विशाखापट्टनम 03 फरवरी 2023
आज ‘बेगमपुरा भारत – भाईचारा यात्रा’ सुबह करीब 9:30 बजे गुरुद्वारा सत संगत, विशाखापट्टनम पहुंची। वहां पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य डॉ. डी.एन. आनंद (शाहजी) से मुलाकात कर उन्हें यात्रा के उद्देश्य के बारे में अवगत कराया गया।
तत्पश्चात स्थानीय बीडीपी नेताओं द्वारा गुरुद्वारा से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित डॉ. अम्बेडकर भवन, विशाखापट्टनम में एक गोलमेज सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में कई स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक नेता अपने मांगपत्रों सहित शामिल हुए।
कार्यक्रम संचालक एनटी गुरुमूर्ति के आमंत्रण पर बीडीपी अध्यक्ष जीवन कुमार मल्ला ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, आज ‘बेगमपुरा भारत – भाईचारा यात्रा’ का तेरहवां दिन है। यह यात्रा हमने 20 जनवरी, 2023 को गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मस्थान तख़्त श्री पटना साहिब, बिहार से शुरू की थी। हम कई राज्यों जैसे, बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में जनसंपर्क करते हुए कल शाम को आपके आंध्र प्रदेश में पहुंचे हैं।
हमारी यह यात्रा किसी को कोई मांगपत्र देने की यात्रा नहीं है। यह यात्रा प्रत्येक मांग आधारित कार्यक्रमों के खिलाफ है। क्योंकि मांगने का अर्थ है किसी के सामने हाथ फैलाना, जबकि दाता का हाथ हमेशा देने की मुद्रा में होता है। इसलिए मैं आपसे पूछता हूँ कि कौन सी स्थिति अच्छी है, देने वाली या मांगने वाली?
उन्होंने आगे कहा कि, अगर आपकी प्रवृत्ति हमेशा मांगने वाली बनी रहती है तो आपको अपनी यह मानसिकता बदलने की जरूरत है। हमारा यह आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन है, इसलिए हम किसी भी मांग आधारित सामाजिक न्याय आंदोलन का समर्थन नहीं करते। क्योंकि हम बहुसंख्यक लोग हैं और एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि, मैं सभी अम्बेडकरवादियों से अपील करता हूँ कि कृपया आप गहराई में जाकर गणतंत्र और लोकतंत्र के अर्थ को समझिए। गणतंत्र का अर्थ है सत्ता व्यक्ति के हाथ में, जबकि लोकतंत्र का अर्थ है सत्ता बहुमत के हाथों में।
उन्होंने आगे कहा कि, दुनिया में जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं, वहां सत्ता बहुमत के हाथों में होती है। दुर्भाग्य से आप लोग कहते हो कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लेकिन भारत में क्या हो रहा है? यहां अति अल्प समुदाय देश की सत्ता अपने हाथों में लिए बैठा है।
आप सभी लोग कहते हो कि हम बुद्धिस्ट हैं, लेकिन आपकी बुद्धि काम कर रही है अथवा नहीं? इस लोकतांत्रिक देश को अति अल्प समुदाय शासित कर रहा है। इसका अर्थ यह है कि समस्या ब्राह्मणों में नहीं, बल्कि समस्या आपके दिमाग में है।
जिन मुट्ठीभर ब्राह्मणवादी शासकों को आप हमेशा मांगपत्र देते हैं, क्या वे कभी आपकी मांग पूरी करेंगे? बहुजन होने के बावजूद भी यदि आप अति सूक्ष्म समुदाय को मांगपत्र देते हैं तो आपकी यह प्रवृत्ति न सिर्फ प्रकृति के खिलाफ है, बल्कि बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के भी खिलाफ है। इसलिए आप गणतंत्र का मतलब समझिए। इसके बाद आपको लोकतंत्र का मतलब समझ में आएगा।
उन्होंने आगे कहा कि, बाबासाहेब ने अपने लोगों को अपने अंतिम संविधान के रूप में ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ दिया था। आप इसे समझने की कोशिश कीजिए, क्योंकि यह बाबासाहेब की अंतिम वसीयत है। लेकिन आप लोग गणतंत्र का अर्थ समझने में असफल रहे हैं। गणतंत्र का मतलब है कि सत्ता आपकी अंगुली में है। आप लोग बाबासाहेब को मांग आधारित प्रतीक के रूप में देखते हो, लेकिन मैं बाबासाहेब को क्रांति का प्रतीक के रूप में देखता हूँ।
बाबासाहेब ने कहा है कि हमने तुम्हें कई अधिकार प्राप्त कर दिए हैं, लेकिन उनमें जो सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है, तुम्हारे लिए वोट का अधिकार है। तुम सामाजिक और आर्थिक तौर पर आसमान हो, लेकिन राजनीति में मैंने तुम्हें ‘एक व्यक्ति – एक वोट’, ‘एक वोट – एक मूल्य’ का अधिकार दिया है।’
