Category: कृषि

  • छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में संचालनालय उद्यानिकी द्वारा तैयार बागवानी का आकर्षक जीवंत प्रदर्शन

    छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में संचालनालय उद्यानिकी द्वारा तैयार बागवानी का आकर्षक जीवंत प्रदर्शन

    रायपुर ।

    छत्तीसगढ़ स्थापना राज्योत्सव 2024 में संचालनालय उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी द्वारा फसल विविधीकरण पर आधारित आकर्षक जीवंत प्रदर्शनी तैयार की गई है, विभागीय स्टॉल में फल, पुष्प, सब्जी, औषधि आदि के उच्च गुणवत्ता वाले पौधे एवं प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे जैम, सॉस, आचार आदि भी विक्रय किया जा रहा है, इन उत्पादों के प्रति लोग विशेष रूचि ले रहे हैं।  संचालनालय द्वारा बागवानी के जीवंत प्रदर्शन ने राज्योत्सव के पहले दिन से ही सैकड़ों लोगों को आकर्षित किया। किसान के साथ साथ आम नागरिक भी मनमोहक जीवंत प्रदर्शन देख बागवानी करने हेतु आकर्षित एवं प्रेरित हुए दिखाई दिए। स्टॉल में केला, आम, अमरूद, शिमला मिर्च, टमाटर, मीर्च, गुलाब, गेंदा, जरबेरा, लिची, पपीता आदि के पौधों के प्रदर्शन के साथ उसकी विस्तृत जानकारी भी प्रदर्शित की गई है। साथ ही बड़ी एलईडी स्क्रीन के माध्यम से उद्यानिकी के प्रगतिशील कृषकों की सफलता की कहानी, उन्ही की ज़ुबानी सुनाई जा रही है।इस अवसर पर जिला जशपुर से आए लीची के किसान उद्यान विभाग की ओर से जीवंत प्रदर्शन के समक्ष लीची की खेती करने के इच्छुक किसानों एवं आम जनों को जानकारी देते हुए खेती के अपने अनुभव भी साझा किए।

  • ग्राफ्टेड बैंगन की खेती से रेवती बनीं सफल किसान, कमा रहीं लाखों का मुनाफा

    ग्राफ्टेड बैंगन की खेती से रेवती बनीं सफल किसान, कमा रहीं लाखों का मुनाफा

     जांजगीर-चांपा ।

    रेवती की सफलता की कहानी उन सभी किसानों के लिए प्रेरणा है, जो पारंपरिक खेती के अलावा उद्यानिकी फसलों से भी आय अर्जित करने की सोच रहे हैं। रेवती ने पारंपरिक खेती से हटकर उद्यानिकी फसलों की खेती शुरू की और अपने खेत में सब्जियाँ सहित उद्यानिकी फसलें उगाईं। अपनी मेहनत और समझदारी से खेती के आधुनिक तरीकों का उपयोग करते हुए उन्होंने न सिर्फ बेहतर उत्पादन किया, बल्कि अपने खेत में नई-नई तकनीकों का उपयोग करके उत्पादन की लागत को भी कम किया। रेवती ने उद्यानिकी फसल से 2.60 लाख रुपए का मुनाफा एक साल में कमाया है, जिससे वह अपने परिवार का पालन पोषण बेहतर तरीके से कर पा रहीं है।जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखंड के ग्राम पंचायत हरदीविशाल में रहने वाली  रेवती पटेल पति  नीलेश पटेल पहले धान की फसल लगाती थी जिससे उनको उतनी आमदनी नहीं होती थी जिससे उनको परिवार का गुजर बसर करने में तकलीफों का सामना करना पड़ता था ऐसे में वह दोहरी फसल भी नहीं ले पाती थी एक दिन उनको उद्यानिकी विभाग की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की जानकारी मिलती है तो इस योजना की पूरी जानकारी लेकर वह इससे जुड़ जाती है और अपने खेतों में धान की फसल के साथ उद्यानिकी फसल भी लेने लगती है। विभागीय तकनीकी मार्गदर्शन मिलने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उद्यानिकी विभाग सहायक संचालक श्रीमती रंजना माखीजा ने बताया कि रेवती बेहद ही मेहनती महिला है और आगे बढ़ने की उनकी ललक ने ही उनको उद्यानिकी फसल माध्यम से जुड़कर आगे बढ़ाया है, उन्होंने  जल प्रबंधन, जैविक खाद, और कीट नियंत्रण के तरीकों पर विशेष ध्यान दिया, जिससे उनकी फसलें स्वास्थ्यवर्धक और उच्च गुणवत्ता की बनीं। इससे न केवल उनकी आमदनी में वृद्धि हुई, बल्कि उनके उत्पादों को बाजार में बेहतर कीमत भी मिली। इस सफलता के चलते रेवती ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि अन्य ग्रामीण महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बनीं। रेवती बताती है उद्यानिकी फसल लेकर वह दोहरी आमदनी अर्जित कर रही है वह कहती है कि अगर मेहनत, लगन, और सही  तकनीक का साथ हो, तो खेती-बाड़ी के क्षेत्र में भी बड़ी सफलता पाई जा सकती है।

