ताइवान-दक्षिण चीन सागर पर फोकस करेंगे जिनपिंग! क्या यह पूर्वी लद्दाख विवाद के हल होने का संकेत?


नई दिल्ली,14 नवम्बर 2022\ भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर तनाव की स्थिति बनी हुई है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने HT लीडरशिप समिट में गुरुवार को यह साफ तौर पर कहा कि बीजिंग को बॉर्डर को लेकर हुए समझौतों को मानना ही होगा। साथ ही दोनों देशों में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए चीन को 3488 किलोमीटर लंबी LAC पर एकतरफा सैन्य कार्रवाई से बचना होगा। मालूम हो कि भारत की चीन से लगती सरहद पर 30 महीने से अधिक समय से गतिरोध जारी है।

LAC पर चीनी सैनिकों की संख्या नहीं हुई कम
सेना प्रमुख ने कहा कि विवाद के 7 बिंदुओं में से 5 पर मुद्दों को बातचीत के माध्यम से हल कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में LAC पर चीनी सैनिकों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई है, लेकिन सर्दियों की शुरुआत के साथ कुछ PLA ब्रिगेड के लौटने के संकेत हैं। भारत शेष मुद्दों के समाधान के लिए चीन के साथ उच्च स्तर की सैन्य वार्ता के अगले दौर को लेकर आशावादी है। उन्होंने कहा कि हम 17वें दौर की वार्ता की तारीख पर विचार कर रहे हैं।

भारत और चीन के बीच 17वें दौर की बातचीत 20 नवबंर को हो सकती है। हालांकि, तारीख को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। 17वें दौर की बैठक ऐसे समय में होगी, जब हाल ही में CPC की 20वां कांग्रेस समाप्त हुई है। इस कांग्रेस में शी जिनपिंग को लगातार तीसरी बार देश का राष्ट्रपति पद सौंपा गया। इस दौरान शीर्ष केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) का पुनर्गठन भी हुआ। मालूम हो कि सीपीसी, पीएलए की सर्वोच्च कमान है।

‘ताइवान-पूर्वी चीन सागर पर ध्यान केंद्रित करेगा चीन’
पूर्वी थिएटर कमांडर जनरल हे वेइदॉन्ग ने संकेत दिया है कि राष्ट्रपति जिनपिंग ताइवान और पूर्वी चीन सागर पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। कमांडर जनरल का बयान सही हो सकता है क्योंकि ताइवान पिछले कुछ दिनों में चीनी लड़ाकों और युद्धपोतों की लगातार घुसपैठ का सामना कर रहा है। 20 लाख से अधिक अधिकारियों और जवानों वाली दुनिया की सबसे बड़ी सेना को राष्ट्रपति जिनपिंग हाल ही में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि दुनिया ऐसे बदलावों से गुजर रही है जो पिछली एक सदी में नहीं देखे गए। उन्होंने कहा कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ती अस्थिरता व अनिश्चितता के खतरे का सामना कर रही है। सेना के सामने कठिन कार्य है। राष्ट्रपति ने अपने भाषण में किसी देश विशेष का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका यह बयान संसाधन संपन्न हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को लेकर बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंता के बीच आया है।


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