ऐसा हुआ तो राहुल गांधी ही होंगे भारत के अगले प्रधानमंत्री


नई दिल्ली, 25 अक्टूबर 2023/ कर्नाटक चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस की एकतरफा जीत अपने आप में कई मायने रखती है। यह जीत कांग्रेस के लिए एक तरफ कई राजनीतिक पहलुओं व गतिविधियों को अमल में लाने की तरफ इशारा करती है, तो दूसरी ओर राहुल गांधी की परिपक्वता के साथ, बदलती छवि को भी रेखांकित करती है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस और राहुल के प्रदर्शन को 2024 के लोकसभा चुनावों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि जिस प्रकार, कर्नाटक चुनाव में राहुल की टक्कर सीधे पीएम मोदी के वैश्विक छवि से हुई, यही सिलसिला आगामी आम चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। हालाँकि, आम चुनावों से पूर्व, राहुल को अभी कई स्तरों पर और निखारने की जरुरत है। चूँकि, 24 की जंग से पूर्व 2023 के अंत में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं, तो राहुल के लिए भी यह विधानसभा चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होने वाले हैं। अब सवाल यह है कि राहुल ऐसा क्या करें और क्या नहीं, जिससे समय के साथ पीएम के तौर पर राहुल का सियासी पारा, गिरने के बजाए लगातार आगे बढ़ता चले?

 

इस सवाल के जवाब में कुछ और सवालों को समक्ष रखना होगा, इस क्रम में सबसे पहला और बड़ा सवाल यही कि क्या राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल और सकारात्मक रूप से बदली अपनी छवि को कायम रखने में सफल हो पाएँगे? इस सवाल के भीतर ही एक और प्रश्न कि तो क्या राहुल गांधी, पीएम पद के लिए देश की पहली पसंद बन पाएँगे?

 

मेरे अनुमान में राहुल को कुछ चीज़ों में बड़े बदलाव लाने और कुछ चीज़ों को सतत बनाए रखने की आवश्यकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भगवा से नीले और हरे में तब्दील होता भारत का सियासी मानचित्र, बीजेपी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। ऐसे में, राहुल गांधी का अचानक से एक मँझे हुए खिलाड़ी की तरह उभारना, सत्ता पक्ष को और अधिक सोचने पर मजबूर कर रहा है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल, विरोधी खेमे में मची खलबली का सही इस्तेमाल कर पाएँगे या नहीं।

 

लोकप्रिय से अधिक जनप्रिय नेता बनें राहुल

 

एक आँकड़ा बताता है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पिछले 9 सालों में कांग्रेस दो लोकसभा समेत करीब 40 विधानसभा चुनाव हार चुकी है। हालाँकि, एक तथ्य यह भी है, इन सभी हारों से राहुल ने कुछ न कुछ सीखा है, और लगभग एक दशक के इस सफर में कई आलोचनाओं का सामना करते हुए, सांसदी भी गँवा दी है। लेकिन जिस जटिलता के साथ वह सत्ता पक्ष का विरोध करते आए हैं, और खासकर जमीनी व जरुरी मुद्दों पर देश का ध्यान आकर्षित करने की जद्दोजहद करते दिखें हैं, उसने उन्हें एक जुझारू नेता की छवि दी है, जिसे उन्हें बरकरार रखने की सख्त जरुरत है। दूसरी ओर राहुल, चुनावी हार को लेकर हों या अपने आक्रामक या कई बार बेतुके बयान को लेकर, देश ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। उन्हें जनप्रिय राजनेता बनने की तरफ ध्यान केंद्रित करना होगा। जिस पर वह पिछले लम्बे समय से चल भी रहे हैं। उनकी सोशल मीडिया पर स्विमिंग करते, साइकिल चलाते, बैडमिंटन खेलते या पुशअप्स लगाते हुए फोटोज़ और वीडियोज़ बेशक उन्हें युवा कांग्रेसियों के लिए एक आदर्श नेता के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं, लेकिन इसके साथ देश के पढ़े-लिखे तबके से लेकर अंतिम व्यक्ति तक में, राहुल को अपनी छवि निखारने की दरकार है, जिसमें मुख्य रूप से ऐसी किसी बात से उन्हें दूरी रखना होगी, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिले। यानी राहुल को यह भी याद रखने की जरुरत है कि जब वह वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं, तो उन्हें राजनीतिक रंजिशों से ऊपर उठकर, एक राष्ट्र की और राष्ट्र एकता की बात को प्रमुखता से रखना होगा।

 

उपरोक्त बातें खासकर राहुल को केंद्र में रखकर ही कही गईं हैं, लेकिन उनके लिए कांग्रेस पार्टी और सरकार में किए गए कुछ फैसलों पर विचार करने और उनके साथ लोगों को भरोसे में लेने की आवश्यकता भी है। एक नरेशन जो लम्बे अरसे से कांग्रेस को हिन्दू विरोधी बताता आया है, राहुल को उसका भी काट निकालना होगा, क्योंकि जैसे-जैसे राजनीतिक दृष्टि से उनका कद ऊपर उठेगा, उनके पीछे कांग्रेस की कुछ कमियों, गलतियों या विरोधियों का तैयार किया नरेशन भी लग जाएगा। ऐसे में, वो सारे मुद्दे जो अब तक विरोधियों के लिए जनता को कांग्रेस के खिलाफ बरगलाने का एक विशेष हथियार बने हुए थे, उन्हें सिरे से खत्म करना होगा, भले अपने भाषणों में, सभाओं में, रैलियों में या सोशल मीडिया में… राहुल यदि देश की जनता को इस भरोसे में लेने में कामयाब हो जाते हैं कि वे कांग्रेस की पिछली गलतियों (जिसे देश की एक बड़ी आबादी स्वीकारती है), नाकामियों और खामियों को खत्म करके, एक नए युग के कांग्रेस का निर्माण करने जा रहे हैं, तो संभवतः वह देश के लिए पहला और बेहतर विकल्प होंगे।