  • धान में कीट व्याधि नियंत्रण हेतु कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह

    धान में कीट व्याधि नियंत्रण हेतु कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह

      जांजगीर-चांपा ।

    कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर-चांपा द्वारा धान में कीट व्याधि नियंत्रण हेतु किसानों को सलाह दी गई है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुरूप धान के पौधे में शुरू से कई प्रकार के कीट एवं बीमारियां आती है जैसे पत्ती मोडक, तना छेदक, झुलसा शीथ ब्लाइट (चरपा), शीथ गलन आदि और किसान शुरू से ही पत्ता मोडक एवं तना छेद के लिए अनुशंसित दवा जैसे- फ्लूबेंडामाइड 20 प्रतिशत डब्लयू जी 50 ग्राम प्रति एकड, कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस पी 400 ग्राम/एकड, क्लोरेंटानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत 60 मी. ली/एकड., टेट्रानीप्रोल 18.18 प्रतिशत 100 मी. ली./एकड का छिड़काव करते हैं।
    वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केन्द्र ने बताया कि जांजगीर के अधिकतर क्षेत्रों में स्वर्णा किस्म या 140-150 दिन वाले धान लगे हैं। जिसमें पोटरी (गभोट) की अवस्था आ चुकी है या पहुंचने वाली है इसलिए किसानों को धान के गर्म अवस्था में ही तना छेद, माहू, मकड़ी, झुलसा, शीथ गलन एवं चारपा के बचाव हेतु निम्न दवा का उपयोग पोटरी खुलने से पहले करना लाभदायक होगा। तना छेदक एवं पत्ता मोडक हेतु -पूर्व में दी गई दवा को दोहराएं एवं माहू हेतु पाईमेट्रोजिन 50 डब्लयू जी 120 ग्राम  प्रति एकड़ 2.डाईनेटोफ्यूरान, 20 एस जी 100 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें। या दोनो टेक्निकल एक साथ मिलने पर उपयोग कर सकते है। टाईफ्लूमेजोपायरीन 10 प्रतिशत एस सी  94 मी ली/एकड या 20 प्रतिशत होने पर 50 मी.ली./एकड का उपयोग कर सकते हैं। मकड़ी हेतु – मकडीनाशक जैसे हेक्सथियोक्स 5.45 प्रतिशत 250 मी.ली./एकड़, स्पायरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत 150 मी.ली. प्रति एकड़, प्रोपरजाइट 57 प्रतिशत 300 से 400 मी. ली. प्रति एकड़ एवं डाईफेंथयूरौन 50 एस पी 120 ग्राम प्रति एकड़ एवं इन मकड़ी नाशक दावों के साथ निम्न फफूंद नाशक दवा का उपयोग करें। प्रोपिकोनाजोल 200 मी. ली./एकड प्रति एकड़, टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत + ट्राइफ्लोक्सिस्टोबीन 25 प्रतिशत 100ग्राम/एकड, ऐजोक्सिस्टोबीन 18.2 प्रतिशत +डाईफेनाकोनाजोल 11.4 प्रतिशत 200 मी.ली./एकड. का छिड़काव कर सकते हैं।  उपरोक्त बताये गये दवाओं का उपयोग अगर धान के गर्भ अवस्था मे करेंगे तो यह उसी प्रकार प्रभाव देगा जैसे माता के गर्भ मे पल रहे शिशु को टीका लगाने से मिलता है अर्थात आने वाली सभी बालियां स्वस्थ और पुष्ठ होगीं और पैदावार भी अच्छा होगा। अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, जांजगीर-चांपा के वैज्ञानिकों से 7000358986, 7999865762 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

