रायपुर,17 सितम्बर , 2023 /
मुहावरे जिस तरह बनते हैं, उस तर्ज पर यदि आने वाले दिनों में “मर्ज का हद से गुजरना है मोदी का जी-20 हो जाना” जैसा कोई मुहावरा आम हो जाए तो ताज्जुब नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय नजरिये से एक महत्वपूर्ण आयोजन – जी-20 – के 18वें सम्मेलन को जिस फूहड़ तरीके से “मोदी नाम पै शुरू, मोदी नाम पै ख़तम” के मनोरंजन मेले – कार्निवाल – में बदला गया, वह हर लिहाज से असामान्य और असाधारण है। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश में ‘जित देखो तित मोदी’ के पोस्टर्स थे, हर होर्डिंग पर वे ही वे थे, हर अखबार में पूरे-पूरे पन्नों के विज्ञापनों में भी वे ही थे, चैनलों की खबरों में मोदी, छोटे-बड़े-मंझोले भाजपाईयों की बाईट्स में मोदी, सारी हाईलाइट्स में मोदी ही मोदी थे। मौजूदा राज, जो इसके प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार और खुद उनके द्वारा किये जाने वाले आत्मप्रचार के लिए इतिहास में रिकॉर्ड तोड़क के रूप में जाना जाएगा, उसके हिसाब से भी इस बार कुछ ज्यादा ही अधिक था। जुगुप्सा जगाने वाली आत्मकेंद्रितता थी, भारतीयों को लज्जित कर देने वाली आत्ममुग्धता थी।
गौरतलब है कि अध्यक्षी का मिलना कोई असाधारण घटना नहीं थी। जी-20 में बारी-बारी से सदस्य देशों में से किसी एक को, सम्मेलन जिस देश में होना है उसके राष्ट्रप्रमुख को, अध्यक्ष बनाए जाने की प्रथा है। इसका पिछ्ला सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली में हुआ था। वहां के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने इसकी अध्यक्षता की। इसमें अगले सम्मेलन की जगह दिल्ली तय हुयी और 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक के लिए भारत के प्रधानमंत्री को इसका अध्यक्ष बनाया गया। अब 2024 का सम्मेलन ब्राजील में होना है, लिहाजा 1 दिसंबर 2023 से इसके अध्यक्ष ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा होंगे। इस तरह यह एक सामान्य परिपाटी है, आम बात है, होती रहती है, हर साल होती है। मगर जी-20 की साल भर की अध्यक्षी को भारत में पिछली साल से धुआंधार तरीके से कुछ इस तरह प्रचारित करना शुरू किया गया कि जैसे यह कोई सामान्य प्रथा नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया द्वारा मोदी को अपना नेता मान लिया जाना है। सम्मेलन के आयोजन के समय तो जैसे सारी सीमाएं ही लांघ दी गयीं। यह हल्दी की गाँठ मिलने पर पंसारी की दूकान खोल लेने जैसा आभासीय महानता की आड़ में छुपाया जा रहा बौनापन ही है। भारत के सिवा दुनिया के ज्यादातर मीडिया और राजनीतिक समीक्षकों ने इसे इसी तरह लिया भी और मखौल भी उड़ाया।
कहने को तो जी-20 दो दिनों की शिखर वार्ता के अलावा हाल के कुछ वर्षों से अनेक विषयों पर अलग-अलग सत्र भी आयोजित करने लगा है, मगर मूल रूप से यह रईस देशों की खुद उनकी करतूतों से पैदा हुयी मुश्किलों का, बाकी दुनिया की कीमत पर हल ढूँढने और अपनी नीतियों में ही अन्तर्निहित दुर्बलता की शिलाजीत तलाशने के मंच के रूप में अस्तित्व में आया था। आज इसमें शामिल 19 देश और 20 वां सदस्य यूरोपीय यूनियन भले दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी और 75 प्रतिशत बाजार का प्रतिनिधित्व करते हैं, मगर 2007 में इसकी स्थापना सात देशों के समूह – जी 7 – के रूप में तब हुयी थी, जब तेल उत्पादक देशों ने इस्राईल का समर्थन करने वाले देशों को तेल न बेचने का निर्णय लिया था और इन बड़े देशों के लिए तेल संकट पैदा हो गया था। अनेक वर्षों तक यह इन 7 देशों का समूह रहा। कुछ साल बाद 2007 में पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी का साया मंडरा रहा था, 2008 में तो अमरीका का भट्टा ही बैठ गया ; ऐसे में जी-20 के स्तर को और ऊपर उठाया गया। इसे वित्त मंत्रियों से ऊपर उठाकर राष्ट्र प्रमुखों का शिखर सम्मेलन बना दिया गया। तब से इसकी बैठक में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेने लगे। इस समूह में 19 देश, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की (अब तुर्किए) , ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। इसके साथ ही इस ग्रुप का 20वां सदस्य है यूरोपियन यूनियन, यानी यूरोप के देशों का समूह। इस बार अफ्रीकी देशों के संगठन अफ्रीकन यूनियन को भी शामिल कर लिया गया है।
जी-20 की अब तक की बैठकें अमरीका के अलावा ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको, रूस, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की, चीन, जर्मनी, अर्जेंटीना, जापान, सऊदी अरब, इटली, इंडोनेशिया में हुईं – इन बैठकों के अध्यक्ष इन देशों के राष्ट्र प्रमुख रहने की वजह से वे विश्व के नेता तो नहीं ही बन गए ; मगर मोदी है, तो मुमकिन हैं। यहाँ बैठक का होना भर ही मोदी का – भारत का नहीं, मोदी का – विश्व का नेता बन जाना है। हालांकि उनकी सरकार की अमरीका-पिछलग्गू विदेश नीति के चलते दुनिया में भारत की हालत कहाँ आ पहुंची है, इसे पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ने जाहिर-उजागर करके सबको बता दिया है।
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