिछले 5 माह में ही उसे 3 लाख से अधिक रूपए का शुद्ध मुनाफा हुआ है।

    कुछ नया करने के इरादे ने रजनी का डच रोज़ की खेती की तरफ बढ़ाया रुचि –

    रजनी बताती हैं कि वर्तमान समय में किसान को बेमौसम बारिश, तूफान, अतिवृष्टि, सूखा जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है साथ ही विभिन्न प्रकार के कीटों व बीमारियों से अपनी फसलों की रक्षा करनी पड़ती है। इतनी परेशनियों के बाद भी किसान को अपेक्षाकृत अधिक लाभ नहीं होता। उनके द्वारा पूर्व में भी अपनी जमीन पर धान की फसल उगाया जाता था, जिससे उन्हें अधिक आमदनी नही होती थी। रजनी व उनके पति श्री जय सिंह ने परम्परागत कृषि से अलग आधुनिक खेती कर अपने आय में वृद्धि करने की सोची। इसी दौरान लाभार्थी को नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड द्वारा डच रोज़ की खेती की जानकारी मिली। डच रोज़ कल्टीवेशन से लंबे समय तके होने वाले लाभ की सोच से उन्होंने इसका खेती करने का निश्चय किया और अपने जमीन पर पाली हॉउस तैयार कर गुलाब की खेती प्रारंभ की। उद्यानिकी विभाग द्वारा उनके हौसले को बढ़ाते हुए समय पर दस्तावेजों की पूर्ति कराई गई एवं नाबार्ड द्वारा 40 लाख का वित्तीय सहयोग प्रदान किया गया। जिसमें उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान भी दिया जा रहा है। साथ ही पॉली हाऊस में ड्रिप, बोर, स्टोरेज रूम जैसी सुविधाएं भी प्रदान की गई है। समय समय पर विभाग द्वारा रजनी को आवश्यक मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है। रजनी द्वारा फरवरी 2024 में अपने 2600 वर्गमीटर लगभग 65 डिसमिल जमीन पर पॉली हाऊस का निर्माण कराकर डच रोज़ की खेती प्रारंभ की गई। जहां उन्होंने इसकी 22000 पौधे का प्लांटेशन किया। पॉली हाऊस के अंदर डच रोज़ की खेती करने से पौधों को सीधे सूर्य की रौशनी, बारिश, आंधी से सुरक्षा मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई और टपक विधि से कम पानी में गुलाब की खेती में सफलता प्राप्त हो रही है। रजनी द्वारा किए गए गुलाब की खेती को देखने के लिए दूर-दूर से लोग भी आते हैं।उनके फॉर्म में प्रतिदिन 40 से 50 किलो गुलाब कल्टीवेशन किए जाते है। मजदूरों द्वारा इन गुलाब को तोड़कर डिमांड अनुसार पैकेजिंग व सप्लाई किया जाता है। रजनी ने बताया कि इन पौधों की ठीक ढंग से देखभाल करने से इनसे 2-3 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। जिससे लंबे समय तक पौधों से लाभ मिलेगा।गुलाब के उत्पादन के शुरुआत से ही बाजार में इसकी मांग आने से रजनी का उत्साह बढ़ा हुआ है। अपनी खुशी जाहिर करते हुए वे कहती है कि अपने पति जयसिंह के सहयोग व विभागीय मदद से उन्होंने डच रोज की खेती करने का बड़ा फैसला लिया है। जिसका अब उन्हें लाभ मिल रहा है। प्रतिमाह उसे मजदूरी भुगतान, दवाई, खाद सभी खर्चों के बाद भी औसतन 30-40 हजार तक का लाभ हो रहा है। वर्तमान में उनके द्वारा कोरबा, बिलासपुर, अम्बिकापुर में फूलो का विक्रय किया जा रहा है। साथ ही उनके द्वारा इवेंट ऑर्गेनाइजर, डेकोरेशन शॉप्स वालों से भी संपर्क किया जा रहा है। जिससे आगे चलकर बड़े पैमानों पर गुलाब का विक्रय किया जा सके। आने वाले त्यौहारों व शादी सीजन में बाजारों में फूलो की मांग बढ़ेगी जिससे उनके आय में और अधिक वृद्धि होगी।