  • डचरोज की खेती से कमलाडांड़ के एबी अब्राहम बने आत्मनिर्भर

    डचरोज की खेती से कमलाडांड़ के एबी अब्राहम बने आत्मनिर्भर

    रायपुर ।

    छत्तीसगढ़ सरकार के उद्यानिकी विभाग द्वारा उद्यानिकी फसल को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। इसके लिए परंपरागत रूप से खेती-किसानी कर रहे किसानों को प्रशिक्षण और सहयोग भी प्रदान किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि उद्यानिकी मंत्री  रामविचार नेताम ने कृषि विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान प्रदेश में उद्यानिकी फसल को बढ़ावा देेने तथा किसानों के लिए उद्यानिकी फसलों को लाभकारी बनाने के निर्देश दिए हैं। इसी कड़ी में मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिला प्रशासन के सहयोग से कमलाडांड़ के किसान   एबी अब्राहम डचरोज (गुलाब) की खेती कर आत्मनिर्भर बन गए हैं। वहीं गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत का काम कर रहे हैं। कमलाडांड़ के डचरोज सरगुजा सहित मध्यप्रदेश के सीमावर्ती शहरों के बाजारों में छत्तीसगढ़ की खुशबू बिखेर रही हैं।

    मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के कमलाडांड़ में फूलों की खेती ने एक नई क्रांति का सूत्रपात किया है। यहां के किसान एबी अब्राहम ने पारंपरिक खेती छोड़कर गुलाब की खेती में हाथ आजमाया और अब वह इस क्षेत्र में न केवल अपनी पहचान बना रहे हैं। गुलाब की खेती से जहां उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है, वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न हो रहे हैं।मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के इस छोटे से गांव के किसान, जो पहले गेहूं, धान, और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती करते थे, अब उद्यानिकी फसलों की ओर तेजी से रुझान दिखा रहे हैं। एबी अब्राहम इस बदलाव के मुख्य उदाहरण हैं, जिन्होंने एक एकड़ भूमि में डचरोज गुलाब की खेती शुरू की। फूलों की खेती न केवल उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी, बल्कि इसके माध्यम से उन्हें उम्मीद से कहीं अधिक मुनाफा भी हुआ। अब उनके खेत में गुलाब की खुशबू फैली हुई है, जिसे वह आसपास के शहरों और कस्बों में बेच रहे हैं।

    एबी अब्राहम द्वारा उगाए गए गुलाब की मांग पूरे सरगुजा संभाग और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती शहरों में बढ़ रही है। मनेन्द्रगढ़ और आस-पास के बाजारों में भी उनकी आपूर्ति की जा रही है। फूलों की खेती से उन्हें मिलने वाला मुनाफा पारंपरिक फसलों की तुलना में कई गुना अधिक है। खास बात यह है कि फूलों की खेती में अधिक लागत की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसान अपनी आर्थिक स्थिति को तेजी से सुदृढ़ कर पा रहे हैं। गुलाब की खेती न केवल एबी अब्राहम के लिए लाभकारी साबित हो रही है, बल्कि इसने ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए हैं। फूलों की देखभाल, तुड़ाई, पैकिंग, और परिवहन से जुड़े कार्यों में कई स्थानीय लोगों को काम मिला है, जिससे आने वाले समय में इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं और अधिक बढ़ सकती हैं।

    फूलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय प्रशासन भी पूरी तरह से सक्रिय है। उद्यानिकी विभाग द्वारा समय-समय पर किसानों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे फूलों की खेती में आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर अधिक से अधिक लाभ कमा सके। एबी अब्राहम की मेहनत और प्रशासन के सहयोग से फूलों की खेती ने कमलाडांड़ में एक नई दिशा और गति प्राप्त की है। फूलों की खेती ने न केवल एबी अब्राहम को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है, बल्कि उन्हें समाज में एक नई पहचान भी दी है। अब वह स्थानीय स्तर पर एक सफल किसान के रूप में पहचाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और सही दिशा में कदम बढ़ाकर अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। पारंपरिक फसलों से हटकर फूलों की खेती करना उनके लिए न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित हुआ है। एबी अब्राहम के खेतों में खिले गुलाबों की विभिन्न प्रजातियों से पूरा कमलाडांड़ क्षेत्र सुगंधित हो रहा है। गुलाब की खेती के कारण गांव का माहौल भी बदल रहा है। अब हर तरफ फूलों की खुशबू फैली हुई है, जिससे न केवल किसानों का जीवन बेहतर हो रहा है, बल्कि पर्यावरण में भी सकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है। कमलाडाड़ के किसान एबी अब्राहम की फूलों की खेती की सफलता ने न केवल उनके जीवन को संवारा है, बल्कि इसने पूरे गांव में रोजगार और आत्मनिर्भरता का संदेश भी दिया है।

