बीमा क्षेत्र में 100% एफ डी आई बढ़ोतरी का देश विरोधी फैसला

रायपुर।
एन डी ए की केंद्र सरकार द्वारा बजट में बीमा क्षेत्र में एफ डी आई की सीमा 74% से बढ़ाकर 100 प्रतिशत किये जाने के कदम को देशविरोधी फैसला करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग को लेकर देशभर में बीमा कर्मियों ने जबरदस्त प्रदर्शन आयोजित किए । आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाईज एसोसिएशन के आव्हान पर मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ के रायपुर,भोपाल, इंदौर , जबलपुर, सतना, शहडोल, ग्वालियर, बिलासपुर मंडलों के अलावा मध्यक्षेत्र में 140 और देश भर में 2050 से अधिक शहरों में यह विरोध प्रदर्शन आयोजित हुए और मोदी सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की गई । छत्तीसगढ़ की एल आई सी की समस्त शाखा कार्यालयों में भी कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान नारेबाजी कर विरोध सभायें ली। मंडल कार्यालय में आयोजित प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सेंट्रल जोन इंश्योरेंस एम्पलाईज एसोसिएशन के महासचिव का. धर्मराज महापात्र ने कहा कि वित्त मंत्री के द्वारा बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा को मौजूदा 74% से बढ़ाकर 100% करने की घोषणा वित्त विधेयक के जरिए के साथ की गई याने यह सरकार इस पर संसद तक में कोई चर्चा नहीं चाहती है। सरकार को यह मालूम कि उसके इस निर्णय का कोई जायज आधार नहीं है इसलिए वह संसद तक में इस पर कोई जवाब देने की बजाय इसे पारित कर लेना चाहती है जबकि यह देश के वित्तीय स्रोतों पर विदेशी नियंत्रण को पुष्ट करेगी । भारत सरकार का यह निर्णय पूरी तौर पर अनुचित है और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कीमती संसाधनों को जुटाने और अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व को पूरा करने में रुकावट आयेगी जिसके गंभीर परिणाम होंगे । बीमा कर्मचारियों के राष्ट्रीय संगठन आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाइज एसोसियेशन ने सरकार के इस निर्णय की कड़ी निंदा की है और इस कदम के खिलाफ जनमत निर्माण का ऐलान किया है ।उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 में आईआरडीए विधेयक के पारित होने के साथ ही बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण समाप्त किया गया था । इस अधिनियम ने भारतीय पूंजी को विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में बीमा उद्योग में काम करने की अनुमति दी। उस समय एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत तक सीमित था; इसके बाद इसे बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है। विदेशी भागीदारों के साथ बड़ी संख्या में निजी बीमा कंपनियाँ जीवन और गैर-जीवन बीमा उद्योग दोनों में काम कर रही हैं। इन कंपनियों के लिए अपने व्यवसाय को चलाने के लिए पूंजी कभी भी बाधा नहीं रही है, क्योंकि इनका स्वामित्व बड़े व्यापारिक घरानों के पास है जो विश्व के शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी करते हैं। हकीकत में, बीमा में कुल एफडीआई नियोजित पूंजी का लगभग 32 प्रतिशत ही है। इस मामले में, यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने विदेशी पूंजी को भारत में काम करने की पूरी स्वतंत्रता देने का कदम क्यों उठाया है। यदि कोई किसी कंपनी में विदेशी साझेदार इससे से अलग होकर कोई नई कंपनी बनाने का फैसला कर लेगा तो इस निर्णय से भारतीय कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर परिणाम होंगे । इससे मौजूदा कंपनियों को अपने कब्जे में लेने के लिए भी उनके द्वारा शत्रुतापूर्ण बोलियाँ भी लगने लगेंगी। का. महापात्र ने कहा कि विदेशी पूंजी को पूर्ण स्वतंत्रता और हमारी घरेलू बचत यानि वित्तीय स्रोत तक अधिक पहुंच प्रदान करने से बीमा उद्योग का व्यवस्थित विकास बाधित होगा, क्योंकि उनके द्वारा आम लोगों और व्यवसाय को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के बजाय लाभ पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। जिसका भारतीय समाज के हाशिए पर पड़े वंचित वर्गों के हितों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, विदेशी पूंजी कभी भी घरेलू बचत का विकल्प नहीं हो सकती। इस स्थिति में, घरेलू बचत को विदेशी पूंजी को सौंपना आर्थिक या सामाजिक किसी भी रूप में कोई समझदारी भरा कदम नहीं है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है, इसलिए आवश्यक रूप से आर्थिक विकास के लिए बचत पर राज्य का अधिक नियंत्रण रहना चाहिए, जो उसके सभी नागरिकों के लिए भी लाभकारी है।
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए आर डी आई ई यू के महासचिव का. सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि सरकार मौजूदा बीमा कानूनों में संशोधन करके एक व्यापक कानून लाने का इरादा रखती है। ये संशोधन देश को 1956 से पहले की स्थिति में ले जाएंगे, जिसने सरकार को जीवन बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर किया था। तत्कालीन सरकार ने इस चेतावनी पर ध्यान दिया था कि बीमा को वित्तपोषकों के नियंत्रण में नहीं आने दिया जाना चाहिए। लेकिन मौजूदा सरकार अब बीमा क्षेत्र को वित्तपोषकों के और बैंकर के हाथों में सौंप रही है, जिससे आम लोगों की बचत को बड़ा खतरा पैदा हो रहा है।
यह निंदनीय है कि बजट में आर्थिक विकास को गति देने के लिए आबादी के एक छोटे से हिस्से पर भरोसा किया गया है, जबकि बहुसंख्यक वर्ग के हितों की अनदेखी की गई है। इसने कॉर्पोरेट क्षेत्र पर समुचित स्तर का कर लगाने से इनकार कर दिया । जबकि आर्थिक सर्वेक्षण ने इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का मुनाफा बढ़ रहा है और उसकी तुलना में श्रमिकों का वेतन स्थिर है। बजट में श्रमिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। हमारे संगठन ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाने के फैसले के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए, इस कदम को वापस लेने की मांग की है। हम सरकार को बीमा कानून जैसे बीमा अधिनियम 1938, एलआईसी अधिनियम 1956 और आईआरडीए अधिनियम 1999 में संशोधन करने के प्रतिगामी प्रस्ताव के खिलाफ गंभीर चेतावनी देते है। सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को कॉर्पोरेट पक्षधरता से हटाकर जन-केंद्रित उपायों की ओर मोड़ने की जरूरत है। हमारा स्पष्ट मानना है कि सरकार को कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे से ऊपर आम लोगों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस अवसर पर मंडल कार्यालय, शाखा क्र.2, सी ए बी रायपुर, पी एंड जी एस विभाग के बीमाकर्मियों के साथ बडी संख्या में पेंशनर्स साथी भी उपस्थित थे। सभा की अध्यक्षता और संचालन अध्यक्ष साथी राजेश पराते ने किया।