  • एक साधारण किसान से मछली पालन के अग्रदूत बनने तक की प्रेरक यात्रा

    एक साधारण किसान से मछली पालन के अग्रदूत बनने तक की प्रेरक यात्रा

    रायपुर।

    जिले के ग्राम पंचायत तारा बहरा, तहसील केल्हारी के निवासी अरविन्द कुमार सिंह एक साधारण किसान थे। उनका जीवन भी अन्य ग्रामीण किसानों की तरह संघर्ष पूर्ण और चुनौतियों से भरा हुआ था। सीमित संसाधनों और पारंपरिक खेती के साधनों के माध्यम से आजीविका चलाने वाले अरविंद के लिए अपने परिवार की जरूरतें पूरी करना आसान नहीं था। फिर भी अरविन्द ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और हमेशा कुछ नया करने की कोशिश की। उनकी जिजीविषा और आत्मविश्वास ने उन्हें एक ऐसे रास्ते पर अग्रसर किया, जिसने न केवल उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि उनके जैसे सैकड़ों किसानों के लिए एक नया मार्ग भी प्रशस्त किया। अरविन्द कुमार सिंह का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता खेती से जुड़े थे, और खेती ही उनके परिवार की मुख्य आजीविका का स्रोत था। अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह अरविन्द भी बचपन से ही खेतों में काम करने लगे थे। उन्होंने अपने परिवार के साथ खेतों में मेहनत की और फसल उगाने के पारंपरिक तरीकों को सीखा। उनका परिवार खेती से होने वाली मामूली आय पर निर्भर था, जो अक्सर मौसम की अनिश्चितताओं, फसल की बर्बादी, और बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण अपर्याप्त साबित होती थी। अरविन्द को यह अहसास हुआ कि पारंपरिक खेती से मिलने वाली आय उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं थी, और उन्हें किसी वैकल्पिक आय स्रोत की तलाश करनी होगी। अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अरविन्द ने पारंपरिक खेती के अतिरिक्त अन्य विकल्पों के बारे में सोचना शुरू किया। वे जानते थे कि कृषि के क्षेत्र में कुछ नया करना आसान नहीं होगा, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य की चाहत उन्हें नए रास्तों की खोज के लिए प्रेरित करती रही।

    मछली पालन की दिशा से पहली कदम में ही मिली सफलता
    इसी दौरान अरविंद को राज्य की मछली पालन योजनाओं के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने महसूस किया कि मछली पालन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने इसे एक नए अवसर के रूप में देखा, जो न केवल नकी आर्थिक स्थिति को सुधार सकता था, बल्कि उनके जैसे अन्य किसानों के लिए भी एक नया रास्ता खोल सकता था। अरविन्द ने मछलीपालन के अपने विचार को मूर्त रूप देने के लिए राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने का निर्णय लिया। उस समय छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार, के शासन में मछलीपालन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं चला रही थी। वहीं से अरविन्द ने भी अपने विचारों को स्थानीय प्रशासन और कृषि अधिकारियों के साथ साझा किया, जिन्होंने उनकी योजनाओं को समझा और उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया। सरकार की तरफ से उन्हें डबरी (तालाब) निर्माण के लिए 70,000 रुपए की सब्सिडी दी गई। इसके अलावा उन्हें मछली के बीज (अंडे) भी उपलब्ध कराए गए, जिससे वे मछली पालन के व्यवसाय को प्रारंभ कर सके।
    अरविन्द कुमार सिंह ने अपने मछलीपालन के प्रयासों को विस्तार देने के लिए 3 से 4 एकड़ भूमि में बड़े तालाबों का निर्माण किया, जिन्हें स्थानीय भाषा में श्डबरी श् कहा जाता है। इन तालाबों में उन्होंने मछली की कई किस्मों का पालन शुरू किया, जैसे कि कतला, रोहू, मृगल, पंगेसियस (कैटफिश), रूपचंदा, और कारी मछली उन्होंने तालाबों में स्वच्छ पानी, उचित ऑक्सीजन का स्तर, और मछलियों के लिए उचित भोजन की व्यवस्था की। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें मछलीपालन में शीघ्र ही सफलता दिलाई। अरविन्द की पहली सफलता ने उन्हें और अधिक तालाब बनाने और मछलीपालन के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने मछलियों के प्रजनन और पालन-पोषण की नई तकनीकों को भी सीखा और अपने तालाबों में उनका सफलतापूर्वक उपयोग किया।

