सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग जिला मिडिया प्रभारी कांकेर बल्दु राम दर्रो ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास जानने को मिलता है कि दिसंबर 1992 में, UNGA ने 1993 को विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष बनाने का संकल्प अपनाया. 23 दिसंबर 1994 को, UNGA ने अपने प्रस्ताव 49/214 में निर्णय लिया कि विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दशक के दौरान हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगा। यह तारीख 1982 में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर उप-आयोग के स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को चिह्नित करती है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, यह बताया गया कि 2016 में, लगभग 2,680 ट्राइबल भाषाएं खतरे में थीं और विलुप्त होने की कगार पर थीं. इसलिए, संयुक्त राष्ट्र ने इन भाषाओं के बारे में लोगों को समझाने और जागरूकता फैलाने के लिए 2019 को आदिवासी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष नामित किया है, ज्ञान का जश्न मनाने का एक अवसर रहता है, विश्व के आदिवासी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, दुनिया भर के लोगों को इन लोगों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन पर संयुक्त राष्ट्र के संदेश को फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
हल्बा समाज के पूर्व सचिव नन्दकुमार गुरुवर ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस इन समुदायों और उनके ज्ञान का जश्न मनाने का एक अवसर है. इस दिन लोगों को ट्राइबल लोगों और उनकी भाषाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। दुनिया के मूल निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन एक लगातार समस्या बन गई है, इसलिए, यह दिन लोगों के लिए उनके मुद्दों को समझने का एक अवसर है, यह दिन आदिवासी लोगों को वैश्विक मंच पर अपने दृष्टिकोण और चिंताओं को साझा करने का अवसर प्रदान करता है. इसका उद्देश्य सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और आम जनता के बीच आदिवासी मुद्दों की बेहतर समझ को बढ़ावा देना भी है। पिछले कुछ वर्षों में, आदिवासी अधिकारों और कल्याण के विशिष्ट पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विभिन्न विषयों को चुना गया है। संयुक्त राष्ट ने विश्व आदिवासी दिवस 2024 के थीम को आदिवासी युवाओं पर फोकस किया है, यूएन द्वारा दिये गये एक अपडेट के अनुसार, इस साल के विश्व आदिवासी दिवस का थीम है आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के प्रेरक के रूप में आदिवासी युवा आज के अपने आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रयोग सक्रिय तौर पर कर रहे हैं, आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक देशज ज्ञान से आज के आदिवासी युवा सराबोर हैं और पारंपरिक विरासत के वाहक बने हैं, हम जानते हैं कि हमारा भविष्य आज लिए गए निर्णयों पर निर्भर करता है. ऐसे में आदिवसी युवाओं द्वारा जो कार्य आज किए जा रहे हैं, वे मानवता के सामने मौजूद कुछ सबसे गंभीर समस्याओं से उबरने में सबसे असरदार प्रेरक के तौर पर काम कर रहे हैं | और सभी आदिवासी समुदायों से निवेदन है कि हमें अधिक से अधिक संख्याओं में ऐसे आयोजनों में हिस्सा लेकर आदिवासी समुदाय के संस्कृति, रीति रिवाजों को जानने की जरूरत है।
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