 

देश को मोदी नहीं, बेहतर विकल्प की तलाश

 

वर्तमान में, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के दिल में बसने के लिए राहुल को मोदी की राह पर चलकर नहीं, बल्कि खुद की राह बनाते हुए आगे बढ़ना होगा। उन्हें भारी भरकम प्रचार-प्रसार से इतर, धरातल पर खुद की और कांग्रेस की जड़ें मजबूत करना होंगी और यह समय परिस्थितियों के हिसाब से इस काम के लिए बेहद अनुकूल है। एक तरफ, जहाँ देश महँगाई, बेरोजगारी और असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर मौजूदा मोदी सरकार से बिफरा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ दुनिया में फैली मोदी जी की चकाचौंध के आगे, देश के लिए उनसे बेहतर विकल्प की कल्पना नहीं कर पा रहा है। राहुल को वह विकल्प बनना है, लेकिन चकाचौंध के गलियारे से नहीं, बल्कि देश के युवा, महिला व बेरोजगारों आदि की सशक्त आवाज़ बनकर। उन्हें अपनी कोशिशों से यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ट्विटर पर #एक ही विकल्प मोदी जैसे ट्रेंड में अब बदलाव लेकर आएँ, यानी अब से सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक, (संसद में तो अब हैं नहीं) राहुल गांधी के लिए हर एक कदम बेहद महत्वपूर्ण और फूँक-फूँककर रखने जैसा होगा। उन्हें जनता का नेता और जनमानस की आवाज़ बनने की प्रक्रिया जारी रखना होगी।

 

सत्य के साथ सत्ता के खिलाफ

 

पिछली कुछ कोशिशों में सत्य के साथ सत्ता के खिलाफ जो माहौल कांग्रेस ने राहुल के चेहरे के इर्द-गिर्द तैयार किया है, उसे बनाए रखना भी महत्वपूर्ण होगा। इसके अलावा, राहुल के साथ-साथ कांग्रेसियों के बिगड़े बोल, इन चुनावों में काफी नकारात्मक असर डाल सकते हैं। उनकी या कांग्रेस की शब्दावली से कुछ ऐसे शब्दों को हटा देने में ही भलाई है, जिनका लाभ बीजेपी के दिग्गज, खासकर पीएम मोदी अक्सर उठाने में कामयाब हो जाते हैं। कांग्रेस के तीखे बोल राहुल पर और राहुल की कोई भी अटपटी टिप्पणी कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है, इसलिए दोनों ही पक्षों को शब्दों के चयन में बेहद सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। हालाँकि, अब कांग्रेस ने भी, बीजेपी के खिलाफ अपने कैंपेन्स को सफल बनाना शुरू कर दिया है। इसकी एक बानगी हाल के चुनावों में देखने को मिली है। लेकिन अपने खिलाफ उठे प्रश्नों को देशभक्ति के रंग में रंगने की जो कला बीजेपी और पीएम मोदी में है, राहुल को उसी कला का काट, जनता के मुद्दों से निकालना है।

 

जनता के समक्ष कांग्रेस के 70 सालों का बेहतर इतिहास

 

उपरोक्त बातों के अतिरिक्त 2024 लोकसभा चुनाव से पूर्व राहुल को खत्म होती कांग्रेस जैसी बातों को जड़ से मिटाते हुए, एक ऐसी पार्टी की झलक देश के मतदाताओं के सामने रखना है, जिसने आजादी की लड़ाई से लेकर, देश को खुद के पैरों पर खड़ा होना सिखाया। विरोध में उठने वाले स्वरों को अपनी ताकत बनाते हुए, 70 सालों में कांग्रेस ने क्या किया इसे प्रमुखता से जन-जन तक, युवा और भटके हुओं तक पहुँचाना होगा। यदि राहुल, एक ऐसे नेता की छवि विकसित करने में सफल हो जाते हैं, जो सत्य और अहिंसा के साथ, गांधी जी के रास्ते पर चलने का मन बना चुका है, तो निश्चित ही वह एक प्रखर राजनेता के रूप में, पीएम पद के लिए जनता की सर्वश्रेष्ठ पसंद भी बन सकते हैं। हालाँकि, इस दौरान उन्हें एक बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि उनकी सीधी टक्कर देश के प्रधानमंत्री से कम, बल्कि एक वैश्विक राजनेता से अधिक है। लोकप्रियता के मामले में पीएम मोदी दुनिया के टॉप पर्सनालिटीज़ में से एक हैं। दूसरी ओर, राहुल वैश्विक मंचों पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के ऊपर बोलने वाले वक्ता जरूर हैं, लेकिन अभी देश में अपनी जनप्रियता की जड़ें मजबूत करने की प्रक्रिया में हैं। इसलिए सार्वजानिक मंचों पर मुद्दों पर बने रहना और तथ्यों के साथ सरकार को कटघरे में खड़ा करना, उनकी महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करेगा।


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