    मछली के बच्चों का उत्पादन और नवाचार
    अरविन्द ने केवल मछली पालन में ही नहीं, बल्कि मछलियों के बच्चों के उत्पादन में भी नवाचार किया। उन्होंने पांच छोटे तालाबों का निर्माण किया, जिन्हें विशेष रूप से मछली के बच्चों के पालन-पोषण के लिए तैयार किया गया था। इन तालाबों में उन्होंने कैटफिश (पंगेसियस) के बच्चों का सफलतापूर्वक उत्पादन किया। इस नवाचार ने उन्हें न केवल छत्तीसगढ़ में, बल्कि पूरे क्षेत्र में पहचान दिलाई। अरविन्द इस तकनीक को अपनाने वाले शायद छत्तीसगढ़ के पहले व्यक्ति थे। उनकी इस सफलता ने उन्हें मछलीपालन के क्षेत्र में एक अग्रणी के रूप में स्थापित किया और अन्य किसानों को भी मछलीपालन के लिए प्रेरित किया।

    आर्थिक लाभ और आत्मनिर्भरता की ओर कदम
    अरविन्द के मछली पालन व्यवसाय ने तेजी से सफलता प्राप्त की। उनके तालाबों में मछलियों की अच्छी उपज और उच्च गुणवत्ता के कारण, उन्होंने बाजार में मछलियों को बेचना शुरू किया। उन्होंने बताया कि वे सालाना लगभग 5 से 6 लाख रुपए की आय प्राप्त कर रहे हैं। उनकी आय में यह वृद्धि न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मददगार साबित हुई, बल्कि उनके परिवार के जीवन स्तर को भी सुधारने में सहायक रही। अब अरविन्द के पास अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन था, और उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना शुरू किया। मछली पालन के क्षेत्र में अरविन्द केवल एक व्यवसायी नहीं थे, बल्कि वे मछलियों के पोषण और स्वास्थ्य लाभ के प्रति भी जागरूक थे। उन्होंने बताया कि रूपचंदा मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है, जो शरीर के समुचित कामकाज के लिए महत्वपूर्ण होता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड हृदय रोगों के जोखिम को कम करने, सूजन को नियंत्रित करने, और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, रूपचंदा मछली में विटामिन डी का भी समृद्ध स्रोत है, जो हड्डियों के विकास और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। अरविन्द ने बताया कि मछलियों में प्रोटीन की भी भरपूर मात्रा होती है, जो हड्डियों, उपास्थि, त्वचा, और मांसपेशियों के विकास के लिए आवश्यक होती है। उन्होंने अपने ग्राहकों को मछलियों के इन फायदों के बारे में जागरूक करने की भी कोशिश की और उन्हें मछलियों के सेवन के लिए प्रेरित किया।अरविन्द कुमार सिंह की कहानी न केवल एक व्यक्ति की सफलता की कहानी है, बल्कि यह एक संपूर्ण समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि यदि सही दिशा में मेहनत की जाए और सरकार की योजनाओं का लाभ उठाया जाए, तो कोई भी किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकता है। उनकी इस यात्रा ने यह भी साबित किया कि सीमित संसाधनों के बावजूद, यदि व्यक्ति में जुनून और समर्पण है, तो वह असाधारण सफलता हासिल कर सकता है। आज अरविन्द न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि अपने गाँव और पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। उनकी यह सफलता बताती है कि किस प्रकार एक सामान्य किसान अपने सपनों को साकार कर सकता है और अपने परिवार और समाज के लिए एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

  • जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में कृषि विभाग की अभिनव पहल

    जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में कृषि विभाग की अभिनव पहल