  • किसान लक्ष्मण गेंदा फूल की खेती से कमा रहे अच्छा लाभ

    किसान लक्ष्मण गेंदा फूल की खेती से कमा रहे अच्छा लाभ

    रायपुर ।

    मुख्यमंत्री  विष्णुदेव साय किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कृषि के साथ अन्य फसलों को लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उद्यानिकी विभाग के द्वारा राज्य के किसानों को फूलों की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि उन्हें स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सके और किसानों की आय में निरंतर वृद्धि हो सके। इसी क्रम में जशपुर जिला प्रशासन के अंतर्गत उद्यान विभाग के द्वारा किसानों को आधुनिक तकनीक से पौधा रोपण करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। किसानों की सहमति से उनकी निजी भूमि में फूल का पौधा रोपण कार्य कराया जा रहा है।इसी कड़ी में कांसाबेल विकासखण्ड के ग्राम हथगड़ा निवासी  लक्ष्मण कुमार बंजारा ने गेंदा पौधे का रोपण किया।  बंजारा ने बताया कि उद्यानिकी विभाग के द्वारा उन्हें पुष्प उत्पादन के महत्व एवं लाभ के विषय के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया एवं स्वयं के साधन से अपने बाड़ी में गेंदा पौध रोपण किया। उन्होंने बताया कि गेंदा की उन्नत खेती करने से गेंदा फूल का अच्छा पैदावार होने लगा है। स्थानीय बाजार के साथ आस-पास के क्षेत्र में गेंदा पुष्प का अच्छा मांग होने से सीजन में उन्हें 52 हजार रुपए का आमदनी प्राप्त हो चुका है। वे बताते है कि खेती करके संतुष्ट है और भविष्य में उन्नत पुष्प उत्पादन करके अपने आय में बढ़ोतरी करते रहेंगे।

  • आकांक्षी जिला दंतेवाड़ा जैविक कृषि जिला बनने की ओर अग्रसर

    आकांक्षी जिला दंतेवाड़ा जैविक कृषि जिला बनने की ओर अग्रसर

    रायपुर ।

     

     

    जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के द्वारा आकांक्षी जिला दंतेवाड़ा को जैविक जिला बनाने की ओर वृहद स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में प्रमुख रूप से जिले के किसानों को जैविक खेती की विभिन्न तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है। किसानों को रासायनिक खेती को छोड़ कर जैविक खेती की ओर अग्रसर करना एवं किसानों का जैविक प्रमाणीकरण इत्यादि गतिविधियां शामिल है।गौरतलब है कि दंतेवाड़ा जिले में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रचार-प्रसार और विक्रय प्रतिबंधित किया गया है। इसके अतिरिक्त वृहद क्षेत्र प्रमाणीकरण अंतर्गत जिले के 110 गांव के 10 हजार 264 किसानों के 65 हजार 279 हेक्टेयर भूमि का जैविक प्रमाणीकरण किया जा चुका है जो कि देश में सबसे बड़ा क्षेत्र है।जिले के प्रभारी मंत्री केदार कश्यप ने इस उपलब्धि के लिए जिला प्रशासन के अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप मुख्यमंत्री  विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य के सभी आकांक्षी जिले लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। गौरतलब है कि दंतेवाड़ा जिले में वर्तमान में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जिले के 220 ग्रामों में तीन चरणों में कृषक खेत पाठशाला का आयोजन के साथ-साथ जैविक कार्यकर्ताओं के माध्यम से तकनीकी सहयोग किसानों को दिया जा रहा है। इसके साथ-साथ जैविक किसानों को विभिन्न जगहों पर अभ्यास भ्रमण एवं उनके लिए आवासीय प्रशिक्षणों का आयोजन भी किया जा रहा है।