उन्होंने आगे कहा कि, आपका वोट आपका स्वाभिमान है, लेकिन चुनाव के समय आप अपना वोट रूपी स्वाभिमान बेचते हो। इसीलिए पिछले 75 वर्षों से मुट्ठीभर मनुवादी इस देश में राज कर रहे हैं।
इसलिए मैं कहता हूं कि किसी को मांगपत्र देने में आप अपना एक मिनट का समय भी बर्बाद मत करो। कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट पार्टी आदि कोई भी ब्राह्मणवादी पार्टी आपकी मांग पूरी नहीं कर सकती।
आप स्वयं को ब्राह्मणवादी ताकतों को ब्लैकमेल करने के लिए उन्नत करो। ब्राह्मणवादी ताकतों को आप कैसे ब्लैकमेल करोगे? मान्यवर कांशीराम जी ने बहुजन के नाम पर ब्राह्मणवादी ताकतों को ब्लैकमेल करना शुरू किया था। क्योंकि उन्होंने आपकी संकीर्ण मानसिकता को विस्तृत मानसिकता में बदलने का काम किया था। उन्होंने हमें 15 प्रतिशत से 85 प्रतिशत में परिवर्तित किया था। बाबासाहेब ने 15 प्रतिशत लोगों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन मान्यवर कांशीराम जी ने 85 प्रतिशत लोगों पर ध्यान केंद्रित किया था। इसलिए अब आप लोग 85 फीसदी को फिर से 15 फीसदी बनाने का काम मत करो। क्योंकि अनजाने में आप गलती कर रहे हो। अगर आप खुले दिमाग से काम करोगे तो अपने आप ही आप 15 से 85 की ओर अग्रसर होते जाओगे।
उन्होंने आगे कहा कि, भाईचारा लोकतंत्र का आधार होता है। कांशीराम जी ने एससी/एसटी, ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच राजनीतिक संबंध और भाईचारा स्थापित करने का काम किया था। राजनीतिक भाईचारा आपको आगे बढ़ाता है। आजकल अम्बेडकरवादियों को देखकर मुझे बड़ा दुख होता है, क्योंकि मैं भी अनुसूचित जाति से आता हूँ। बाबासाहेब के बारे में बात करने के लिए मैं पूरा अधिकार रखता हूँ। आपकी मानसिकता बदलने का भी मैं पूरा अधिकार रखता हूँ। इसलिए आप लोग लोकतंत्र के मंदिर की ओर कदम बढ़ाओ। बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा है कि लोकतंत्र का मंदिर सिर्फ संसद होता है। लेकिन आप लोग यहां छोटे-छोटे मंदिर बनाकर उसके सामने रोने-गिड़गिड़ाने का काम करते हो। ऐसी कोई भी मंदिर आपको सुरक्षित नहीं कर सकती, कोई भी मंदिर आपको मुक्ति नहीं दे सकती। सिर्फ एक ही मंदिर है जिसे बाबासाहेब ने बताया है। वह मंदिर है संसद भवन।
बाबासाहेब 1944 में एक जनसभा को संबोधित करने कांज़ीपुराम, तमिलनाडु गए थे। वहां पर अपने लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि, ‘मेरा अंतिम लक्ष्य इस देश का शासक बनना है। यह हमारा सामाजिक-राजनीतिक लक्ष्य है।’ उसी समय उन्होंने यह भी कहा था कि ‘जाओ और अपनी दीवारों में इस लक्ष्य को लिख लो।’
लेकिन आज हमारे लोगों के दिमाग में कोई सामाजिक लक्ष्य नहीं है। आपके पास सिर्फ मांग है, लेकिन यह मांग आपका लक्ष्य नहीं है।
इसलिए मैं बाबासाहेब की उस बात को याद दिलाते हुए कहता हूं कि आप कम-से-कम अब अपनी दीवारों में उसे लिख लो। मैं हजारों गांवों में गया हूँ, सैकड़ों बुद्धिजीवियों से मिला हूँ, लेकिन किसी की भी दीवार पर बाबासाहेब की यह बात लिखी नहीं देखी।
वह बाबासाहेब की फोटो तो रखते हैं, लेकिन उनके संदेशो को नहीं अपनाते। अगर आपकी प्राथमिकता सिर्फ बाबासाहेब की फ़ोटो पर माला चढ़ाने की है, तो जाने अनजाने आप मनुवाद को ही बढ़ावा दे रहे हैं, क्योंकि मनु ने ही सबको अनेक मूर्ति और तस्वीरों की पूजा का विधान दिया है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बात बाबासाहेब के संदेशों को अपनाना है। हम लोगों को बाबासाहेब की मूर्तियों की चिंता नहीं है, बल्कि हमें बाबासाहेब के संदेशों की चिंता है।
उन्होंने आगे कहा कि, यह यात्रा इस देश से बीजेपी, कांग्रेस और कम्युनिस्ट आदि मनुवादी पार्टियों को समाप्त करने जा रही है। इस यात्रा का यही मिशन है। इसलिए इस यात्रा के माध्यम से हमारी कोई मांग नहीं है। इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ
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