अंग्रेजी बोलना कोई मेरिट नहीं है, क्यों चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कही ये बात

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नई दिल्ली,12 नवम्बर 2022\ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अंग्रेजी बोलना कोई मेरिट नहीं है। दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप सम्मिट को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे समाज में मेरिट की जो पारंपरिक परिभाषा है वो हमारे सांस्कृतिक रूढ़िगत धारणा का नतीजा है। उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे लिए मेरिट इस बात पर भी निर्भर करता है कि कौन अंग्रेजी बोल सकता है, कौन सही कॉलेज गया, किसे कोचिंग क्लास मिला, किसने पियानो या वायलिन सीखा या कौन तैराकी सीखने स्वीमिंग क्लब गया। उन्होंने कहा कि हम जिन चीजों को आज मेरिट के तौर पर देखते हैं, मेरिट जरूरी नहीं है कि वही हो।

हमारा काम न्याय देना है, केस छोटा हो या बड़ा

चीफ जस्टिस ने कहा कि न्याय के लिए कोई भी कोर्ट पहुंच सकता है ये हमारी ताकत है। उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि ये क्या सुप्रीम कोर्ट है जो छोटे-मोटे विवाद और झगड़े का केस सुनता है लेकिन हमारा रोल है कि हम गर्भपात के केस सुनें, किसी तलाकशुदा को पांच हजार रुपए गुजारा भत्ता ना मिल रही हो तो उसकी फरियाद सुनें, किसी को बेल ना मिल रही हो तो उसको सुनें। मामला न्यूज या सोशल मीडिया में चर्चा के लायक हो या ना हो, हमारा काम न्याय करना है।

चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने निचले स्तर तक फैसला नहीं लेने की एक संस्कृति बना ली है. एक अविश्वास का माहौल है, जिसकी वजह से फैसला नहीं लेते. लोगों को लगता है कि कल को केस हो गया तो, कल को जांच हो गई तो. इसलिए फैसले नहीं लेते हैं और मामले कोर्ट तक आते हैं। सवाल पेंशन का हो, आश्रित को नौकरी देने का मामला हो, फैसले नहीं होने पर कोर्ट पहुंचते हैं।

चुप हो जाएंगे जज तो फैसले की प्रक्रिया को खतरा होगा

चीफ जस्टिस ने कहा कि सोशल मीडिया ने कोर्ट के सामने एक नई तरह की चुनौती पेश की है। कोर्ट में जज जो कहता है वो हर बात निर्णय लेने की प्रक्रिया का संवाद है। लेकिन सोशल मीडिया पर रीयल टाइम चलता है कि आप क्या कहते हैं, आपके एक-एक शब्द से आपको लगातार आंका जाता है। इससे अगर जज बहस में चुप हो जाएगा तो न्यायिक फैसला लेने की प्रक्रिया को खतरा पैदा होगा। जस्टिस चंद्रदूड़ ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए हमें खुद को बदलना होगा।


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