17 साल की उम्र में पहला मर्डर बना विधायक चांद बाबा को निपटाया
प्रयागराज,16 अप्रैल 2023 /
प्रयागराज के चकिया मोहल्ले के एक तांगेवाले के बेटे अतीक अहमद (Atiq Ahmed) ने कम उम्र में ही जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था. 10वीं में फेल होने के बाद अतीक पूरी तरह अपराध जगत में सक्रिय हो गया और महज 17 साल की उम्र में उस पर हत्या का पहला आरोप लगा. इसके बाद उसने कई अपराध किए. जब चकिया और उसके आसपास के इलाकों में उसका दबदबा और खौफ बढ़ गया तो उसने रंगदारी वसूलना शुरू कर दिया. अतीक के पिता रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाते थे. मगर 1979 में हाई स्कूल में फेल हो चुके अतीक पर जल्दी अमीर और ताकतवर शख्स बनने का जुनून सवार था.
अतीक ने पहले तो चकिया के आसपास के इलाकों में मारपीट और जबरन वसूली का काम शुरू किया. जल्द ही वह इलाके के आम लोगों में अपना डर और खौफ पैदा करने में सफल रहा. अतीक के बढ़ते दबदबे से चांद बाबा (Chand Baba) नाम का इलाहाबाद का एक पुराना गैंगस्टर खुश नहीं था. लोग उस समय पुराने इलाहाबाद शहर के इलाके में इस चांद बाबा से भी डरते थे. लोगों का कहना है कि जिस मोहल्ले में वह रहता था, वहां पुलिस अधिकारी भी घुसने से डरते थे. वहां पुलिस के अंदर घुसने पर बाबा के गुंडे पुलिस वालों को बेरहमी से पीटते थे.
पुलिस, प्रशासन और नेताओं के संरक्षण में बढ़ी अतीक की ताकत
महज 20 साल उम्र के अतीक ने चांद बाबा के गिरोह के सामने खुद की ताकत को साबित करने की पूरी कोशिश की. हालांकि, वह चांद बाबा से बहुत छोटा था और अपराध की दुनिया में उसे अनुभव की कमी थी. मगर अब कुछ पुलिस अधिकारी और इलाके के कुछ नेता उसे बढ़ावा दे रहे थे. वे प्रयागराज शहर में चांद बाबा के आतंक को कम करना चाहते थे. स्थानीय पुलिस, नेताओं और बदमाशों का यह गठजोड़ अतीक अहमद के अपराधों की लंबी सूची के पीछे की नींव थी, जिसके कारण अंततः उसकी हत्या हुई.
चांद बाबा को मारकर बढ़ी अतीक की दहशत
माफिया अतीक अहमद का एक वक्त ऐसा भी था जब कोई उसकी आंखों में आंख डालकर बात करने की हिम्मत नहीं करता था. अतीक के राजनीतिक रिश्ते इतने मजबूत हो गए थे कि एक बार जब 1986 में पुलिस ने उसे पकड़ा, तो अतीक को छोड़ने के लिए दिल्ली से ताकतवर लोगों का फोन आया. जिसके सामने तब के सीएम वीर बहादुर सिंह को भी झुकना पड़ा. अतीक अहमद और चांद बाबा दोनों ने 1989 में इलाहाबाद वेस्ट सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन चांद बाबा हार गया और अतीक विधायक बन गया. अतीक की जीत के कुछ महीनों बाद भीड़ भरे बाजार में चांद बाबा की बेरहमी से हत्या कर दी गई. यह केवल इलाहाबाद के एक पुराने गैंगस्टर चांद बाबा का अंत नहीं था बल्कि अतीक अहमद के युग की शुरुआत भी थी. इसके बाद अतीक ने चांद बाबा के गिरोह के सभी सदस्यों को एक-एक कर मार डाला.
राजू पाल ने दी अतीक को चुनौती
इलाहाबाद में अतीक का खौफ ऐसा था कि इलाहाबाद वेस्ट सीट से कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करता था. यही वजह थी कि उसने साल 1991 और 1993 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लगातार चुनाव जीते. इस बीच समाजवादी पार्टी के साथ उनकी निकटता बढ़ने लगी और उसने 1996 का चुनाव सपा के टिकट पर जीता. 2004 में अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के टिकट यूपी की फूलपुर सीट से सांसद बना और इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली हो गई. इसलिए उसने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को मैदान में उतारा. उसके भाई अशरफ को बसपा के उम्मीदवार राजू पाल (Raju Pal) ने 4000 वोटों से हरा दिया. पहले राजू पाल अतीक अहमद के दाहिने हाथ के रूप में काम करता था।