भोपाल/
तिल की उन्नत किस्में – उप संचालक कृषि रवि आम्रवंशी ने बताया कि तिल एक प्रमुख तिलहनी फसल है। उन्होंने तिल के बीजों की उन्नत किस्मों की जानकारी देते हुए बताया कि टी-4, टी- 12, टी-13 एवं टी-78 तिल के प्रमुख उन्नत किस्म के बीज हैं। किसानों को फसल का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ क्षेत्र में 4 से 5 किलोग्राम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है। बीज जनित रोग जड़ गलन की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से केप्टान या थीरम फफूंदनाशक से उपचारित करें अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
बुवाई की विधि – बुवाई की विधि का तिल की उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। किसानों को तिल की बुवाई सीधी पंक्तियों में करें। पंक्तियों के बीच की दूरी परस्पर 30 से 45 सेंटीमीटर हो। साथ ही दो पौधों के बीच की दूरी भी 10 से 15 सेंटीमीटर हो। तिल के बीज का आकार छोटा होने के कारण इसे गहरा नहीं बोयें। तिल की खेती के लिए मटियार रेतीली भूमि उपयुक्त है, लेकिन अम्लीय या क्षारीय मिट्टी अनुपयुक्त है। तिल की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 5.5 से 8.0 हो।
खेत की तैयारी – तिल की बोनी से पहले खेतों को तैयार करने के बाद मिट्टी को पाटा लगाकर भुरभुरा बना लें। मानसून आने से पहले खेत की जुताई कर समतल करें तथा एक या दो जुताई करके खेत को तैयार कर लें। तिल की बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय सड़ी हुई गोबर की खाद 10-15 टन प्रति एकड़ मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें तथा रासायनिक उर्वरक में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम फास्फोरस एवं 15 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर दें।
हानिकारक कीट एवं रोग और उनकी रोकथाम – फसल में गाल मक्खी कीट की रोकथाम के लिए क्विनालफास 25 ई.सी. की एक लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। इसके अलावा फली एवं पत्ती छेदक से फसलों की सुरक्षा के लिए कार्बोरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का फसल पर छिड़काव करें। झुलसा एवं अंगमारी की रोकथाम के लिए किसानों को मैन्कोजेब या जिनेब डेढ़ किलोग्राम या कैप्टान दो से ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने तथा 15 दिन बाद इसे पुन: दोहराने की सलाह दी।
खरपतवार नियंत्रण – खरपतवार नियंत्रण के लिए किसानों को तिल के बीज बोने के तुरंत बाद एलकोलर 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या 60 मिलीलीटर एलकोलर 10 लीटर पानी में मिलाकर जमीन पर स्प्रे करना तथा आवश्यकता के अनुसार हाथ की निराई और गुड़ाई करना उचित है। बोनी से पूर्व या बोनी के बाद फूल और फली आने की अवस्था अच्छी उपज के लिये सिंचाई की क्रांतिक अवस्थायें हैं। किसानों द्वारा इन तीनों अवस्थाओं में सिंचाई करना फसलों के लिए लाभकारी होता है। उन्होंने बताया कि तिल की फसल ढाई महीने में पक कर तैयार हो जाती है। फसल की सभी फलियां प्राय: एक साथ नहीं पकती, किंतु अधिकांश फलियों का रंग भूरा पीला पडऩे पर ही फसल की कटाई करें। तिल का उत्पादन लगभग इसका 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। उपरोक्त वर्णित विधि को अपनाकर किसान उन्नत तरीके से तिल की खेती कर सकते हैं। खरीफ मौसम के साथ-साथ इसकी बुवाई गर्मी और अर्ध-सर्दी के मौसम में भी की जाती है।
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