धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव: राज्यसभा में क्या है संख्या का गणित, हृष्ठ्र या इंडी कौन भारी

नईदिल्ली ।
संसद में जारी तकरार के बीच विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर सदन के संचालन में गंभीर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया है। आइएनडीआइए गठबंधन के राज्यसभा के करीब 60 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त अविश्वास प्रस्ताव मंगलवार को राज्यसभा महासचिव को सौंपा गया।उच्च सदन राज्यसभा के 72 साल के संसदीय इतिहास में किसी सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की यह पहली घटना है। सदन के संचालन में धनखड़ के कथित पक्षपाती व्यवहार से क्षुब्ध एकजुट विपक्ष ने इस प्रस्ताव के जरिए उन्हें हटाए जाने की मांग की है। सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के विपक्षी दलों के कदम के बाद शीत सत्र में सरकार और विपक्ष में चल रही तकरार अब तल्ख सियासी दौर में पहुंच गई है। सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के इस नोटिस पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस, सपा, वामदल, द्रमुक, राजद समेत अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश और पार्टी सांसद नसीर हुसैन ने अविश्वास प्रस्ताव का यह नोटिस राज्यसभा के महासचिव पीसी मोदी को सौंपा। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पदेन राज्यसभा के सभापति हैं। ऐसे में उन्हें हटाने के लिए विपक्ष दलों ने संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत नोटिस दिया है। प्रस्ताव पर 50 सांसदों के हस्ताक्षर की अनिवार्यता की पहली शर्त के अनुरूप विपक्ष ने यह नोटिस दिया है। इसमें प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में बहुमत से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव पारित किया जा सकता है मगर इसके बाद लोकसभा से भी प्रस्ताव का पारित होना अनिवार्य है। वैसे आंकड़ों के गणित में विपक्ष के पास राज्यसभा में करीब 103 सदस्य हैं जबकि एनडीए के पास 126 सांसद हैं और ऐसे में धनखड़ को हटाने का प्रस्ताव पारित होने की कोई गुंजाइश नहीं है।
प्रस्ताव के वर्तमान सत्र में सदन में आने की भी संभावना नहीं है क्योंकि कम से कम चौदह दिन पहले नोटिस दिया जाना जरूरी है, जबकि 20 दिसंबर को समाप्त हो रहे सत्र में केवल नौ दिन रह गए हैं। धनखड़ के खिलाफ अविश्वास नोटिस का कदम उठाए जाने के बाद भी संवैधानिक पद पर आसीन राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा सोनिया गांधी समेत सदन में अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने नोटिस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।विपक्षी सांसदों को अपनी बात रखने का मौका नहीं देने को लेकर सभापति के साथ तल्खी लंबे समय से चल रही थी। बीते अगस्त में मानसून सत्र के दौरान भी विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने के इरादे जाहिर किए मगर संवाद से रास्ता निकलने की उम्मीद में अपने कदम खींच लिए। लेकिन शीत सत्र के दौरान सत्तापक्ष के सांसदों को अवसर देने और विपक्षी सांसदों की अनदेखी को लेकर समूचा विपक्ष धनखड़ के खिलाफ एकजुट हो गया है।अविश्वास प्रस्ताव नोटिस सौंपने के बाद जयराम रमेश ने पत्रकारों से कहा कि आइएनडीआइए गठबंधन से जुड़े सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर सर्वसम्मति से राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया है। उनके अनुसार यह दुर्भाग्य है कि धनखड़ ने पक्षपातपूर्ण तरीके से सदन का संचालन किया है और नेता विपक्ष की बात तक नहीं सुन रहे। केवल सत्ता पक्ष के सांसदों को हमारे वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ सबसे आपत्तिजनक भाषा में बेबुनियाद आरोप लगाने की अनुमति दे रहे हैं। सत्तापक्ष को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा और राज्यसभा के इतिहास में पहली बार सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने लिए विपक्ष को मजबूर किया गया है।जयराम ने कहा कि यह दुखदायी निर्णय है मगर संसदीय लोकतंत्र के हित में विपक्ष को यह कदम उठाना पड़ा है। आम आदमी पार्टी के संजय ङ्क्षसह ने भी विपक्षी सांसदों की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिए जाने की पुष्टि की। वहीं राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस की उपनेता सागरिका घोष ने कहा कि प्रस्ताव पारित कराने के लिए हमारे पास संख्या नहीं है, लेकिन संसदीय लोकतंत्र के लिए लडऩे का यह एक मजबूत संदेश है।