  • 9 एकड़ के तालाब से 50 एकड़ खेत की सिंचाई

    9 एकड़ के तालाब से 50 एकड़ खेत की सिंचाई

    रायपुर ।

    कभी सूखे की समस्या की ओर बढ़ते धमतरी जिले में अब प्रदेश का सबसे बड़ा अमृत सरोवर बन चुका है, जो बारह महीने लबालब नजर आ रहा है। जिले के ग्राम कन्हारपुरी में निर्मित किए गए अमृत सरोवर को छत्तीसगढ़ प्रदेश का सबसे बड़ा अमृत सरोवर होने का गौरव प्राप्त हुआ है। इस अमृत सरोवर (तालाब) को लेकर खास बात यह है कि जितनी लागत इस सरोवर बनाने में आयी, उससे अधिक आय पंचायत को हो गई। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना के बाद जल संरक्षण और संवर्धन को लेकर की जाने वाली कवायद की कड़ी में प्रशासन की पहल पर संसाधनों के बेहतर उपयोग से संभव हो पाया है। एक काम, दो काज की कहावत को चरितार्थ करते हुए यहाँ काम किया गया है। कन्हारपुरी में 9 एकड़ के क्षेत्रफल में बनकर तैयार हुए तालाब से जहाँ गाँव वालों की निस्तारी की समस्या का समाधान हुआ है तो दूसरी ओर लबालब रहने वाले इस अमृत सरोवर का पानी गाँव के 50 एकड़ की कृषि भूमि को सिंचित कर रहा है। इस तालाब की मिट्टी और मुरूम रेलवे पटरी बिछाने के लिए भी आधार बनी है।

    उल्लेखनीय है कि दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे रायपुर से धमतरी के बीच ब्राडगेज रेलवेलाइन बिछाने का कार्य कर रहा है। इसके लिए रेलवे को मिट्टी और मुरूम की जरूरत थी। यह बात जिला प्रशासन तक पहुँची तो उन्होंने धमतरी जिले के कुरुद ब्लॉक अंतर्गत कन्हारपुरी से ही मिट्टी और मुरूम उपलब्ध कराने की पहल की। गाँव के मुरा तालाब में उस वक्त मनेरगा के तहत तालाब गहरीकरण का कार्य प्रस्तावित था। इस गहरीकरण कार्य के लिए 9 लाख 31 हजार का बजट रखा गया था। जिला प्रशासन ने रेलवे बोर्ड और कन्हारपुरी के पंचायत प्रतिनिधियों के बीच मध्यस्ता कर मुरा तालाब से ही रेलवे लाइन बिछाने के लिए आवश्यतानुसार मिट्टी और मुरूम निकालने का एग्रीमेंट कराया। पहले 6 एकड़ तक सिमटे तालाब का क्षेत्रफल बढ़कर 9 एकड़ तक हो गया। वहीं गहरीकरण के पूर्व कन्हारपुरी के मुरा तालाब की जलधारण क्षमता 32 हजार 400 घनमीटर थी, जो अब 57 हजार 800 घनमीटर हो चुकी है। पहले गहराई लगभग 10 फीट थी, वह अब 15 फीट है। बताते हैं कि गहरीकरण से भू-जल स्त्रोत के अन्य बंद पोर भी खुल गए तो लगातार अब भूमिगत जल भी तालाब को भरने लगा है।

    मिट्टी के बदले रेलवे देगा 12 लाख :
    कन्हारपुरी से रेलवे लाइन के लिए मिट्टी और मुरूम निकालने के बदले में रेलवे बोर्ड ने एग्रीमेंट के तहत पंचायत को रायल्टी के रूप में करीब 12 लाख 20 हजार रुपये देगा। जिस राशि को पंचायत गाँव के अन्य विकास कार्य में लगाएगी।

    जिले में 121 अमृत सरोवर पूर्ण, 19 का काम जारी :
    धमतरी जिल में मौजूद तालाबों को अमृत सरोवर का स्वरूप दिया जा रहा है, जहाँ गहरीकरण कर जलधारण क्षमता बढ़ाई जा रही है। वहीं आवश्यकता के आधार पर 8 नए अमृत सरोवर भी बनाए जा रहे हैं। इस तरह जिले में कुल 121 अमृत सरोवर प्रस्तावित किए गए हैं, जिनमें से 102 अमृत सरोवर में कार्य पूर्ण हो चुका है, वहीं 19 अमृत सरोवर पर काम जारी है। धमतरी जिले में अमृत सरोवर को ब्लॉक आधार पर देखें तो धमतरी ब्लॉक में 25, कुरुद ब्लॉक में 38, मगरलोड ब्लॉक में 29 एवं नगरी ब्लॉक में 29 अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं।

