रायपुर 4 नवंबर 2022/
छत्तीसगढ़ के धनहा-डोली मन म अन्नपूर्णा दाई सोनहा रूप धरे जइसे-जइसे लहराए लगथे किसान मन के मन नाचे अउ झूमे लगथे. एकरे संग वोला खेत ले परघा के बियारा अउ फेर बियारा ले मिंज-ओसा के कोठी अउ ढाबा म जतने के उदिम शुरू होथे. ठउका इहिच बेरा म इहाँ के गाँव गाँव अउ बस्ती बस्ती म ‘ जय हो गौंटनीन, जय हो तोर… जय गंगान’ के सुर लहरी छेड़त बसदेवा मन के आरो मिले लगथे.
हमन लइका राहन त हमर गाँव म हमरे घर तीर के पीपर पेड़ के छइहां म एकर मन के जबर डेरा देखे बर मिलय. बढ़िया छमछम करत सवारी गाड़ी अउ गाड़ा म इन तीन चार परिवार माई-पिल्ला आवंय अउ रगड़ के तीन चार महीना असन इहें रमड़ा के रहंय. एमन अपन- अपन पूरा परिवार सहित आवंय. गाड़ी गाड़ा म आए राहंय उही गाड़ी मनके खाल्हे ल तोप-ढांक के सूते बसे के ठउर बनावंय अउ आगू के खाली जगा ल लिप-बहार के अंगना बरोबर उपयोग करंय, जेमा रंधना-गढ़ना सब हो जावय.
लइका अउ माईलोगिन मन पीपर छइहां म ही अस्थायी बसेरा बरोबर राहंय, फेर आदमी जात मन होत बिहनिया जय गंगान के सुर लमावत घरों घर दान -दक्षिणा के जोखा म निकल जावंय. कभू कभार सियानीन माईलोगिन मन ल घलो “कांटा झन गड़य दाई, तोर बेटा के पांव म कांटा झन गड़य” गीत गावत, असीस देवत दिख जावय. जब हमर गाँव के पूरा घर म मांग-जांच डारंय, त फेर तीर-तखार के गाँव मन म घलो जावंय.
वइसे भी लुवई-मिंजई के सीजन म छत्तीसगढ़ ह औघड़ दानी हो जाथे, तेकर सेती एमन ल धान-पान के संगे-संग नगदी अउ कभू-कभार बुढ़ावत बइला-भइंसा के संग खेत-खार घलो दान म मिल जावय. एला एमन या तो लहुटती बेरा म बेंच देवंय या फेर अधिया रेगहा म सौंप देवंय.
एमन पूछे म बतावंय, के उन वृंदावन क्षेत्र के रहइया आंय, भगवान कृष्ण के सियान वासुदेव के वंशज. एकरे सेती वासुदेव के जीवन गाथा ल हमन गाथन. कभू-कभू कृष्ण अवतार, राम अवतार, श्रवण कुमार, हरिश्चंद्र, मोरध्वज, भरथरी, सती अनुसुइया, शिव विवाह आदि के कथा ल घलो गावंय.
रायपुर आए के पाछू एकर मनके बारे म अउ जाने बर मिलिस, काबर ते इहाँ विवेकानंद आश्रम के आगू रामकुंड म एकर मन के जबर बसेरा हे. इहाँ एकर मनके एक पूरा के पूरा पारा हे, जेला बसदेवा पारा के नांव ले जाने जाथे. अब ए मन इहाँ स्थायी रूप ले बस गे हावंय. छत्तीसगढ़ के निवासी बनगे हावंय. ए मन इहाँ अपन स्वतंत्र चिन्हारी के उदिम घलो कर डारे हावंय. बसदेवा पारा (बस्ती) के आगू म एक सिरमिट के बने प्रवेशद्वार हे जेमा “जय माँ काली मंदिर बसदेव पारा” लिखाए हे. एला 13 नवंबर 1879 विक्रम संवत 1936 माघ कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी दिन गुरुवार के सिपाही लाल वासुदेव द्वारा बनवाए के उल्लेख करे गे हे, जेला बाद म 1997 म फिर से जीर्णोद्धार करे गे हवय. ए मंदिर म काली माता विराजमान हें. मंदिर म बड़का असन पीपर पेंड़ घलो जामे हे, वोकर संग शिव लिंग के पूजा होथे.
एकर मनके तब जीवकोपार्जन के मुख्य साधन इही बसदेवा गीत गा के गुजर बसर करना ही रिहिसे, फेर अब बेरा के संग नवा पीढ़ी ह अलग- अलग काम-बुता म घलो रमे बर धर लिए हे, तेकर सेती अब एकर मनके गीत गा के मंगई-जचई ह कम घलो दिखथे.
रायपुर के बसदेवा पारा म आके बसे के संबंध म इन बताथें, के उन गंगा तीर के मूल निवासी आयं. वैदिक काल म यज्ञ के विविध अनुष्ठान के बीच बीच म आख्यान गाए के परंपरा रिहिसे, इही ह लोककथा अउ लोकगाथा के रूप म पूरा गंगा क्षेत्र म फैल गे. बाद म अइसे कई किसम के परिस्थिति आवत गिस, जेकर चलत हमन बघेलखंड ले होवत एती गोंडवाना के धरती म पहुँच गेन अउ इहें अपन गाथा मनला गाये लगेन. अइसे करत फेर भोरमदेव अउ कवर्धा होवत रायपुर पहुँच गेन. छत्तीसगढ़ के धरती हमन ल भारी निक लागिस तेकर सेती अब हमन इहाँ के स्थायी निवासी बन गेन. अउ एकरे संग हमन छत्तीसगढ़ के कतकों अउ इलाका मन म घलो बगरगे हावन.
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