चंदन कुमार शर्मा
कुरुद। शहर तो शहर, आजकल गांवों में भी घरेलू चिड़िया (गौरैया) नाम मात्र रह गईं हैं और बहुत ही कम देखने को मिलती हैं। इसकी वजह स्पष्ट है- बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच हम इन पक्षियों को उनका घोंसला देना भूल गए हैं। लेकिन विलुप्त होते इन पक्षियों को बचाने कुरुद के एक शख्श पर ऐसी धुन सवार है कि वह इन बेजुबानों के आशियानों पर अब-तक करीब लाखों रुपए खर्च कर चुका है।
गौरतलब हो कि कुरुद अंतर्गत मंदरौद गांव के 24 वर्षीय मोहन साहू साल 2018 से विलुप्त हो रहे गौरेया पक्षी के साथ अन्य पक्षियों को बचाने अनवरत प्रयास कर रहे है। स्वयं के खर्चे पर पक्षियों के लिए आशियाने बना कर मंदरौद के अलावा आसपास के दर्जनों गांवों में बांट चुके है। अब तक वे 2500 से अधिक लकड़ी के तथा 600 के करीब टीन-पीपा के घोसला तैयार कर चुके है। वे स्कूलों, मंदिरों, अस्पतालों, खेल मैदान, मुक्तिधाम आदि स्थानों पर बसेरा तैयार कर लोगो से बेजुबान पक्षियों के लिए स्नेह और प्यार करने की अपील कर रहे है। पक्षी संरक्षण के क्षेत्र में उनके अनुकरणीय कार्य के लिए उन्हें ग्लोबल स्कालर्स फाउंडेशन पुणे के द्वारा समाज भूषण अवार्ड से एंव समाज गौरव समिति रायपुर द्वारा प्रशंसा प्रमाण पत्र दे कर सम्मानित किया गया है।
रंग ला रहा है मोहन का प्रयास:
मोहन ने मंदरौद के अलावा सेल्दीप, जोरातराई, सिन्धौरीकला, सिन्धौरीखुर्द, बानगर परसवानी, मेघा, अरौद, उमरदा, गाडाडीह, कमरौद, कुरूद, धमतरी, सिवनी, कुरूद कालेज,कातलबोड़ में निःशुल्क घोसले बांटे है। जो गौरेया पक्षियों के लिए काफी कारगर साबित हुआ है। लकड़ी से बने घोसले का बनावट इस तरह है कि वहां मोबाइल रेडिएशन प्रवेश नही करते जिससे गौरेया अपना अंडा देकर आसानी से चूजे पैदा कर लेते है। कुछ जगहों पर लोहे के एंगल से तैयार घोंसले में गौरेया चहकती-फुदकती नज़र आती है।
आकर्षक है पक्षियों के लिए तैयार सकोरे:
मोहन ने गौरेया आदि पक्षियों के लिए जो सकोरे तैयार किये है वह चारो दिशाओ से खुली हुई है जो तेल-पीपा को काटकर बनाये गये है। जिसमे चारो खानों में अलग -अलग प्रकार के दाने व टीन के पात्र में बीचो बिच पानी भरा रहता है जिससे आसानी से पक्षियों के भूख-प्यास बुझा सकते है। जहा घोसला लगा है वहां-वहां गौरेया पक्षी अपना बसेरा कर लिए है। अब तक उस घोसलों से 500 से अधिक अंडे से चूजे निकल गए है।
संरक्षित नही किया तो विलुप्त हो जायेगी गौरेया:
इस संदर्भ में मोहन साहू का कहना है कि गौरेया पक्षी की 6 प्रजातिया है। वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिक है अंग्रेजी में स्पैरो कहते है। भारत में इसे कई नामो से जानते है। हाउस स्पैरो , स्पेनिस स्पैरो,सिंड स्पैरो, डैड स्पेरो, सी स्पैरो, और डी स्पैरो। इनमे से हाउस स्पैरो ही घरो में चहकती फुदकती है। गौरैया पक्षी की प्रजाति पर कई कारणों से संकट है जिसमे मोबाइल टावर का रेडिएशन के अलावा कांक्रीट से बने मकानों में उनके आने-जाने से लेकर दाना-पानी का व्यवस्था न करना प्रमुख है। जिसे संरक्षित करने के लिए हम सब को पहल करना चाहिए।
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