जहां पड़े थे प्रभु राम के चरण, उस शबरी नदी घाट पर दिखी तीन राज्यों की सांस्कृतिक एकता की झलक


जगदलपुर।

जहां पड़े थे प्रभु श्रीरामचंद्र के चरण उस शबरी नदी के तट पर बुधवार और गुरुवार को तीन राज्यों की संस्कृतिक एकता की शानदार झलक देखने को मिली। लोक आस्था का महापर्व छठ धूमधाम से मनाया गया।
छठ पूजा बिहार, झारखंड ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों में भी हर साल बड़े  धूमधाम से मनाई जाती है।  बिहार में यह सिर्फ पर्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस पर्व का इंतजार हर बिहारी पूरे वर्ष भर करता है। बिहार, झारखंड के लोग सभी राज्यों के अमूमन सभी जिलों में बड़ी संख्या में निवासरत हैं।ऐसे में इस महापर्व पर अब पूरे भारत भर में छटा अलग ही बन जाती है। लोग बहुत ही आस्था और विश्वास के साथ इस पर्व में शामिल होते हैं और महिलाएं व्रत करती हैं। ऐसे ही छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंतिम छोर सुकमा जिले के कोंटा में भी पिछले 30 सालों से छठ पर्व की रस्म निभाई जा रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता जब श्रीराम के साथ वनवास पर थीं, तब उन्होंने पहली बार छठ पूजन किया था। और कोंटा में दशकों से रह रहे बिहारी समाज के लोगों की आस्था, विश्वास और गहरे हो जाते हैं जब शबरी नदी के घाट पर श्रद्धालु डूबते हुए और उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने पहुंचते हैं। क्योंकि प्रभु श्रीराम अपने वनवास के दौरान माता सीता को खोजते हुए यहीं पर माता शबरी के पास पहुंचे थे और शबरी के जूठे बेर खाए थे। वहीं से शबरी नदी का मीठा और स्वच्छ पानी बहता है, जहां भगवान श्रीराम के पग पड़े थे, उस इंजरम के पास पड़ता है कोंटा। यूपी-बिहार भोजपुरी समाज के लोग तीन दशक से भी अधिक समय से छठपर्व कोंटा में मना रहे हैं। खासकर गुप्ता परिवार द्वारा यह परम्परा यह शुरू की गइ और आज तक उसे निभाते आ रहे हैं। छठ पूजा एक हिंदू पर्व है, जो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पूजा पर भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा की जाती है। व्रत को लेकर मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सूर्य देवता की कृपा मिलती है। साथ ही संतान से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं। इस साल छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर से हुई और समापन 8 नवंबर को उगते सूर्यदेव को अर्ध्य देने के साथ हुआ। पहले दिन यह व्रत नहाय खाय के साथ शुरू हुआ। दूसरा दिन खरना हुआ जिसमें गुड़ और चावल की खीर तैयार की जाती है।

तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया। वहीं, चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के बाद पूजा समाप्त हुआ। छठ पूजा के दौरान महिलाएं 36 घंटे निर्जला उपवास रखती रहीं। वहीं इस पर्व पर कोंटा नगर में बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ियों के बीच एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है। शबरी नदी पर छठ के दौरान ऐसा दृश्य देखने को मिलता है, तीन राज्यों की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन जाता है। और यह पिछले दशकों से चलते आ रहा हैं। जहां माताएं अपने संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह सांस्कृतिक मिलन केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि इस पर्व के माध्यम से तीन राज्यों के बीच गहरी सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है। इस विशेष अवसर पर न केवल छठव्रती महिलाएं बल्कि उनके परिवार के सदस्य भी इस संगम का हिस्सा बनते हैं। व्रती महिलाओं का कहना है कि छठ पूजा में विशेष पवित्रता और संकल्प की आवश्यकता होती है।


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *