कृषि विश्वविद्यालय में नये शैक्षणिक सत्र से लागू होगी नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति


रायपुर ।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में जुलाई-अगस्त से प्रारंभ नये शैक्षणिक सत्र में नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विभिन्न प्रावधानों को लागू किया जाएगा। इन प्रावधानों के तहत स्नातक पाठ्यक्रमों में चार वर्ष की पढ़ाई पूर्ण न कर पाने वाले विद्यार्थियों को बीच में पढ़ाई छोड़ने पर सर्टिफिकेट तथा डिप्लोमा प्रदान किये जाएंगे। इसके साथ ही नवीन शिक्षा नीति के प्रावधानों के अनुरूप अब सैद्धान्तिक पढ़ाई की बजाय प्रायोगिक पढ़ाई पर अधिक ध्यान दिया जाएगा और इसे रोजगारमूलक बनाया जाएगा। इसके साथ ही विद्यार्थी ऑनलाईन प्लेटफॉम के माध्यम से भी पढ़ाई कर सकेंगे। पढ़ाई की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए नियमित अध्यापकों के अलावा विजिटिंग प्रोफेसर, प्रोफसर ऑफ प्रैक्टिस तथा एडजंट फैकल्टी की नियुक्ति भी की जाएगी। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की अध्यक्षता में आयोजित विद्या परिषद की बैठक में इस आशय के निर्णय लिये गये।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर की विद्या परिषद की बैठक दिनांक 09 जुलाई 2024 को आयोजित की गई। जिसमें स्नातक स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को इसी शैक्षणिक सत्र (2024-25) से लागू किये जाने के प्रस्ताव को पारित किया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के तहत संचालित स्तानतक स्तर के पाठ्यक्रम जिसमें बी.एस.सी. (आनर्स) कृषि, बी.टेक. कृषि अभियांत्रिकी एवं बी.टेक. खाद्य प्रौद्योगिकी में इसे लागू किया जावेगा। इस नीति के लागू होने के उपरान्त स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेशित विद्यार्थी प्रथम वर्ष एवं द्वितीय वर्ष में यदि पाठ्यक्रम स्तर की पढ़ाई छोड़ना चाहे तो उन्हें इसकी अनुमति होगी और इसके साथ उन्हें 10 सप्ताह का इंटर्नशिप कोर्स करने के साथ प्रथम वर्ष के उपरान्त प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट) प्रदान किया जायेगा। यदि वह द्वितीय वर्ष के बाद पाठ्यक्रम की पढ़ाई से बाहर होता है तो इसी अवधि की इंटर्नशिप करने पर डिप्लोमा प्रदान किया जायेगा। ऐसे विद्यार्थी इस तहर के सर्टिफिकेट/डिप्लोमा प्राप्त कर स्व-रोजगार या रोजगार का कार्य कर सकते हैं। अगर उन्हें स्व-रोजगार या रोजगार में कुछ दिन कार्य करने के उपरान्त असंतुष्टि मिलती है और वह आगे की पढ़ाई जारी करना चाहते हैं तो वे पुनः अपने स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं, परन्तु यह अवधि उनके प्रवेश लेने के एवं स्नातक उपाधि पूर्ण करने के सात वर्ष से अधिक नहीं होगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह भी प्रावधान है कि विद्यार्थी प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष में जितने कोर्सेज को पढ़ेगा उसके प्रत्येक के क्रेडिट होंगे तथा उन क्रेडिट्स का ऑनलाईन राष्ट्रीय पोर्टल पर रिकार्ड रखा जाएगा। इससे आगामी वर्षां में यह लाभ होगा कि ऐसे विद्यार्थी देश के किसी भी विश्वविद्यालय में लेट्रल इन्ट्री के तहत प्रवेश प्राप्त कर अपने पाठ्यक्रम के बचे हुए कोर्सेज एवं क्रेडिट की उपाधि प्राप्त कर सकेंगे। अर्थात विद्यार्थियों द्वारा प्रथम वर्ष अथव द्वितीय वर्ष में उत्तीर्ण किये गये विषयों का लेखा-जोखा राष्ट्रीय स्तर पर होगा व अन्य विश्वविद्यालय में भी उसे शेष उतने विषयों/क्रेडिट्स की पढ़ाई करनी होगी जो उसके लिए शेष है। इस शिक्षा नीति की एक विशेषता यह भी है कि जैसे ही विद्यार्थी प्रथम वर्ष में प्रवेश लेता है उसे कोर्स के बारे में परिचय दिया जाएगा और यह दो सप्ताह की अवधि का होगा। इस अवधि में उसे स्नातक स्तर की पढ़ाई से संबंधित समस्त जानकारी प्रदान की जाएगी जिसमें कोर्स की संख्या, कोर्स के क्रेडिट संबंधि जानकारी वह इस पाठ्यक्रम से बाहर होना चाहता है तथा सर्टिफिकेट, डिप्लोमा आदि प्राप्त करना चाहता है तथा इस कोर्स में वापस आना चाहता है इस संबंध में उसे जानकारी प्रदान की जाएगी। इसके साथ-साथ इसमें कुछ ऐसे ऑनलाईन कोर्स हैं जिन्हें विद्यार्थी ऑनलाईन प्लेटफॉम में रजिस्टर कर के अपनी पाठ्यक्रम की क्रेडिट की संख्या को पूर्ण कर सकते हैं उनके बारे में भी जानकारी प्रदान की जाएगी। ऐसे कोर्सेज विद्यार्थी को ऑनलाईन पंजीयन के माध्यम से ही पढ़ना होगा तथा ऑनलाईन न्यूनतम 10 क्रेडिट पूर्ण करने होंगे। ऐसे कोर्सेज सामान्यतः तीसरे वर्ष या चौथे वर्ष लिये जाएंगे तथा यू.जी.सी. के स्वयं प्लेटफार्म पर ऐसे कोर्स उपलब्ध होंगे। इस पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक पढ़ाई की तुलना में व्यावहारिक/प्रायोगिक विषयों के अध्ययन पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया गया है। इस पाठ्यक्रम के तहत ली जाने वाली परीक्षाएं पूर्व की तरह ही आयोजित की जाएंगी। उनमें किसी भी तरह की फेरबदल को समाहित नहीं किया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत अध्ययन और अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिए नियमित प्राध्यापकों के अलावा विजिटिंग प्रोफेसर, प्रोफसर ऑफ प्रैक्टिस तथा एडजंट फैकल्टी की नियुक्ति भी की जाएगी ऐसे प्राध्यापक अपने अध्ययन के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय उत्कृष्टता से संपन्न होंगे ताकि शिक्षा की गुणवत्ता अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों के समरूप होगी।


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