    108 अमृत सरोवर के जल से रुद्राभिषेक :
    धमतरी के रविशंकर जलाशय तट पर आगामी 5 व 6 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसे जल-जगार महा-उत्सव का नाम दिया गया है। इस दौरान होने वाले अनेक भव्य कार्यक्रमों में रुद्राभिषेक का आयोजन भी शामिल है। इस जल रुद्राभिषेक में 108 अमृत सरोवरों के जल से रुद्राभिषेक किया जाएगा।

  • टमाटर, मिर्च लगाकर ग्राम झोडि़याबाड़म की दीदियां बदल रही है अपनी जिंदगी की तस्वीर

    टमाटर, मिर्च लगाकर ग्राम झोडि़याबाड़म की दीदियां बदल रही है अपनी जिंदगी की तस्वीर

    दंतेवाड़ा ।

    कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में कृषि कार्य अब लाभकारी हो चुका है, राज्य सरकार ने विगत  वर्ष में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देकर विभिन्न योजनाओं को संचालित किया है और इसका सीधा प्रभाव आज यथार्थ के धरातल पर परिलक्षित है। परंपरागत खेती में कई बदलावों के साथ अब राज्य के लोग आधुनिक एवं उन्नत तकनीक के साथ  व्यावसायिक तौर पर खेती कर रहे हैं। इसका सीधा लाभ कृषकों को हो रहा है। मुख्यतः धान की खेती के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ राज्य अब शाक सब्जियों की खेती का भी गढ़ बन रहा है। राज्य में सब्जी की खेती का फैलाव अब मैदानी इलाकों से निकलकर पहाड़ों तक हो चला है। खास तौर पर शाक सब्जियों की खेती के साथ वनांचलों के ग्रामीण भी जुड़ रहे हैं। शाक सब्जियों की खेती वर्तमान में बेहद मुनाफे की खेती में परिवर्तित हो गई है। यही नहीं शाक सब्जियों की खेती में स्व सहायता समूहों की महिलाओं को जोड़े जाने के पहल ने भी कृषि क्षेत्र में भी कई बदलाव लाए है। अगर इसे फायदे के दृष्टिकोण से देखा जाएं तो महिलाओं के बड़े समूहों को घर बैठे रोजगार मिलने के साथ-साथ आर्थिक आमदनी में वृद्धि हुई है इसके अलावा गैर परम्परागत कृषि को प्रोत्साहन मिला। इस क्रम में जिले के ग्राम पंचायत- झोडि़याबाड़म (कलार पारा) जय मां दंतेश्वरी स्व सहायता समूह (बिहान) की दीदी  पीला बाई सेठिया, एवं मालेश्वरी सेठिया ने भी समूह से जुड़कर अपने कृषि कार्य को एक नयी दिशा दी है। ये दीदियां भी अन्य ग्रामीण महिलाओं की तरह पारंपरिक खेती पर निर्भर थी। स्पष्ट है कि इससे उनकी आय भी सीमित रहती थी। फिर उन्होंने बिहान योजना से जुड़ कर बैंक लिंकेज करवाकर ने अपनी आय बढ़ाने और खेती में कुछ नया करने का निर्णय लिया।

    सर्वप्रथम उन्होंने उन्नत किस्म के टमाटर, मिर्ची को अपनाया जो अधिक उत्पादक और कीटों के प्रति प्रतिरोधी थीं। फिर ड्रिप इरिगेशन तकनीक माध्यम से उन्होंने पानी की बचत और पौधों को सही मात्रा में पानी देने की विधि अपनाई इससे ने केवल उत्पादन में वृद्धि हुई साथ ही साथ पानी का सही उपयोग भी हुआ। इसके अलावा  पीलाबाई एवं श्रीमती मालेश्वरी सेठिया ने ऑर्गेनिक खेती की तरफ भी ध्यान दिया और उन्होंने रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद का उपयोग शुरू किया, जिससे उनकी फसल की गुणवत्ता बेहतर हुई और बाजार में उनके उगाए टमाटर की मांग बढ़ी।

    इसके साथ ही उन्होंने ’’मल्चिंग तकनीक’’ (प्लास्टिक कवर का उपयोग) विधि अपना कर टमाटर, मिर्च की क्यारियों में मिट्टी की नमी को बनाया रखकर खरपतवार नियंत्रित भी किया। इससे भूमि की उर्वरता बनाए रखने में मदद मिली और उनकी टमाटर, मिर्च की फसल को अतिरिक्त लाभ हुआ। इन महिलाओं के कृषि पहल से प्रेरित होकर समूह के अन्य दीदियां भी लघु स्तर पर शाक सब्जियों की खेती कर रही है। बहरहाल इन दीदियों ने शाक सब्जियों के खेती में अपने लिए अतिरिक्त आय का जरिया को तलाश कर  एक प्रगतिशील महिला कृषक का दर्जा हासिल कर लिया है।

