रायपुर 22 अप्रैल 2023/
ईद की मुबारकबाद के असल हकदार वो लोग हैं जिन्होंने रमज़ान के मुबारक महीने में रोज़े रखे, कुरआन की हिदायत से ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाने की फिक्र की, उसको पढ़ा, समझा, और उस्से रहनुमाई हासिल करने की कोशिश की और तक़्वा (ईश्-भय) इख़्तियार किया। उस तरबियत (प्रशिश्रण) का फायदा उठाया जो रमज़ान एक मोमिन को देता है।
मुसलमान उस नेमत का शुक्र अदा करें जो अल्लाह ने रमज़ान में क़ुरआन अवतरित करके उनको प्रदान की है। दुनिया में अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत मानव-जाति पर अगर कोई है तो यही क़ुरआन का अवतरण है। क़ुरआन वह नेमत है जो इंसान की आत्मा के लिए, उसके अखलाक के लिए, और वास्तव में उसकी असल इंसानियत के लिए सबसे बड़ी नेमत है। अतः अल्लाह का शुक्र अदा करने की सही सूरत यही है कि क़ुरआन को हिदायत का श्रोत समझें, दिल से इसको मार्गदर्शन का मूल आधार मानें और व्यवहारिक रूप से उसके मार्गदर्शन का लाभ उठाएं।
रोज़े का दूसरा मकसद ये है कि आप के अंदर तक़्वा (ईश्-भय) और संयम पैदा हो। तक़्वा (ईश-भय) और परहेज़गारी यानि आदमी ख़ुदा की नाफरमानी से बचे और उसकी आज्ञा का पालन करे, लगातार एक महीने इसी का अभ्यास कराया जाता है। आप अपने मन और इच्छाओं पर इतना क़ाबू पा लें कि वो अपनी अनुचित माँगें अल्लाह के कानून के खिलाफ आपसे न मनवा सकें। यही उद्देश्य है जिसके लिए रोज़े अनिवार्य किए गए हैं।
अतः वही आदमी ईद की मुबारकबाद का सबसे ज़्यादा हकदार है जो महीने भर के इस प्रशिक्षण और अभ्यास को आइंदा ग्यारह महीनों में बरकरार रखे और इसके प्रभाव से लाभ उठाता रहे।
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