    रायपुर ।

    जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में कृषि विभाग, निर्माण एनजीओ एवं अन्य समन्वित विभागों के द्वारा जिले के चारो विकासखंडों के 220 ग्रामों में ’’जैविक कृषक खेत पाठशाला’’ प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन किया जा रहा है। इस पाठशाला’’ के माध्यम से प्रशिक्षण में किसानों को कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि उनके ही गांव में जो किसान बहुत अच्छे से  विधि या अन्य तकनीक से उन्नत जैविक खेती कर रहे हैं, उनके खेतों में ही इस पाठशाला प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है। उक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम में सभी कृषि वैज्ञानिक, जैविक  कृषि विशेषज्ञ, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, प्रगतिशील कृषक, जैविक कार्यकर्ता, कृषि सखी, पशु सखी, कृषक मित्र भी भाग ले रहे है।

        विभागीय अधिकारियों ने बताया कि ’’कृषक खेत पाठशाला’’ का आयोजन तीन चरणों में किया जा रहा है पहले पहले चरण में बुवाई रोपाई तथा निंदाई के समय खेती में विशेष सावधानियां बरतने के बारे में कृषकों को जानकारी दी जाती है। फिर उन्हें जैविक खाद, जैविक दवा के बनाने तथा उसके उपयोग के बारे में प्रायोगिक जानकारी से अवगत कराया जाता है। दूसरे चरण में पौधे की ग्रोथ अवस्था में उपयुक्त जैविक खाद या जैविक दवा के उपयोग एवं तृतीय और अंतिम चरण में फसल कटाई के अवसर पर सावधानियां को भी विस्तार पूर्वक बताया जाता है। इस प्रशिक्षण पाठशाला का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य उन्हें प्राप्त कराना है। सभी प्रकार की उन्नत खेती के तकनीक के बारे में भी इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में विस्तार से चर्चा की जाती है और सबसे बड़ी बात तो यह है इस पाठशाला के अन्तर्गत अन्य किसानों को उनकी स्थानीय भाषा में ही समझाइश दिया जाता है जिससे सभी को आसानी से समझ में आ जाए और अंत में सभी कृषकों से शपथ दिलाई जाती है कि वह अपने खेतों में भी आने वाले वर्षों में इस पद्धति का उपयोग कर अपने खेत का उत्पादन को बढ़ाएंगे। ’’कृषक खेत पाठशाला’’ निश्चित ही जिला प्रशासन दंतेवाड़ा की एक अभिनव प्रयास है जो अधिक से अधिक  किसानों को जैविक कृषि से जोड़ने का एक माध्यम बनेगा, ताकि कृषको को उनकी फसलों का अधिकतम मूल्य प्राप्त हो सके।

  • डबरी से सिंचाई की सुविधा पाकर वनवासी रामप्यारे के सूखे खेतों में आई हरियाली

    डबरी से सिंचाई की सुविधा पाकर वनवासी रामप्यारे के सूखे खेतों में आई हरियाली

     रायपुर।

    जिले के मनेंद्रगढ़ विकासखण्ड के ग्राम पंचायत पिपरिया की भौगोलिक स्थिति वनांचल जैसी ही है। यहां पानी बरसता तो बहुत है परंतु बह जाता है ऐसे में किसानों के लिए समय पर सिंचाई के लिए पानी की समस्या हमेशा बनी रहती है। वंचित वर्ग में आने वाले ऐसे ही एक आदिवासी परिवार के लिए खेती योग्य भूमि होने के बाद भी पानी का संसाधन ना होना एक बड़ी समस्या थी। ऐसे में मनरेगा के तहत बनी एक डबरी से सिंचाई का साधन उनकी खुशहाली का माध्यम बन गया है। पहले केवल मानसूनी बारिश पर आधारित धान की खेती करने वाले आदिवासी किसान रामप्यारे के खेतों में हर बार कभी रोपाई में या तो कभी फसल पकने के समय पानी की कमी हो जाती थी। ऐसे में मेहनत करने के बाद भी उन्हें अपनी फसल से कोई लाभ नहीं मिल पाता था। परंतु इस बार सिंचाई की सुविधा पाकर रामप्यारे के परिवार ने समय पर अपने खेतों में रोपाई का कार्य पूरा कर लिया है और उनकी धान की फसल भी लहलहा रही है। इस खुशहाली के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत बनी एक डबरी इस किसान परिवार के लिए वरदान साबित हो रही है।