  • राजस्व मंत्री बने सर्वेयर, मोबाईल में जियो-रिफ्रेसिंग के जरिए एंट्री कर खसरा का किए सत्यापन

    राजस्व मंत्री बने सर्वेयर, मोबाईल में जियो-रिफ्रेसिंग के जरिए एंट्री कर खसरा का किए सत्यापन

    रायपुर ।

     

     

    राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा आज बलौदाबाजार भाटापारा जिले के ग्राम सकरी में डिजिटल क्रॉप सर्वे का अवलोकन किया। उन्होंने पगडंडियों से चलकर बीच खेत में पहुंचकर मोबाईल के माध्यम से जियो-रिफ्रेंसिंग के जरिए एंट्री कर खसरा का सत्यापन किए। इसके लिए मंत्री  वर्मा स्वयं सर्वेयर बने। उन्होंने ग्राम सकरी के किसान नेतराम साहू के खेत खसरा नंबर 1150,1151 एवं 1152 का सत्यापन कार्य पूर्ण किए.  वर्मा ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित भारत के रूप में विकसित करने का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा है जिसके तहत सभी सरकारी कामकाजों में डिजिटल टेक्नोलॉजी  का उपयोग सरकार कर रही है डिजिटल क्रॉप सर्वे भी उसका एक उदाहरण है। इससे फसल की सटीक जानकारी मुहैया होती है।गौरतलब है की डिजिटल क्रॉप सर्वे में निजी सर्वेयर की भूमिका जियो-रिफ्रेंस के रूप में होती,जो डिजिटल रूप से फसल का सर्वे सभी खेतों में जाकर करेंगे। निजी सर्वेयर को प्रतिदिन 30 से 50 खसरों का टास्क दिए गए है। जिसे सर्वेयर खेत में जाकर लॉगिन करेंगे। उनसे तहसीलदार पूछेंगे क्या आप उपलब्ध हैं और हां में जवाब आएगा। वैसे ही एप में प्लॉट की स्थितिए खसरा नंबर ए एरिया ऑनर का नाम अपने आप फीड हो जायेगा। जो क्रॉप लगी है उसका तीन फोटो लॉन्गिट्यूट लैटिट्यूट के साथ तीन फोटो अपलोड करना है। इस प्रकार एक नंबर का कार्य पूर्ण होगा। जिसमें पटवारी की भूमिका पर्यवेक्षक और राजस्व निरीक्षक की भूमिका सत्यापनकर्ता तथा तहसीलदार व नायब तहसीलदार की भूमिका जांचकर्ता अधिकारी के रूप में की गई है। सर्वेक्षकों द्वारा संपादित सभी खसरे आरआई के पास नहीं आयेगा। सर्वेक्षकों द्वारा सर्वे किये गए खसरे पटवारी के पास आएंगे। पटवारी इसे अनुमोदन करेगा या रिसेंड करेगा। पटवारी द्वारा दो बार रिजेक्ट होने की स्थिति में आरआई के आईडी में आयेगा। ऐसे खसरों की संख्या बहुत कम होगी, जहां मौके में जाकर आवश्यकतानुसार सत्यापन किया जाएगा।
    इसके साथ ही फिल्ड में क्या बोया गया है फसल की जिंस का नाम, मिश्रित फसल की स्थिति में सभी फसलों का अनुमानित रकबा, सिंचित-असिंचित फसल, एकवर्षीय या बहुवर्षीय, सीजनल फसल की जानकारी आदि भरी जायेगी। सर्वेयर द्वारा साफ्टवेयर में बोये गये जिंस व एकल व मिश्रित फसल की स्थिति में बोये गये फसल या पड़त रकबा की अनुमानित प्रविष्टि करेगा। यदि साफ्टवेयर में जियो-रिफ्रेंस्ड रकबा के अनुसार सर्वे किए गए रकबा का योग एक समान नहीं आयेगा। तब तक डेटा सेव नहीं होगा। सर्वेयर किसी भी खसरा नंबर की भूमि के मेड़ में खड़े होकर फोटो कैप्चर नहीं करेगा। यदि ऐसा वे करते हैं तो आसपास के खसरा नंबर के लॉन्गिट्यूट लैटिट्यूट मिस्डमैच होगा। इसलिए सर्वेयर प्रत्येक खसरा नंबर की भूमि के अंदर कम से कम मेड़ से 10 मीटर की दूरी पर जाकर प्रयोग संपादित करेगा। यदि पिक्चर में गेहूं फसल दिख रहा पर सर्वेक्षक ने धान प्रविष्ट किया हो अथवा प्लाट खाली है और फोटो गन्ना का अपलोड किया है, तो वही डेटा को पटवारी रिसेंड करेगा। सर्वेक्षक सुधार कर फिर से पटवारी को भेजेगा। यदि पटवारी पुनः रिजेक्ट करता है तब आरआई के आईडी में आयेगा। पटवारी द्वारा परंपरागत ढंग से की जाने वाली गिरदावरी से यह फिलहाल अलग है। धान खरीदी पटवारी द्वारा की गई गिरदावरी के आधार पर की जाएगी। डिजिटल क्राप सर्वे उन्हीं ग्रामों में की जायेगी, जहां जियोरिफ्रेंसिंग का सेकेंड लेवल कार्य का संपादन हो गया है। सभी ग्रामों के खसरा नंबरों में नहीं की जाएगी। यह शासन की बहुआयामी योजना है। सकारात्मक ढंग से इस कार्य का संपादन करना है। साफ्टवेयर बहुत ही आसान बनाया गया है। किसी भी वर्जन के एंड्रॉयड मोबाईल में प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें ये सपोर्ट करें। इस अवसर पर उपाध्यक्ष राज्य स्काउट एवं गाइड विजय केसरवानी,एसडीएम बलौदाबाजार अमित गुप्ता,तहसीलदार राजू पटेल उपस्थित रहे।

