संविधान के आइने में भारत: डॉ. अंबेडकर का सपना और आज की हकीकत

रायपुर।
भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जिस भारत का सपना देखा था, वह जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से ऊपर उठकर एक समान, धर्मनिरपेक्ष और न्यायपूर्ण राष्ट्र की कल्पना थी। उन्होंने संविधान को ऐसा उपकरण बनाया था, जो हर नागरिक को बराबरी का हक दे — चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या पंथ का हो। लेकिन आज, आज़ादी के 75 साल के भीतर ही, उस संविधान की आत्मा को गहराई से आहत किया जा रहा है।
डॉ. अंबेडकर का सपना बनाम वर्तमान यथार्थ
उन्होंने एक शिक्षित और न्यायसंगत समाज की कल्पना की थी। आज हम उस कल्पना से दूर जा रहे हैं। धार्मिक ध्रुवीकरण, विचारों की आज़ादी पर अंकुश, और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कटौती — ये सब उस लोकतांत्रिक और सेक्युलर भारत की मूल भावना से समझौता है।
वक्फ संशोधन विधेयक: अल्पसंख्यकों की आस्था पर चोट
हाल ही में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक ने देश की मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी के बीच गहरी चिंता और असुरक्षा की भावना पैदा की है। वक्फ संपत्तियां सदियों से मुस्लिम समाज की धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक आवश्यकताओं के लिए समर्पित रही हैं। लेकिन इस नए संशोधन में सरकार को वक्फ बोर्ड की कई संपत्तियों पर हस्तक्षेप और पुनर्गठन का अधिकार दिया गया है, जिससे यह डर और गहरा हो गया है कि ये संपत्तियां अब उनकी मूल धार्मिक और सामाजिक भूमिका से हटाई जा सकती हैं।यह संशोधन केवल संपत्ति से जुड़ा मसला नहीं है, बल्कि यह अल्पसंख्यकों की धार्मिक पहचान, आस्था और आत्मसम्मान से जुड़ा है। डॉ. अंबेडकर ने जिस संविधान में धर्म की स्वतंत्रता, आस्था और पूजा के अधिकार की गारंटी दी थी, उस पर यह सीधा हमला प्रतीत होता है।
सेक्युलरिज्म की बुनियाद हिलती हुई
आज सत्ता जिनके हाथों में है, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि बहुसंख्यकवाद से जुड़ी है। “सर्वधर्म समभाव” की जगह अब “एक धर्म, एक संस्कृति” का आग्रह किया जा रहा है। नतीजा यह है कि अल्पसंख्यक समुदायों को बार-बार यह साबित करना पड़ता है कि वे इस देश के बराबर नागरिक हैं।
संविधान में बदलाव की आहट
नागरिकता संशोधन कानून (CAA), वक्फ संशोधन विधेयक, और कई अन्य प्रस्ताव संविधान की उस मूल आत्मा को कमजोर करते हैं जिसमें सभी को समान अधिकार और सम्मान देने की बात की गई थी।डॉ. अंबेडकर का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं था — वह एक वादा था: हर नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता का वादा। आज जब उस वादे को तोड़ा जा रहा है, तो यह हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि वह संविधान की रक्षा में खड़ा हो।वक्फ संपत्तियों पर हमला हो या विचार की स्वतंत्रता पर रोक — यह सब उस लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर रहा है, जिसे अंबेडकर ने खून-पसीने से गढ़ा था।आज हमें तय करना है — हम संविधान के साथ खड़े हैं या सत्ता की सनक के साथ।