नई दिल्ली,24 फरवरी 2023\ पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकारों को चेतावनी दी है कि वो 2020 के आदेश पर अमल सुनिश्चित करें. अदालत ने 29 मार्च तक केंद्र सरकार, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को इस आदेश के अनुपालन की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है. ये आदेश सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले में सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे की रिपोर्ट पर आया है, जिसमें कहा गया है कि अब भी देश भर में पुलिस थानों और केंद्रीय जांच एजेंसियों के अधिकतर दफ्तरों में समुचित सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं. जो कैमरे लगे भी हैं, वो या तो काम नहीं कर रहे या गुणवत्ता में बेहद घटिया हैं. कई में धुंधले विजुअल आ भी रहे हैं तो कुछ में ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं है.
केंद्रीय गृह सचिव को दिया ये आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 में ये आदेश सभी पुलिस थानों, पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों मसलन सीबीआई, ईडी, एनआईए वगैरह जिन्हें गिरफ्तारी का अधिकार मिला है उनके दफ्तर सीसीटीवी कैमरे की निगाह में रखने का आदेश दिया था. अब ये मसला जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ के सामने आया कि अब तक इस आदेश का पूरी तरह से पालन सुनिश्चित नहीं हुआ है. एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने अदालत को बताया कि अधिकतर पुलिस थाने और पुलिस के दफ्तर अभी भी सीसीटीवी कैमरों के बगैर ही काम कर रहे हैं. विचाराधीन आरोपियों और हिरासत में लिए गए आरोपियों के साथ मनमाना बर्ताव होता है लेकिन उसका कोई सबूत नहीं होता. कोर्ट ने 18 अप्रैल को इस मामले की अगली सुनवाई तय की है, लेकिन इस बीच कोर्ट ने केंद्रीय गृह सचिव को आदेश दिया है कि वो सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को इस आदेश और इसके अनुपालन के बारे में सुनिश्चित कर रिपोर्ट दाखिल करने पर निगरानी भी रखें.
यह होगा फायदा
दरअसल, कोर्ट ने 2020 में ही अपने आदेश में कहा था कि पुलिस स्टेशन, जांच एजेंसियों के दफ्तरों के प्रवेश और निकास द्वार, थानों के मुख्य द्वार के बाहर, गलियारों, बरामदों, स्वागत कक्ष, हवालात, पुलिस अधिकारियों के कक्ष, आउटहाउस, शौचालय के बाहर और थाना या दफ्तर परिसर के पिछवाड़े में भी सीसीटीवी कैमरे का पूरा सिस्टम 24 घंटे 365 दिन नाइट विजन सिस्टम और ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ कार्यरत रहे ताकि पूछताछ के नाम पर हिरासती का टॉर्चर रोका जा सके. साथ ही अदालतें टॉर्चर के आरोप लगाए जाने पर सीसीटीवी फुटेज मंगाकर आरोपों की सच्चाई की जांच कर सकें.
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