    पहले श्री रामप्यारे का परिवार खेती के लिए हमेशा परेशान रहता था, क्योंकि उनके पास खेत तो थे परंतु सिंचाई का साधन नहीं था। ऐसे में वह परंपरागत धान की फसल भी अच्छे से नहीं ले पाते थे। उनकी इस समस्या का निराकरण हुआ ग्राम सभा की बैठक में, जहां उन्होंने अपने खेतों में महात्मा गांधी नरेगा के तहत एक डबरी बनाए जाने का आवेदन प्रस्तुत किया। उनके आवेदन के आधार पर ग्राम सभा ने डबरी बनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया और ग्राम पंचायत को एजेंसी बनाते हुए 2 लाख 95 हजार रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई। ग्राम पंचायत द्वारा गत सितंबर माह से कार्य आरंभ कर इस वर्ष जून में उनके खेतों में एक डबरी का निर्माण कार्य पूर्ण कराया गया। इसमें अकुशल मजदूरी करके इस परिवार को सौ दिवस का रोजगार भी प्राप्त हुआ। डबरी बन जाने के बाद खुश रामप्यारे बताते हैं कि सब्जी लगाकर वह लगभग 20 हजार रुपए की आमदनी ले चुके हैं और फिर कई वर्षों के बाद उनके खेतों में समय पर धान की रोपाई का काम पूरा हुआ है। इससे धान की फसल अच्छी होने की उम्मीद है। डबरी में पर्याप्त पानी होने के कारण वह इसमें अगले साल से मछली पालन भी करने वाले हैं। रामप्यारे के अनुसार लगभग तीन एकड़ खेतों में इस बार अच्छी धान की फसल होने से लगभग एक लाख रूपए का सीधा लाभ मिलेगा। मनरेगा से बना एक संसाधन इस परिवार के लिए आजीविका की नई राहें बना रहा है। इसके लिए रामप्यारे ने जिला प्रशासन एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का धन्यवाद ज्ञापित किया है।

  • मछली पालन से समृद्ध हो रहे किसान

    मछली पालन से समृद्ध हो रहे किसान

    रायपुर ।

    मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए मछली पालन, मुर्गीपालन और धान के साथ अन्य फसल लेने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। दूरस्थ अंचल के किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ शासन द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था में  कृषि का अहम योगदान है। किसान भाई अन्नदाताओं के मेहनत से अच्छी फसल होती है और अनाज, दाल, सब्जियॉ सहित अन्य चीजों का उपयोग लोग बेहतर तरीके से करते हैं।

    मुख्यमंत्री  साय वर्तमान समय में मछली पालन अर्थात जलीय कृषि करने वाले किसानों को बढ़ावा देने के लिए भारत मत्स्य पालन को बढ़ावा दे रहे हैं।
    इसी कड़ी में जशपुर जिले के बगीचा विकासखण्ड के भितघरा ग्राम के  जनक राम यादव 01 वर्ष से मछली पालन का कार्य कर रहे हैं। इनके द्वारा वर्ष 2023-24 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना अंतर्गत् स्वयं की भूमि में 0.5 हेक्टर पर तालाब निर्माण कर मत्स्य पालन कर रहे हैं। निर्मित जलक्षेत्र के लिए योजनानुसार अनुदान राशि 1 लाख 40 हजार रूपए विभाग से प्राप्त हुआ। अब तक हितग्राही द्वारा मछली पालन किया जा रहा है, जिससे 7 लाख रूपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है।

