देश के पहले पुरुष नारीवादी थे बाबा साहेब भीमराव आंबेडकरः कांग्रेस नेता शशि थरूर


नई दिल्ली,18 नवम्बर 2022\ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपनी नई किताब ‘आंबेडकरः ए लाइफ’ में संविधान निर्माता को महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाला चैंपियन करार दिया है. थरूर ने न्यूज18 डॉट कॉम से बातचीत में कहा है कि शायद आंबेडकर के जीवन चरित के इस पक्ष पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हुई है. शादी (शादी से पहले वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता पर सतर्क करना), प्रेग्नेंसी (जहां वह जोड़ो के बीच सहमति की बात करते हैं) पर आंबेडकर के विचार दुनिया भर में कोट किए जाते हैं और प्रतिध्वनित होता है.

थरूर कहते हैं कि ‘जब आप उस समय में महिलाओं के अधिकारों के हक में बोलने के बारे में सोचते हैं, वह भी 89-90 साल पहले. एक दूरदृष्टि रखने वाले मनुष्य के लिए यह असाधारण है. इसके साथ ही जब वह बॉम्बे विधानसभा में विधायक थे, तो उन्होंने महिला मजदूरों के लिए ज्यादा बड़े अधिकारों की बात की थी. ज्यादा छुट्टियों की वकालत की थी, साथ ही महीने के मुश्किलों दिनों के लिए भी ज्यादा अवकाश देने की बात कही थी. इसके अलावा उन्होंने पुरुष मजदूरों की तरह ही महिला मजदूरों को भी बराबर मजदूरी देने की मांग को लेकर लड़ाई लड़ी.’

थरूर आगे कहते हैं, ‘1938 में आंबेडकर ने महिलाओं के लिए एक विधेयक पास कराने की कोशिश की, जिसमें सरकारी फंड द्वारा बर्थ कंट्रोल को लेकर अभियान चलाने की बात थी. हालांकि उनका ये विधायकों ‘अनैतिकता’ के आधार पर पास नहीं हो पाया था. लेकिन जब आप इन चीजों को आज के दायरे में अमेरिका की स्थिति और हमारे देश में मैरिटल रेप कानून को लेकर चल रही बहस के सापेक्ष देखते हैं, तो पाएंगे कि आंबेडकर एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने दुनिया भर की महिलाओं के लिए आवाज उठाई, उनके हक की बात की.

थरूर ने कहा, ‘वास्तव में आंबेडकर भारत के पहले पुरुष नारीवादी (First Male Feminist) थे. मुद्दों के प्रति उनकी समझ और उसे व्यक्त करने की तरीका असाधारण था, इन मुद्दों को उन्होंने उस समय उठाया, जब ये मुद्दे कहीं थे ही नहीं. उन्होंने दलितों का मुद्दा तब उठाया जब सवर्ण हिंदुओं को लगता था कि ये स्वतंत्रता संग्राम से ध्यान भटकाने वाला साबित होगा. उन्होंने महिलाओं का मुद्दा तब उठाया जब समाज में महिलाओं के अधिकार पुरुषों के लिए कोई मायने नहीं रखते थे. सभी अर्थों में आंबेडकर अपने समय से आगे के विचारक थे.’


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