सर्दियों में बढ़ती जोड़ों के दर्द(वात रोग) के कारण एवं उपाय
रायपुर, 11 जनवरी 2023। सर्दियों के मौसम में जोड़ों में दर्द की तकलीफ ज्यादा बढ़ जाती है। यह समस्या विटामिन-डी की कमी से भी हो सकती है। ऐसे में आप इसकी कमी को पूरा करने के लिए रोजाना कुछ देर धूप में बैठें। इसके साथ ही डाइट में विटामिन-डी युक्त आहार लें, जैसे- मशरूम, अंडा, मछली आदि खा सकते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ गुलशन सिन्हा ने बताया कि इन दिनों मौसम का मिजाज ठंड के साथ ही शीत लहर सर्द हवाओं के साथ चल रहे हैं। ऐसे में सर्दियों में बढ़ती जोड़ों के दर्द(वात रोग) के कारण एवं उपाय करना जरूरी है। डॉ सिन्हा ने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में दोष दो प्रकार की बतायी गयी है
(1) शरीर दोष
(2) मानसिक दोष
शरीर दोष के तीन प्रकार बताये गये हैं- वात,पित्त और कफ
*वात* को हम कुछ इस प्रकार समझ सकते हैं।
वात को वायु मान सकते हैं, वायु का गुण होता है- रुक्षता (सुखापन), लघु, शीत(ठंडी), विशद, खर, अनिल
हमारे शरीर में जहाँ-जहाँ भी वात का प्रकोप होगा उन सभी जगहों की स्निग्धता खत्म या कम होती जायेगी तथा रुक्षता बढ़ती जायेगी।
हमारे शरीर में आंतरिक सभी अंगो में चिकनाई (स्निग्धता) होती है जिससे इन में से किसी भी अंगो में घर्षण नहीं होता है। वात का प्रकोप अगर किसी भी जगह बढ़ जाये तो उस जगह पर रुक्षता(सुखापन) आ जाता है।
संधि स्थानों में वात(वायु) आ जाये तो अभी ठंड के दिनों में ज्यादातर देखा जाता है कि जितने भी संधि स्थान है उनमें दर्द बढ़ जाता है या सुजन आ जाता है जैसे- घुटनों में,कमर में या कंधे में इसका कारण वात ही है।
वात दोष का प्रकोप अगर घुटने के पास बढ़ जाये तो घुटने में जो दोनों हड्डियों(संधि स्थान) के बीच जो Fluid होती है वो कम या सुखने लगती है, वायु सुखाने या सोंखने का काम करती है। इसी कारण घुटने के दोनों हड्डियों के बीच की चिकनाई खत्म होती जाती है, जिससे चलने पर दर्द होता है,Fluid के सुखने के कारण आपस में टकराने से घर्षण होता है। फिर दर्द बढ़ने लगता है, पहले यह समस्या बुजुर्गों में देखी जाती थी लेकिन अब अधिकांशतः युवा वर्ग इसकी चपेट में आने लगे हैं कारण है- वात(वायु) को बढ़ाने वाले आहार विहार का सेवन।
जैसे- रात्रि जागरण, खानपान में ज्यादा मसाले वाले भोजन का सेवन, ठंडी पेय पदार्थों का सेवन, शरीर में तैल की मालिश न करना इत्यादि ये सब वातकारक है।
इसके विपरीत पहले लोग (बुजुर्ग) मौसम के हिसाब से तैल का सेवन करते थे खानपान के लिए भी और शरीर में बाह्य प्रयोगार्थ भी, पहले ठंड के दिनों में सभी घरों “अलाव” जलाया जाता था (जिसे छत्तीसगढ़ी में “अंगेठा” कहते हैं) ठंड से बचने के लिए, और सुबह स्नान कर पुरे शरीर में तैल लगाया जाता था, उसके बाद वह व्यक्ति या तो धुप में बैठता था या अलाव (अंगेठे) के पास
इसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार देखें तो वात के प्रकोप का शमन करने या दूर करने के लिए स्नेहन कर्म एवं स्वेदन चिकित्सा कर्म से जोड़ कर देख सकते हैं।
ऐसा देखा जाता है पहले बुजुर्ग अपने पुरे शरीर की मालिश तैल से करते थे, वह आयुर्वेद के अनुसार स्नेहन कर्म हो जाता था।
उसके बाद जब वे खाना बनाने वाले चुल्हे (आग) के पास या धुप में बैठते थे तो वह स्वेदन कर्म हो जाता था और व्यक्ति जब आग के पास बैठता था तो घुटने आगे की ओर होते थे जिससे सिंकाई अच्छे से होती थी। क्योंकि संधि स्थानों में वात की सर्वोत्तम चिकित्सा स्नेहन एवं स्वेदन कर्म है। इसलिए पहले यह समस्या बहुत कम थी लेकिन अभी हर वर्ग में है चाहे वह बाल्य हो या युवा वर्ग, इसलिए आयुर्वेद दिनचर्या का पालन करीये और बीमारियों से बचिये, ठंडी चीजों से और सीधे ठंडी हवाओं से बचिये तथा गर्म चीजों का सेवन करीये और रुखापन से बचने के लिए कैमिकल वाली चीजों की जगह तैल से शरीर की मालिश कीजिये।