रायपुर 15 मई 2023/
दिलचस्प यह कि ‘सेस्बेनिया’ की उम्र सबसे कम याने महज 10 बरस की ही होती है। बेहद महत्वपूर्ण इसलिए माना जा रहा है कि यह प्रजाति वायुमंडल से नाइट्रोजन को सही करनेमें सक्षम है। और भी ज्यादा अहम गुण यह है कि सेस्बेनिया का यह वृक्ष जलोढ़ भूमि पर जोरदार बढ़त लेता है।
वानिकी वृक्षों की सैकड़ों प्रजातियों के बीच सेस्बेनिया का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। अनुसंधान में इसमें जिन गुणों के होने की जानकारी मिली है, उससे वानिकी वैज्ञानिक हैरत में हैं। गुणों की पहचान के बाद, अब योजना तैयार की जा रही है कि इस प्रजाति को भी पौधरोपण की सूची में शामिल कर लिया जाना सही होगा
दिलचस्प इसलिए
महज 10 वर्ष की उम्र मानी गई है सेस्बेनिया की। वानिकी वृक्षों की सैकड़ों प्रजातियों में शायद यह इकलौता ऐसा वृक्ष होगा, जिसकी उम्र सबसे कम होती है। अल्प आयु के दौरान, इसका जो योगदान है, उसे वरदान ही माना जाना चाहिए। फूल, पत्तियां, छाल और तना के रूप में यह कई क्षेत्र को जीवन देता है।
बेहद अहम यह गुण
सेस्बेनिया नामक यह वृक्ष, इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि वायुमंडल में नाइट्रोजन को दुरुस्त करता है। बदलते परिवेश में खराब होती वायुमंडल के लिए सेस्बेनिया का यह गुण ऐसी सौगात लेकर आया है, जिसकी आज बेहद जरूरत है। बताते चलें कि यह गुण अब तक किसी भी वानिकी वृक्षों में नहीं मिला है।
कम नहीं यह योगदान
अधिकतम 7 मीटर ऊंचाई तक जाने वाली, इस प्रजाति के वृक्षों की पत्तियां हरा चारा और हरी खाद के रूप में उपयोग की जाती है, तो फूलों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जा सकता है। छाल के रेशे से मजबूत रस्सियां बनती हैं, तो जड़ और बीज से कई बीमारियां दूर करने की औषधि बनाई जा रहीं हैं। पारंपरिक खेल, तीरंदाजी के लिए तीर भी इसकी लकड़ियों से बन रहे हैं।
बहुत जल्द पौधे
गुणों के खुलासे के बाद सेस्बेनिया को पौधरोपण की सूची में जगह दिलाने की योजना है। फिलहाल निजी क्षेत्र की नर्सरियां और बीज दुकानों में इसके बीज का विक्रय किया जा रहा है। खरीदी क्षेत्र, इस समय हरा चारा और हरी खाद बनाने वाला ही बताया जा रहा है।
एक उत्कृष्ट हरी खाद प्रदान करने वाला वृक्ष
सेस्बेनिया सेसबेन दलहन प्रजाति का एक बहुउपयोगी वृक्ष है । यह उच्च नाइट्रोजन स्थिरीकरण के कारण एक उत्कृष्ट हरी खाद प्रदान करने वाला वृक्ष है । इसकी शाखाओं को मिट्टी की सुरक्षा और सुधार के लिए मल्च के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज बिलासपुर
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