सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेवाएं समाप्त किए गए कर्मचारी को बैक डोर प्रविष्टि देने के प्रयास का विरोध

रायपुर।
यह मामला कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर का है, जहां 17 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिसंबर में शाहिद अली की सेवाएं रीडर / एसोसिएट प्रोफेसर के पद से समाप्त कर दी गई थीं । एक क्लर्क रैंक के विश्विद्यालय के कर्मचारी ने 1 अप्रैल 2025 को रजिस्ट्रार को संबोधित पत्र भेज कर इस मामले को फिर से विचार करने के लिए लिखा जो 20 मई 2025 को विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक में लाया गया था। एजेंडा को ‘किसी भी अन्य आइटम श्रेणी’ के रूप में रखा गया और बिंदु 16 के तहत मीटिंग के मिनट्स में पारित किया गया कि इस पर कानूनी राय ली जानी चाहिए जबकि इस बारे में पहले ही उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कानूनी राय ली जा चुकी है। इस पत्र के पीछे निहित परिप्रेक्ष्य का उल्लेख करते हुए ऐसी मंशा पर शिकायत की गई है।
उक्त पत्र आकाश चंद्रवंशी द्वारा लिखा गया है, जिस पर चंडीगढ़ के डॉ आशुतोष मिश्रा ने आपत्ति जताई है और 29 मई 2025 को पत्र लिख कर इसे उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों के नोटिस में लाया है।
उनके पत्र का संज्ञान लेते हुए, राष्ट्रपति सचिवालय ने उसी दिन मुख्य सचिव को मामला ईमेल के जरिए जांच के लिए भेजा है।
आकाश चंद्रवंशी ने अपने पत्र में एक और मुद्दा संजय द्विवेदी का भी लिखा है कि उसे भी एग्जीक्यूट काउंसिल पर विचार करने के लिए लाया जाए । डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि इसके बारे में पहले ही कार्यकारी परिषद की बैठक में आदेश हो चुका है कि 2005 में संजय द्विवेदी की विश्वविद्यालय में नियुक्ति और सर्टिफिकेट्स के आधार पर उन पर कानूनी कार्यवाही की जाए और शाहिद अली पर केस भी चलाया जाए तो अब कैसे, क्यों और किस आधार पर विश्विद्यालय पीछे हटने का प्रयास कर रहा है।
डॉ आशुतोष मिश्रा ने अपनी शिकायत में लिखा है कि शाहिद अली और संजय द्विवेदी दोनों ने अनुभव प्रमाण पत्र का इस्तेमाल नौकरी पाने के लिए 2005 में किया था जो कि गोपा बागची ( शाहिद अली की पत्नी) द्वारा गुरु घासीदास विश्विद्यालय से जारी किया गया था।रीडर/एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में उन दोनों की नियुक्ति को बिलासपुर उच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई तथा इस केस पर अंतिम निर्णय से पूर्व ही संजय द्विवेदी ने कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में कार्य करने के 6 माह के भीतर पद छोड़ दिया था।
डॉ. आशुतोष मिश्रा ने अधिकारियों से आग्रह किया है कि आकाश चंद्रवंशी के इस कदम, भाषा, प्रस्ताव और पत्र की जांच की जाए, क्योंकि शाहिद अली का मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में तय हो चुका है । सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय पर कानूनी राय लेने के बाद विश्वविद्यालय ने उन्हें बर्खास्त कर दिया है। इस कार्यवाही को पहले ही कार्यकारिणी परिषद द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है, फिर इसे पिछले दरवाजे से कैसे और क्यों आगे बढ़ाया जा रहा है और कार्यकारिणी परिषद के अन्य सभी सदस्यों को अंधेरे में रखा जा रहा है।