जब देश में निर्माण कार्य होने पर जनहित याचिकाएं क्यों दायर की जाती हैं, सुप्रीम कोर्ट ने जताया आश्चर्य


नईदिल्ली  ।

देश में निमार्ण कार्यों से जुड़ी याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि विकास और हैरानी जताते हुए कहा पारिस्थितिकीय संतुलन साथ-साथ चलने चाहिए। जब राजमार्ग जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की जाती हैं तो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) क्यों दायर की जाती हैं। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी गोवा में तिनैघाट-वास्को डी गामा मार्ग के वास्को डी गामा-कुलेम खंड पर रेलवे पटरियों के दोहरीकरण के लिए निर्माण कार्य पर एक याचिका पर सुनवाई करते समय आई।जस्टिस सूर्यकांत और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि हम केवल यह सोच रहे हैं कि ऐसा केवल इस देश में ही क्यों होता है कि जब आप हिमाचल (प्रदेश) में सडक़ बनाना शुरू करते हैं तो जनहित याचिकाएं आ जाती हैं।

जब आप राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण शुरू करते हैं, तो जनहित याचिकाएं आती हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप हमें एक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बताएं जहां रेलवे की सुविधा नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि आल्प्स पहाड़ों पर जाएं और वे आपको ट्रेन में बर्फ के बीच ले जाएंगे। शीर्ष अदालत बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा पीठ के अगस्त 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने रेलवे ट्रैक के दोहरीकरण के निर्माण से संबंधित एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था।याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में आरोप लगाया था कि निर्माण कार्य 2011 तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना, गोवा सिंचाई अधिनियम, 1973, गोवा पंचायत राज अधिनियम, 1994 और गोवा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट, अन्य के तहत पूर्व अनुमति प्राप्त करने के वैधानिक आदेश का उल्लंघन करके किया जा रहा था। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि यह परियोजना गोवा में रेलवे नेटवर्क को मजबूत करेगी और सडक़ परिवहन पर बोझ को कम करने में मदद करेगी।पीठ ने कहा कि यह एकमात्र देश है जो सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करता है। बाकी न्यायक्षेत्रों को भगवान ने छूट दी है।


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