ब्रिटेन में कोविड के दौरान सेवाओं के लिए जिस भारतीय का क्वीन ने जताया था आभार
42 वर्षीय पंड्या हाल ही में इमिग्रेशन ट्रिब्यूनल में केस हार गए. अब बताया जा रहा है कि वे मामले में आगे लड़ने के लिए अपने वकीलों से बातचीत कर रहे हैं.
रॉदरहिथ रेजिडेंट्स समूह ने पिछले हफ्ते Change.Org याचिका अपडेट की थी. उसमें कहा गया है कि, “हम तबाह हो गए हैं, वह तबाह हो गया है, लेकिन अगर आगे कोई रास्ता मिल सकता है तो हम लड़ाई नहीं छोड़ेंगे.”
रॉदरहिथ रेजिडेंट्स समूह के सदस्य कहते हैं कि, “विमल ने हमेशा दिखाया है कि वह रॉदरहिथ कम्युनिटी की कितनी परवाह करता है, जहां वह 11 साल से रह रहा है. हम में से बहुत से लोगों को वर्षों से उसकी मदद और सपोर्ट मिलता रहा है. यही वजह है कि हम उसके अन्यायपूर्ण निर्वासन को रोकने के लिए लड़ रहे हैं,”
पढ़ाई के लिए साल 2011 में भारत से ब्रिटेन आए पंड्या ने अप्रैल 2014 में अपने एक गंभीर रूप से बीमार रिश्तेदार को वापस अपने माता-पिता के पास ले जाने के लिए स्वदेश लौटने के बाद उनकी वापसी को रोक दिया गया था.
ब्रिटेन के बॉर्डर फोर्स के अधिकारियों ने उन्हें सूचना दी थी कि जिस कॉलेज में उनका इनरोलमेंट हुआ था, उसने स्पांसरशिप का अधिकार खो दिया. हालांकि न तो कॉलेज ने और न ही होम आफिस ने कथित तौर पर उन्हें इसकी सूचना दी थी.
इसके बाद विमल पंड्या को अपने मूल पासपोर्ट और अन्य दस्तावेजों के बिना इस मुद्दे को हल करने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ा. उसके बाद से उन्होंने अपने इमिग्रेशन स्टेटस को रेगुलर करने और अपनी पढ़ाई पूरी करने के प्रयास में हजारों पाउंड खर्च किए. इसके अलावा वे कॉलेज की हजारों पाउंड फीस दे चुके हैं और उन पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है.
उनके समर्थक स्थानीय समूह ने कहा, “अपनी पढ़ाई जारी रखने की इजाजत का इंतजार करते हुए विमल रॉदरहिथ कम्युनिटी का एक अभिन्न अंग बन गया है. अब वह वास्तव में जरूरी है, और हम नहीं चाहते कि वह चला जाए. ”
कोविड महामारी के दौरान पंड्या एक स्थानीय दुकानदार के रूप में सेवाएं दे रहे थे. कहा जाता है कि नेशनल लॉकडाउन के दौरान वे सेल्फ-आइसोलेशन में रहने वालों को नियमित भोजन और जरूरी सामान पहुंचा रहे थे. उन्होने मदद के लिए समर्पण के साथ अथक परिश्रम किया था.