भोपाल,18 नवंबर 2022 /
म.प्र. राज्य मुक्त स्कूल शिक्षा बोर्ड एवं महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में होटल पलाश रेसीडेन्सी, भोपाल के सभागृह में Council of Boards of School Education (कोबसे) की तीन दिवसीय 51वीं वार्षिक कान्फ्रेन्स के दूसरे दिन प्रथम सत्र में डॉ. चांद किरण सलूजा, डायरेक्टर संस्कृत प्रमोशन फाउण्डेशन, नई दिल्ली ने अपने विचार रखते हुए कहा कि बच्चा एक बीज के रूप में होता है। जिस प्रकार से बीज को पृथ्वी में डालिए खाद, पानी, प्रकाश दीजिए तो उसका विकास होता है। उसी प्रकार से बच्चों को अच्छा व्यवहार, शिक्षा और ज्ञान देने से उसकी ऊर्जा स्वयं निखर कर बाहर आ जायेगी। शिक्षक और पैरेन्ट को चाहिए कि वह बच्चों की संवेदनाओं को समझे। यह महत्वपूर्ण बात है कि आप उसके सामर्थ को देखते हैं कि नहीं उसके दिल में आप बैठ सकते हैं कि नहीं।
डॉ. सलूजा ने कहा कि बच्चे का क्या इंट्रेस्ट है किस चीज में उसका इंट्रेस्ट हैं यह देखना अति आवश्यक है। शिक्षक ने किताबें तो बहुत पढ़ी होंगी किन्तु विद्यार्थियों का चेहरा पढ़ना भी बहुत जरूरी है और बच्चों के प्रति संवेदनाएँ होना चाहिए। डॉ. सलूजा ने कहा कि पढ़ने-पढ़ाने में डूब जाना ही आचार कहलाता है। बच्चे ने क्या नहीं सीखा, क्यों नहीं सीखा और सबसे महत्वपूर्ण कैसे सीख सकता है इन प्रश्नों को खोजना ही, मूल्यांकन करना है। डॉ. सलूजा ने संस्कृत भाषा की महत्ता बताते हुए कहा कि – “जिस छात्र को संस्कृत भाषा आती है वह दुनिया की कोई भी भाषा सीखने और बोलने में सक्षम होता है।” कुछ लोग कहते हैं कि यह बच्चा पास नहीं हो सकता किन्तु वह बच्चा 85 प्रतिशत नम्बरों से पास हो जाता है। आप विषय के कन्टेन्ट कम कीजिए और छात्रों को बेसिक नॉलेज दीजिए। हमारा पूरा सिस्टम शिक्षा आधारित है। यदि हमें नॉलेज आया, विद्या आयी और हम मिलकर नहीं रहते हैं तो वह व्यर्थ है। इसलिए हमें मनुर्भव, मनुष्य बनने की शिक्षा देना चाहिए यह अत्यंत आवश्यक है।
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