बच्चे को शिक्षा पाने का मौलिक अधिकार, मगर अपनी पसंद के स्कूल में नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला


नई दिल्ली.

 दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कहा कि किसी बच्चे को अपनी पसंद के किसी विशेष स्कूल में शिक्षा पाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21ए या शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) की धारा 12 के तहत उपलब्ध अधिकार केवल 14 वर्ष की आयु तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा तक सीमित है, न कि एक विशेष विद्यालय में ऐसी शिक्षा हासिल करने का अधिकार है. कोर्ट ने महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल के खिलाफ 7.5 साल की एक लड़की की मां द्वारा दायर रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया.

‘वर्डिक्टम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस सी. हरि शंकर की सिंगल बेंच ने कहा कि ‘इस तरह के आवेदन के अभाव में, किसी विशेष स्कूल में किसी विशेष कक्षा में प्रवेश के लिए कंप्यूटरीकृत ड्रॉ आयोजित करना और किसी बच्चे को शॉर्टलिस्ट करना, उसके प्रवेश पाने का कोई अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 21ए या आरटीई अधिनियम की धारा 12 के तहत उपलब्ध अधिकार केवल चौदह साल की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का है. यह किसी विशेष स्कूल में शिक्षा के लिए दाखिला हासिल करने का नहीं है.’

कम्प्यूटर ड्रा में शॉर्टलिस्ट हुआ जिया का नाम
जिया नाम की याचिकाकर्ता का जन्म 2016 में हुआ था और उसकी उम्र लगभग 7.5 साल थी. वह समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) से संबंधित थी. तब उसकी मां ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए कक्षा 1 में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत उसके दाखिले के लिए शिक्षा निदेशालय (डीओई) में आवेदन किया था. डीओई ने एक कम्प्यूटरीकृत ड्रा निकाला, जिसके बाद जिया को प्रतिवादी स्कूल में प्रवेश के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया.

स्कूल का दाखिला देने से इनकार
उसकी मां के कई बार स्कूल जाने के बावजूद स्कूल ने जिया को दाखिला देने से इनकार कर दिया. इसके बाद उसकी मां ने डीओई को आवेदन देकर उस स्कूल में जिया के लिए दाखिला सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इसलिए जिया ने अपनी मां के जरिये रिट याचिका दायर की. उसने शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए कक्षा II में ईडब्ल्यूएस छात्र के रूप में प्रवेश देने के लिए स्कूल को निर्देश देने के लिए एक आदेश जारी करने की मांग की थी. जिस पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.


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