खास खबर : क्या नाराज हैं बृजमोहन अग्रवाल ? संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी ?


छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय और जननेताओं में शामिल बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) प्रदेश की राजधानी रायपुर से अब देश की राजधानी दिल्ली का सफ़र तय कर चुके हैं. प्रदेश में पहले नंबर और देश में 8वें नंबर की बड़ी और रिकॉर्ड जीत दर्ज कर टॉप टेन सांसदों में शामिल हो चुके हैं. उनकी ऐतिहासिक जीत की चर्चा दिल्ली की राजनीतिक गलियारों में है. लेकिन एक चर्चा राजनीतिक भविष्य पर भी है.

चर्चा, उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने को लेकर है. क्योंकि छत्तीसगढ़ कोटे मंत्री बनाए जाने को लेकर जिन नामों की चर्चा थी, उनमें बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) का नाम भी प्रमुखता शामिल था. माना जा रहा था कि मोदी सरकार में कम से कम दो मंत्री छत्तीसगढ़ से जरूर शामिल किए जाएंगे. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. छत्तीसगढ़ से सिर्फ एक ही नाम शामिल हुआ, तोखन साहू का. तोखन एक बार के विधायक और पहली बार के सांसद हैं.

बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) भले ही मोदी सरकार में मंत्री नहीं, लेकिन वर्तमान में साय सरकार में शिक्षामंत्री हैं. इससे पहले भी वह 2003 से लगातार 2018 तक गृहमंत्री से लेकर कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में भी 90 के दशक में मंत्री रह चुके हैं. राजनीतिक रूप से सबसे अनुभवी नेताओं में से एक बृजमोहन अग्रवाल वर्तमान में सर्वाधिक बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले सीनियर विधायकों में से भी एक हैं.

राजनीति में बृजमोहन अग्रवाल का नाम देश के चर्चित राजनेताओं में से एक है. वे एक अजेय योद्धा हैं. क्योंकि आज तक एक भी चुनाव वे नहीं हारे. 8 बार विधानसभा चुनाव लड़े और हर बार रिकार्ड मतों से जीते. लोकसभा का चुनाव पहली बार लड़े और वह भी ऐतिहासिक रूप से जीते. पार्टी में उन्हें संकट मोचक भी कहा जाता है. क्योंकि उन्हें जहां पार्टी ने चुनाव संचालक बनाया, पार्टी ने वहां जीत दर्ज की. फिर चाहे वह प्रदेश में विधानसभा का कोई उपचुनाव हो, या दूसरे प्रदेश का विधानसभा चुनाव, या फिर नगरीय निकायों से जुड़ा हुआ चुनाव. बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) हर चुनावों में अपने नाम जीत दर्ज कराते रहे हैं.

पक्ष में रहे हो या फिर विपक्ष में उनकी भूमिका हमेशा एक तेज-तर्रार नेता के तौर पर ही रही. सत्ता के साथ ही संगठन में भी उनकी पकड़ हमेशा एक मजबूत नेता के तौर पर रही है. उन्होंने जनता के बीच अपनी छवि हमेशा जनप्रिय नेता के तौर पर रखी है. यही वजह है कि वीसी शुक्ल, अजीत जोगी, दिलीप सिंह जूदेव जैसे जनसमर्थक वाले नेताओं की तरह ही उन्हें भी देखा जाता है. माना तो यही जाता है कि पूरे छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) के पास पार्टी से इतर भी अपने समर्थकों और चाहने वालों की भीड़ है.

यही वजह है कि आज उनके चाहने वालों में, समर्थकों में मायूसी है. मायूसी के साथ ही चर्चा भी कि आगे बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) का राजनीतिक भविष्य क्या होगा ? क्या बृजमोहन अग्रवाल पूरे 5 साल सिर्फ सांसद के तौर पर काम करेंगे ? ऐसी चर्चा सिर्फ उनके समर्थकों के बीच ही नहीं, बल्कि पार्टी और पार्टी के बाहर अन्य दलों और राजनीति में रुचि रखने वाले तमाम लोगों के बीच है.

राजनीति के जानकार, पत्रकार सभी यही विश्लेषण करने में लगे हैं कि बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) आखिर अपनी राजनीति को किस दिशा में लेकर जाएंगे ? वे खुद अपनी दिशा तय करेंगे या फिर पार्टी उनकी भूमिका तय करेगी ? दरअसल इन सवालों का अनुमान लगाना इसलिए मुश्किल हो चला है, क्योंकि उन्होंने सांसद चुने जाने के बाद से अब तक न तो मंत्री पद से इस्तीफा दिया और न विधायकी छोड़ी है. जबकि संविधान के मुताबिक एक व्यक्ति एक साथ दो पदों पर नहीं रह सकता है. अगर कोई विधायक, सांसद बन गया है तो उन्हें चुनाव परिणाम के 14 दिनों में विधायकी छोड़नी पड़ती है, ऐसा नहीं करने पर संसद की सदस्यता स्वमेव समाप्त हो जाती. इस बीच एक बयान से उन्होंने सबकों चौंका जो दिया है.

बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) ने कहा है कि उन्हें कब इस्तीफा देना है यह पार्टी तय करेगी ? वैसे भी वे बिना विधायक रहे 6 महीने तक मंत्री रह सकते हैं. उनके इस बयान के बाद पार्टी संगठन से लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में चर्चाओं का बाजार गर्म है.

चर्चा इस बात को लेकर क्या बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) केंद्र में मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज हैं ? अगर नाराज हैं तो उनकी नाराजगी को पार्टी किस रूप में लेगी ? उन्होंने इस तरह का बयान देकर क्या कोई बड़ा संदेश पार्टी को दे दिया है ?

वैसे इन सवालों और चर्चाओं के बीच पार्टी सूत्रों के मुताबिक चर्चा ये है कि बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) को राष्ट्रीय सगंठन बड़ी में जिम्मेदारी दी जा सकती. पार्टी में नए अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही पार्टी संगठन में बड़ा फेरबदल होना है. नए और अनुभवी नेताओं की नई टीम बनाई जानी है. पार्टी की नई टीम का हिस्सा रायपुर सांसद हो सकते हैं. चर्चा है कि पार्टी उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ आगामी चुनावी राज्यों में लेगी. कहा जा रहा है कि उन्हें किसी राज्य का प्रभार सौंपा जा सकता है.

खैर चर्चाओं और सवालों का दौर चलते रहेगा. और इस बीच राजनीतिक भविष्य की दिशा और दशा का इंतज़ार भी. जिसे लेकर तो फिलहाल यह भी कहा जा रहा पार्टी लाइन के साथ-साथ अपनी लाइन बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) खुद तय करेंगे.


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