  • लखपति दीदी : बिहान विशेष पिछड़ी जनजाति की महिलाओं के जीवन में ला रहा है एक बड़ा बदलाव

    लखपति दीदी : बिहान विशेष पिछड़ी जनजाति की महिलाओं के जीवन में ला रहा है एक बड़ा बदलाव

    रायपुर ।

    ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) विशेष पिछड़ी जनजाति की महिलाओं के भी जीवन में एक बड़ा परिवर्तन लेकर आ रहा है। बिहान  के माध्यम से मिली आर्थिक मदद, प्रशिक्षण और कड़ी मेहनत से अपनी आमदनी में वृद्धि कर वे अपने परिवार की एक मजबूत सहारा बन पा रही है। इसी परिवर्तन की एक शानदार मिसाल हैं विशेष पिछड़ी जनजाति कोरवा समुदाय की मझनी बाई जो कृष्णा स्व-सहायता समूह से जुड़कर कड़ी मेहनत और समर्पण से लखपति दीदी बनने का सफर तय किया।

    स्व सहायता समूह से जुड़ने से पहले जशपुर जिला के मनोरा विकासखंड के ग्राम पंचायत गीधा की रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति की मझनी बाई कृषि कार्य से सलाना 35 हजार से 40 हजार के बीच कमा पाती थी। अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए मझनी बाई बिहान योजना के तहत स्व-सहायता समूह से जुड़ने का निर्णय लिया।  समूह से जुड़ने के बाद मझनी बाई को आर.एफ. के तहत 15 हजार रूपए, सी.आई.एफ. के तहत 60 हजार रूपए और बैंक लिंकेज लोन के माध्यम से एक लाख रूपए की आर्थिक सहायता मिली।

    इस आर्थिक सहायता से मझनी बाई ने मिर्च की खेती और बकरी पालन का काम शुरू किया। मझनी बाई ने 2 एकड़ जमीन पर मिर्च की खेती में 20 हजार रूपए का निवेश किया। इससे उन्हें सालाना 1.10 लाख की आमदनी होने लगी। बकरी पालन से उसे 50 हजार रूपए की आय प्राप्त हुई। आज मिर्च उत्पादन और बकरी पालन के जरिए मझनी बाई की वार्षिक आमदनी 1.60 लाख रूपए तक पहुंच गई है। बिहान से मिली मदद और कड़ी मेहनत से मझनी बाई ने सफलता हासिल की है। आज वह अपने गांव में आत्मनिर्भरता की एक मिसाल बन चुकी हैं।