  • मनरेगा की एक छोटी सी मदद से मिली उन्नति की नई राह : कृषक बीरसाय

    मनरेगा की एक छोटी सी मदद से मिली उन्नति की नई राह : कृषक बीरसाय

    रायपुर ।

    महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत् पंजीकृत श्रमिकों को न केवल रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं, बल्कि आजीविका के नए-नए साधन एवं सुविधाएं भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मनरेगा से किसान बीरसाय की कृषि भूमि उपजाऊ बनी, जिससे वह सब्जी की खेती कर अपनी आय बढ़ा रहा है मनेन्द्रगढ़-भरतपुर-चिरमिरी जिले के ग्राम पंचायत लाई में रहने वाले पंजीकृत श्रमिक  बीरसाय के पास जो भूमि थी, वह काफी उबड़-खाबड़ या कहें किसानी के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त थी, उन्होंने ग्राम पंचायत से अपनी भूमि के समतलीकरण का कार्य कराए जाने हेतु आवेदन किया। उनके आवेदन को ग्राम पंचायत में आहूत ग्राम सभा के प्रस्ताव पारित होने के बाद जिला पंचायत कोरिया से स्वीकृत किया गया। कुल 95 हजार रूपए से होने वाले इस भूमि सुधार कार्य के लिए ग्राम पंचायत लाई को एजेंसी का दायित्व दिया गया। यहां श्री बीरसाय ने स्वयं अपने गांव के अन्य श्रमिकों के साथ अपनी असमतल भूमि को कृषि के योग्य बनाया और इसकी मेढ़बंदी कराई। इस कार्य से उन्हें सौ दिवस का रोजगार भी प्राप्त हुआ जिसकी मजदूरी सीधे उनके खातों में पहुंची।

        कृषि योग्य भूमि बन जाने के पश्चात् शासन से उन्होंने सब्जी उत्पादन के लिए मिलने वाली टपक सिंचाई योजना के साथ मल्चिंग खेती का लाभ लिया। अपने खेतों में बेहद कम पानी से होने वाली व्यवस्था बनाकर सब्जी की खेती प्रारंभ की। उसके पश्चात्  बीरसाय अपनी मेहनत से लगातार हर मौसम में अलग-अलग सब्जी उगाकर लगभग हर माह 10 से 15 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त कर रहा है, इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने लगी है। अपनी सफलता से खुश होकर बीरसाय कहते हैं कि मनरेगा से भूमि सुधार और कृषि विभाग से टपक सिंचाई का लाभ मिलने से अब उनकी रोजगार की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो गई है। अब हर सप्ताह सब्जी से अच्छी आय हो जाती है और पैसों की चिंता भी खत्म हो गई है। कुछ खेतों में वह सब्जी का उत्पादन करते हैं और बाकी खेतों में वह परंपरागत धान और गेहूं की फसल लेकर अतिरिक्त कमाई भी करने लगे हैं। भूमि समतलीकरण जैसे छोटे से काम से एक मेहनतकश श्रमिक परिवार की दशा और दिशा बदल गई।

  • कृषि वैज्ञानिकों ने धान में तना छेदक कीट के प्रभावी नियंत्रण के बताए उपाय

    कृषि वैज्ञानिकों ने धान में तना छेदक कीट के प्रभावी नियंत्रण के बताए उपाय

    रायपुर ।

    कृषि विज्ञान केन्द्र, सुकमा के पौध रोग वैज्ञानिक  राजेन्द्र प्रसाद कश्यप, कीट वैज्ञानिक डॉ. योगश कुमार सिदार, कृषि अभियांत्रिकी वैज्ञानिक डॉ. परमानंद साहू व चिराग परियोजना के एस.आर.एफ.यामलेशवर भोयर ने बताया कि वर्तमान मे जिले के धोबनपाल, मुरतोंडा, नीलावरम, तोगपाल, पुजारीपाल, सोनाकुकानार, नयानार का मैदानी भ्रमण के दौरान धान के खेत मे तना छेदक कीट का आक्रमण दिखाई दे रहा है। उन्होंने बताया कि इस कीट की इल्ली अवस्था, फसल को नुकसान पहुंचाती है। इस कीट की चार अवस्था होती है अण्डा, इल्ली, शंखी व तितली। मादा तितली पत्तियों की नोंक के पास समूह मे अंडें  देती है। अंडे़ से इल्ली निकलती है जो हल्के पीले रंग की होती है।  इल्ली निकलने के बाद, इल्ली पहले पत्तियों को खाते हुए धीरे-धीरे गोभ के अंदर प्रवेश करती है, जिससे पौधे की बढ़वार रूक जाती है। कीट पौधे के गोभ के तने को नीचे से काट देती है, जिससे धान के पौधे का बीच वाला हिस्सा सूख जाता है। सुखे हुए हिस्से को मृत गोभ (डेड हार्ट) कहते है। इस कीट का प्रकोप बालियां निकलने के समय होता है जिससे फसल को भारी नुकसान होता है। बालियों में  दाना का भराव नहीं हो पाता है और बालियां सूख कर सफेद रंग की हो जाती हैं जिसे सफेद बालियां (व्हाइट हेड) कहते हैं। प्रभावित बालियों को खीचने पर आसानी से बाहर निकल जाता है। कई बालियों में इल्ली अंदर दिखाई देता है।

