उन्होंने कहा है कि स्वामी विवेकानंद का रायपुर से नाता रहा है और इसीलिए स्वामी आत्मानंद ने छत्तीसगढ़ में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद भावधारा का प्रचार प्रसार करने का फ़ैसला किया था. समाजसेवा को उन्होंने सर्वोच्च प्राथमिकता दी थी. श्री बघेल ने कहा कि जब छत्तीसगढ़ में भीषण सूखा पड़ा था तब उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए एकत्रित दान राशि को सूखा राहत कार्यों में लगाने का फ़ैसला किया था. वे जीवनपर्यंत स्वामी विवेकानंद के ‘दरिद्र नारायण’ की अवधारणा का पालन करते रहे और रामकृष्ण मिशन विवेकानंद आश्रम के माध्यम से ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की सहायता करते रहे।
पूर्व मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि स्वामी आत्मानंद आरंभ से ही मेधावी छात्र रहे और नागपुर विश्वविद्यालय में गणित में एमएससी प्रवीणता के साथ पास की थी. उनकी जीवनी में लिखा है कि वे आईएएस (तत्कालीन आईसीएस) के लिए चयनित हो गए थे पर जनसेवा के लिए उन्होंने संन्यास का रास्ता चुना. उनके ज्ञान की वजह से दुनिया भर में उन्हें प्रवचन देने के लिए बुलाया जाता था. छत्तीसगढ़ में हमेशा उन्हें गौरव के रूप से देखा जाता रहा है।
इसीलिए जब वंचित वर्ग के बच्चों के लिए कांग्रेस की सरकार ने अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोलने का निर्णय लिया तो योजना को स्वामी आत्मानंद जी के नाम पर रखने का फ़ैसला किया गया. अगर भाजपा की सरकार सिर्फ़ इसलिए स्वामी आत्मानंद योजना का नाम बदलना चाहती है क्योंकि यह कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई योजना है तो यह एक आध्यात्मिक विद्वान व्यक्तित्व के बारे में भाजपा के नेताओं की सोच को दर्शाता है।भाजपा के नेताओं को भूपेश बघेल ने सलाह दी है कि वे चाहें को नाम बदलने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह जी से भी चर्चा कर लेनी चाहिए क्योंकि डा सिंह विवेकानंद आश्रम के हॉस्टल में रह चुके हैं और स्वामी आत्मानंद के सानिध्य में रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि भले ही नाम बदलने की राजनीति भाजपा की विरासत में है पर स्वामी आत्मानंद जी के नाम पर बनी योजना का नाम बदलने से पहले उन्हें विचार कर लेना चाहिए कि इस निर्णय से छत्तीसगढ़ की जनता की भावना किस तरह आहत होगी और भाजपा को बाद में पछताना होगा।
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