मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है श्रीमदभागवत गीता : डॉ. पूजा यादव

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जांजगीर-चांपा।

गीता हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है,इसकी शिक्षाएं जीवन की चुनौतियों से निपटने, रोज़मर्रा के कार्यों में अर्थ खोजने और आंतरिक शांति की भावना पैदा करने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। उक्त लेख शिक्षाविद  बिलासपुर मे निवासरत डॉ. पूजा यादव ने श्रीमदभागवत गीता मे व्यक्त की है। उनका कहना है की आप किसी व्यक्तिगत दुविधा का सामना कर रहे हों, नैतिक सवालों से जूझ रहे हों या बस आत्म-खोज की तलाश कर रहे हों, गीता के श्लोक प्रकाश की किरण प्रदान करते हैं। श्रीमद्भगवतगीता की प्रासंगिकता भगवान कृष्ण के युग के पहले भी थी और बाद के भी युगों में भी रही है। श्रीमद्भगवतगीता के उपदेश भगवान राम से लेकर महात्मा गांधी तक सभी के कर्मों में दिखाई दिए है। इसी प्रकार चाणक्य की नितियों में भी हमें गीता का असर दिखाई देगा और यह आज के दौर में भी प्रासंगिक है।
श्रीमद्भगवतगीता हमें संसार से नहीं बल्कि गलत और स्वार्थी गतिविधियों से त्याग करना सिखाती है। इस प्रकार यह हमें बुरे कर्मों का त्याग करना और निस्वार्थ जीवन जीना सिखाती है। यह हमें संसार का त्याग करने की शिक्षा नहीं देती बल्कि संसार के सभी नकारात्मक विचारों और कार्यों का त्याग करने की शिक्षा देती है
हिंदू धर्म की पवित्र पुस्तक श्रीमद्भगवतगीता को वेद व्यास ने लिखा था। वेदव्यास, हिंदू धर्म के महान ऋषियों में से एक थे और उन्होंने महाभारत, पुराणों, और कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की थी। श्रीमद्भगवतगीता को ‘भगवान का गीत’ भी कहा जाता है। यह महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है और इसमें 700 श्लोकों का संग्रह है। श्रीमद्भगवतगीता को संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें 18 अध्याय हैं। यह कुरुक्षेत्र युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का वर्णन करती है. इस संवाद में कृष्ण अर्जुन को जीवन के अर्थ, धर्म, कर्तव्य, मोक्ष आदि के बारे में उपदेश देते हैं। श्रीमद्भगवतगीता को सनातन धर्म के मुताबिक, मनुष्य को अपने जीवन का पालन करने के लिए एक नियमावली माना जाता है।

गीता लिखी कब गई इस संबंध में निश्चित कुछ नहीं कहा जा सकता है। श्रीमद्भगवतगीता वैदिक संस्कृत भाषा में लिखी गई है, जिसका लेखन काल निर्धारित नहीं है किंतु वर्तमान में प्रचलित गीता जिसे श्रीमद्भगवतगीता के नाम से जाना जाता है, द्वापर युग के अंत में महाभारत युद्ध के दौरान , अर्जुन द्वारा विषादग्रस्त होकर शस्त्र उठाने से इंकार कर देने पर, कृष्ण द्वारा दिया गया द्विव्य ज्ञान है। जिसमें महाभारत के युद्ध के बीच अर्जुन और कृष्ण के बीच हुए संवाद का विवरण है। यही ज्ञान ईश्वर द्वारा सृष्टि के प्रारंभ में विवस्वान ऋषि को दिया गया था। सृष्टि के आदि एवं अंत का कोई निश्चित परिणाम नहीं है।

श्रीमद्भगवतगीता भारतीय धर्म और दर्शन की महान ग्रंथ है। श्रीमद्भगवतगीता एक ऐसा ग्रंथ है जो जीवन के हर पहलू को छूता है। यह हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म, मोक्ष, ज्ञान, भक्ति आदि के बारे में गहन ज्ञान दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों में जीवन के हर प्रश्न का उत्तर छिपा है। अगर हम गीता के इन श्लोकों का अर्थ सहित व्याख्या समझ लें, तो हम अपने जीवन को सफल और सुखी बना सकते हैं। इस ग्रंथ में मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बताया गया है, जिसमें समझाया गया है कि एक व्यक्ति अपने जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।


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