महाराष्ट्र
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा को दी गई सीख के एक दिन बाद ही संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में लिखे लेख में कहा गया कि भाजपा को अतिआत्मविश्वास ले डूबा। इन परिणामों से साफ संकेत हैं कि भाजपा को अपनी राह में सुधार की जरूरत है। चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रिएलिटी चेक के रूप में आए हैं।
संघ के विचारक रतन शारदा के आलेख में कहा कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनाव में मदद के लिए संघ से संपर्क नहीं किया, जिससे भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। उन्होंने भाजपा के अबकी बार 400 पार नारे का जिक्र करते हुए लिखा कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 प्लस का आह्वान उनके लिए लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था। उन्होंने कहा कि लक्ष्य ग्राउंड पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं।
एनसीपी को मिलाने पर उठाई आपत्ति
लेख में कहा कि महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और हेरफेर का उदाहरण है। एनसीपी गुट भाजपा में शामिल किया गया, जबकि भाजपा व विभाजित शिवसेना के पास बहुमत था। शरद पवार दो-तीन साल में गायब हो जाते, क्योंकि एनसीपी भाइयों के बीच की लड़ाई में ताकत खो चुकी होती। यह गलत कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थक इसलिए आहत हुए, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी।
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