    कृषि वैज्ञानिकों ने इसके नियंत्रण के लिए कई प्रभावी उपायों के बारे में बताया जिसमें रोपाई करते समय पौधे के ऊपरी भाग को थोड़ा सा काटकर रोपाई करना चाहिए। खेतो एवं मेड़ो को खरपतवार मुक्त रखें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। खेत की समय-समय पर निगरानी करें तथा अण्डे दिखाई देने पर नष्ट कर दे। खेतों मे चिड़ियो के बैठने के लिए टी आकार की पक्षी मिनार लगाए। नर तितली को आकर्षित करने के लिए फेरोमोन ट्रैप लगाए। रात्रि चर कीट को पकड़ने के लिए प्रकाश प्रंपच या लाइट खेतों में लगाए। अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा जॉपोनिकम के 50 हजार अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से दो से तीन बार खेेत में छोड़ना चाहिए। उस समय रासायनिक कीटनाशक का स्प्रै ना करें। नीम अजेडीरेक्टीन 1500 पी पी एम का 2.5 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें। दानेदार कीटनाशकों का छिड़काव गभोट वाली अवस्था से पहले करना चाहिए। बारिश रूकने व मौसम खुला होने पर कोई एक कीटनाशक का प्रयोग करें। क्लोरेटानिलिप्रोएल 0.4 प्रतिशत जी आर 10 किलो प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एस.पी. 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरेटानिलिप्रोएल 18.5 प्रतिशत एस.सी. 150 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1000.1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या फ्लूबेंडामाइड 20 प्रतिशत डब्ल्यू. जी. 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग करके प्रभावी नियंत्रण कर सकते हैं। ठीक न होने पर 15 दिन बाद दूसरे कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करके ही रासायनिक दवाइयों का उपयोग करना चाहिए।

  • मिर्च की बम्पर पैदावार से अमलू के आय में हुई बढ़ोत्तरी

    मिर्च की बम्पर पैदावार से अमलू के आय में हुई बढ़ोत्तरी

    रायपुर ।

    बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के विकासखण्ड शंकरगढ़ के ग्राम लरंगी के प्रगतिशील कृषक  अमलू के पास 02 एकड़ खेत है और इनका पारिवारिक पेशा खेती-बाड़ी है। अमलू परम्परागत् तरीके से खेती करते थे, पर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं एवं उन्नत तकनीकी ज्ञान के अभाव में उत्पादन इतना कम होता था कि परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता था। इसके अलावा भविष्य की पारिवारिक जिम्मेदारियां भी अंधकारमय दिखाई दे रहीं थी। अमलू कहता है कि मिर्च की खेती करने से मेरे आय के स्त्रोत में बढ़ोत्तरी होने पर मेरी आर्थिक स्थिति में सुधार आ रही है।  अमलू के इस जुनून को देखते हुए आस-पास के कृषक भी उद्यानिकी फसल को अपनाने हेतु प्रेरित हो रहे हैं।

    अमलू अपनी आय को बढ़ाने के लिए एक दिन विकासखण्ड के उद्यानिकी विभाग गया तथा अधिकारियों से सम्पर्क कर खेती की उन्नत तकनीक के बारे में चर्चा की। उन्हें बताया गया कि विकासखण्ड में संचालित राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजनांतर्गत प्रशिक्षण एवं भ्रमण कार्यक्रम आयोजन किया गया है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेकर अमलू ने सब्जी उत्पादन के साथ-साथ अंतरवर्ती फसल करने का निर्णय लिया। उन्होंने उद्यान विभाग से मिर्च बीज प्राप्त कर अपने 02 एकड़ खेत में मिर्च की खेती की, जिसके लिए 80 हजार रूपये खर्च करना पड़ा। साथ ही उद्यान विभाग द्वारा उन्हें मिर्च की खेती करने के लिए 20 हजार रुपये का अनुदान भी प्राप्त हुआ। अमलू की मेहनत और उद्यानिकी विभाग की मदद से मिर्च की बम्पर फसल हुई ह,ै जिससे किसान अमलू के चेहरे की मुस्कान और आय स्त्रोत में बढ़ोत्तरी हुई है। उन्होंने बताया कि खेती से लगभग 100 क्विंटल मिर्च प्राप्त हुये जिसका बाजार मूल्य 02 लाख 30 हजार रूपये है। खर्च काटकर अमलू को लगभग 01 लाख 50 हजार रूपये की बचत प्राप्त हुई।

  • सुकमा जिले में धान के खेतों में पत्ती मोड़क कीट (सोरटी) का दिखा प्रकोप

    सुकमा जिले में धान के खेतों में पत्ती मोड़क कीट (सोरटी) का दिखा प्रकोप

    रायपुर ।

     

    राज्य सरकार कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को कृषि उपचार के लिए निरन्तर सलाह प्रदान कर रहे हैं। प्रदेश के जिलों में खेती-किसानी में होने वाले बीमारियों को जिलावार चिन्हाकित कर कीटनाशक छिड़काव के बारे में किसानों को जानकारी दी जा रही है। इसी कड़ी में सुकमा जिले के विभिन्न गांवों में धान के खेतों मे पत्ती मोड़क कीट का प्रकोप दिखाई दिया है इसे पत्ति लपेटक या चितरी या सोरटी कहा जाता है। इसके उपचार के लिए कीटनाशक छिड़काव के विधि और तरीके बताए गए हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र, सुकमा के कृषि वैज्ञानिकों ने जिले के मुरतोणडा, पेरमापारा, नीलावरम, तोगपाल, सोनाकुकानार, नयानार, रामपुरम का मैदानी भ्रमण के दौरान धान के खेत में पत्ती मोड़क कीट का प्रकोप पाया गया, इसे पत्ति लपेटक या चितरी या सोरटी कहा जाता है।

    इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है इस कीट की इल्ली अपने लार द्वारा पत्ती की नोंक को या पत्तियों के दोनों सिरो को चिपका लेती है इस तरह इल्ली इसके अंदर रहकर पत्तियों के हरे भाग (क्लोरोफिल) को खुरच खुरच कर खा जाती है जिसके कारण पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती है, जिसकी वजह से पत्तियों में भोजन बनाने  की प्रकिया नहीं हो पाती है। कीट द्वारा ग्रसित पत्तियाँ बाद में सुखकर मुरझा जाती हैं व फसल की बढवार भी रूक जाती हैं। इसके नियंत्रण और उपचार के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रभावी उपाय अपनाने किसानों को सलाह दिया। जिनमें खेतों एवं मेड़ों को खरपतवार मुक्त रखें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। खेतों मे चिडियों के बैठने के लिए टी आकार की पक्षी मीनार लगाए। रात्रि चर कीट को पकड़ने के लिए प्रकाश प्रंपच या लाइट ट्रैप खेतो में लगाए। अण्डे या इल्ली दिखाई देने पर उसे इकट्ठा करके नष्ट करें। कीट से प्रभावित खेतों में रस्सी चलाएं।
    कृषि वैज्ञनिकों ने बताया कि बारिश रुकने व मौसम खुला होने पर कोई एक कीटनाशक का स्प्रे काराये। क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर  या कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50रू एस.पी. 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरेटानिलिप्रोएल 18.5ः एस.सी. 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या इंडोक्साकार्ब 15.80 प्रतिशत ई.सी.200 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का उपयोग करके प्रभावी नियंत्रण कर सकते हैं, ठीक न होने पर 15 दिन बाद दूसरे कीटनाशक का छिडकाव करें और अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करके ही रासायनिक दवाइयों का उपयोग करें।